नाग पंचमी पर पुष्कर में लगता है नाग देवता का मेला, जानिए पुष्कर का नाग प्रजाति से संबंध
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नाग पंचमी पर पुष्कर में लगता है नाग देवता का मेला, जानिए पुष्कर का नाग प्रजाति से संबंध

पुष्कर भोगोलिक रूप से सर्प प्रजाति के लिये अनुकूल स्थान है. जहां सर्प नुमा विशाल अरावली पर्वत माला है तो वहीं पर्याप्त जल और रेगिस्तान भी इनके परस्थितिय तंत्र को संबल देने वाले हैं.

नाग पंचमी पर पुष्कर में लगता है नाग देवता का मेला, जानिए पुष्कर का नाग प्रजाति से संबंध

Pushkar: तीर्थ नगरी पुष्कर का सर्प प्रजाति से बड़ा पुराना और गहरा नाता रहा है. जिसे नाग पंचमी के अवसर पर बड़ी आसानी से देखा जा सकता है. अरावली पर्वतमाला की गोद में धार्मिक एवं पुरातन इतिहास को संजोए पुष्कर का नाग प्रजाति से पुरातन संबंध स्थापित है. पुष्कर क्षेत्र के विभिन्न इलाकों से पुष्कर पुलिस मित्र और सिविल डिफेंस की टीम ने अब तक हजारों सरीसर्प का रेस्क्यू कर उन्हें यही कि नाग पहाड़ी के जंगलों में छोड़ा है. यह रोचक तथ्य ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं को प्रमाणित भी करता है.

सनातन वैदिक-पौराणिक ग्रंथों के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति का उदगम स्थल पुष्कर है. जिसने पद्म,वामन,विष्णु,भविष्य पुराणों सहित रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों में भी अपने अस्तित्व को दर्ज किया है. पद्म पुराण के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति के बाद पुष्कर तीर्थ में जगत पिता ब्रह्म ने विशेष यज्ञ का आयोजन करने के लिए सुर,नर, मुनि, गंधर्व नाग, किन्नर और यक्ष सहित अन्य को आमंत्रित किया जिसके बाद वह पुष्कर में एकत्रित हुए थे.

क्या कहती है कथा

इस दौरान महर्षि भृगु के पुत्र चमन ऋषि द्वारा जगत पिता ब्रह्मा के पौत्र पृथु के हास्य विनोद करने पर उसे सर्प होने का श्राप दिया और उसे पुष्कर के दक्षिण में स्थित यज्ञानचल पर्वत(नाग पहाड़) के एक कुंड में निवास करने को कहा. इतना ही नहीं पद्म पुराण में पुष्कर में पाए जाने वाले तक्षक, शेष(अनन्त),वासुकि, पुंडरीक, व्रकोधर जैसी सर्प प्रजातियों का वर्णन है जो पुष्कर के यज्ञानचल पर्वत(नाग पहाड़)में पायी जाती थी.

महाभारत महाकाव्य में भी पुष्कर के सर्पों से पौराणिक संबंधों के साक्ष्य मिलते हैं. पांडवों ने अपने वनवास काल के दौरान इसी नाग पहाड़ी के मध्य पद्म पुराण में वर्णित नाग कुंड के निकट निवास किया था. इस दौरान पांडवों में जेष्ठ युधिष्ठिर ने इस कुंड का पक्का निर्माण करवाकर अपने सर्प दोष का निवारण करवाया था. इन्ही पुराणों में वर्णित कथाओं के चलते आज भी कई हिन्दू धर्मावलंभी इस नाग कुंड पर अपने सर्प दोष के निवारण के लिये आते हैं.

वहीं धार्मिक ग्रंथों से इतर ऐतिहासिक तथ्यों पर नजर डाली जाए तो ईंसवी शताब्दी के प्रारम्भ से ही तक्षक(नाग) वंश का अधिकार इस पुष्कर क्षेत्र पर था. जहां तक्षकों के मध्य हुए भीषण संघर्षों का वर्णन इतिहासकारों की किताबों में मिलता है. इसी कारण यज्ञानचल पर्वत (नाग पहाड़) को नागवंश के उदय स्थल का प्रतीक माना जाता है. चौथी- पांचवी शताब्दी के मध्य अनन्त गौचर क्षेत्र(उत्तर पश्चिम राजस्थान,पंजाब, कश्मीर) पर प्राचीन नागवंशी क्षत्रिय अनन्तनाग के शासन काल मे पुष्कर क्षेत्र केंद्र बिंदु के रुप में स्थापित था. यही नागवंशी कालांतर में चौहान कहलाये.

पुष्कर भोगोलिक रूप से सर्प प्रजाति के लिये अनुकूल स्थान है. जहां सर्प नुमा विशाल अरावली पर्वत माला है तो वहीं पर्याप्त जल और रेगिस्तान भी इनके परस्थितिय तंत्र को संबल देने वाले हैं. ऐसे में बीते 4 सालों से पुलिस मित्र के रूप में सेवा दे रहे स्वयंसेवी युवाओं को प्रशिक्षण देकर सर्प मित्र दल का गठन पुष्कर प्रशासन ने किया. दल के सदस्य अमित भट्ट ने बताया कि इस प्रशिक्षण के बाद 4 सालों में कोबरा,चेकर्ड,वोल्फ, गैलेक्सी बेलिड रेसर, रेट, सेंड बोवा, रॉयल, पायथन, कमान क्रेट, कमान ट्रीनकित, स्नैक आदि प्रजातियों के 5 हजार से अधिक सांप पकड़े हैं .जिन्हें शहरी क्षेत्र से रेस्क्यू कर इसी नाग पहाड़ी में वापस छोड़ा जाता है.

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