Mokshda Ekadashi 2022: नए साल के शुरुआत में ही पड़ेगी बैकुंठ एकादशी, जानिए क्या है इसका महत्व
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Mokshda Ekadashi 2022: नए साल के शुरुआत में ही पड़ेगी बैकुंठ एकादशी, जानिए क्या है इसका महत्व

Vaikunta Ekadashi 2023: बैकुंठ एकादशी को मोक्षदा एकादशी भी कहते हैं.  इस दिन तिरूमाला मंदिर में भव्य आयोजन होता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के आंतरिक गर्भगृह को सालभर बाद खोला जाता है. इसी द्वार को बैकुंठ द्वारम् कहा जाता है. यहां से स्वर्ग का रास्ता जाता है. जानिए इस एकादशी का महत्व 

Mokshda Ekadashi 2022: नए साल के शुरुआत में ही पड़ेगी बैकुंठ एकादशी, जानिए क्या है इसका महत्व

Vaikunta Ekadashi 2023: बैकुंठ एकादशी की हिंदू धर्म में काफी मान्यता है. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ऐसी मान्यता है कि इस दिन स्वर्ग के द्वार खुलते है.बैकुंठ एकादशी को पौत्र पुत्रदा एकादशी या मुक्कोटी एकादशी के भी नाम से जानते हैं. इस बार ये एकादशी नए साल की शुरूआत यानी की 2 जनवरी को पड़ रही है. हिन्दू धर्म में इस एकादशी की क्या विशेषता है और क्या पुण्य फल है आइए जानते है.

तिरूमाला मंदिर में होता है भव्य आयोजन 
बैकुंठ एकादशी के मौके पर तिरूमाला मंदिर में भव्य आयोजन किया जाता है. ऐसा बताया जाता है कि इसी दिन भगवान विष्णु के आंतरिक गर्भगृह को एक साल बाद खोला जाता है. इस द्वार को बैकुंठ द्वारम् के भी नाम से जाना जाता है . सिर्फ इस द्वार के दर्शन के लिए भक्तों का भारी हुजूम इकट्ठा होता है.बता दें कि बैकुंठ एकादशी के बाद ये द्वार फिर से एक सालों के लिए बंद कर दिया जाता है. तिरूमाला मंदिर आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है.

बैकुंठ एकादशी व्रत रखने के लाभ

ऐसा माना जाता है कि यह एक पवित्र एकादशी है. जो अंत समय में बैकुंठ दिलाती है.और इसका व्रत रखने से परिवारिक कष्ट से मुक्ति मिलती है.

ज्याोतिष शास्त्र के मान्यता के अनुसार  बैकुंठ एकादशी व्रत की कथा सुनने से व्रत रखने वाले व्यक्ति का यश संसार भर में फैलता है.

बैकुंठ एकादशी का व्रत रखने से आपके कई पाप नष्ट हो जाते है. और जो भी ब्यक्ति ये व्रत रहता है उसके परिवार के लोगों को मोक्ष मिलता है.

 बैकुंठ एकादशी के अवसर पर ब्राह्मणों को भेंट देने से भगवान विष्णु प्रसन्न होकर व्रत रखने वाले लोगों को शुभाशीष देते हैं.

इस एकादशी पर  भगवान विष्णु का विधि - विधान से पूजन करने पर व्रत रखने वाले के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे बैकुंठ की प्राप्ति होती है.

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