'मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है'...पढ़िए हसरत मोहानी की खूबसूरत शायरियां

Harsh Katare
Dec 02, 2024

शाम हो या कि सहर याद उन्हीं की रखनी दिन हो या रात हमें ज़िक्र उन्हीं का करना

छुप नहीं सकती छुपाने से मोहब्बत की नज़र पड़ ही जाती है रुख़-ए-यार पे हसरत की नज़र

आईने में वो देख रहे थे बहार-ए-हुस्न आया मिरा ख़याल तो शर्मा के रह गए

चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है

नहीं आती तो याद उन की महीनों तक नहीं आती मगर जब याद आते हैं तो अक्सर याद आते हैं

चोरी चोरी हम से तुम आ कर मिले थे जिस जगह मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वो ठिकाना याद है

वफ़ा तुझ से ऐ बेवफ़ा चाहता हूँ मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ

आरज़ू तेरी बरक़रार रहे दिल का क्या है रहा रहा न रहा

देखा किए वो मस्त निगाहों से बार बार जब तक शराब आई कई दौर हो गए

आप को आता रहा मेरे सताने का ख़याल सुल्ह से अच्छी रही मुझ को लड़ाई आप की

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