Rajaram Lok Story: आज मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले के ओरछा में भगवान राम के राजाराम लोक का भूमीपूजन होना है. इस कस्बे को बुंदेलखंड़ की अयोध्या भी कहा जाता है. आइये इस मौके पर जानते हैं भगवान राम यहां किन शर्तों पर आए थे और आखिर क्यों आज भी वो अपना राजपाठ रसोई से चलाते हैं.
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Rajaram Lok Story: मध्य प्रदेश में भगवान भोलेनाथ के नगरी उज्जैन में महाकाल लोक के बाद छिंदवाड़ा, रायसेन और भी कई स्थानों पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोक बनाने की ऐलान किया. एक-एक कर के उन स्थानों का भूमीपूजन भी हो रहा है. इसी क्रम में बुंदेलखड़ की अयोध्य के नाम से प्रसिद्ध ओरछा नगरी में राजाराम लोक का निर्माण होना है. इसका भूमीपूजन सीएम शिवराज कर रहे हैं. आइए आज इस मौके पर जानते हैं क्या है ओरछा नहरी का इतिहास और कैसे पहुंचे यहां श्री राम.
भगवान राम की जन्मभूमी अयोध्या और कर्म भूमी देशभर में अलग-अलग स्थान रहे हैं. लेकिन, उनकी सत्ता मध्य प्रदेश के ओरछा से चलती है. आज सदियों बाद भी यहां राम पूरे ठाठ के साथ विराजमान हैं और अपनी सत्ता का संचालन करते हैं. अपनी 3 शर्तों पर ओरछा आए प्रभु राम के रसोई से राजपाठ चलाने के पीछे बड़ी रोचक कहानी है.
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कैसे पहुंचे ओरछा?
बात संवत् 1631 की है. ओरछा के शासक मधुकर शाह कृष्ण भक्त हुआ करते थे और उनकी पत्नी रानी कुंवरि गणेश, रामभक्त थीं. जब प्रभू दर्शन को लेकर एक बार उनके यहां चर्चा हुई तो सबसे बड़ा सवाल ये आ गया कि आखिर दावन जाएं या अयोध्या. इसी बात पर मधुकर शाह ने पत्नी से कह दिया की राम सच में है तो उन्हें ओरछा लाकर दिखाओ. बस इसी बात पर रानी कुंवरि गणेश अयोध्य पहुंच गई और किसी तरह भगवान राम को ओरछा ले आईं.
भगवान राम ने रखी थी तीन शर्त
महारानी कुंवरि अयोध्या जाकर प्रभु राम के दर्शन के लिए तप करने लगीं. लेकिन, जब काफी समय के बाद उन्हें भगवान ने दर्शन नहीं दिए तो वो दुखी मन से सरजू में कूदने का फैसला किया. लेकिन, जैसे ही उन्होंने सरजू की ओर कदम बढ़ाया भगवान श्रीराम बाल स्वरूप में उनकी गोद में आकर बैठ गए. तभी महरानी ने उन्हें ओरछा चलने को कहा. राम भी उनकी बात को मान गए. लेकिन, उन्होंने अपनी तीन शर्ते रख दी.
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पहली शर्त- ओरछा में जहां बैठ जाऊंगा, वहां से उठूंगा नहीं
दूसरी शर्त- मेरे राजा के रूप में विराजमान होने के बाद वहां पर किसी और की सत्ता नहीं रहेगी
तीसरी शर्त- वो खुद बाल रूप में पैदल पुष्य नक्षत्र में साधु-संतों के साथ चलेंगे
रसोई से क्यों चलता है राजपाठ
श्रीराम रानी से खुश होकर ओरछा आ रहे हैं. इस बात की खबर राजा मधुकर शाह को लग गई. इसपर उन्होंने भव्य मंदिर का निर्माण शुरू कर दिया. रानी की इच्छा थी की मंदिर भव्य हो और ऐसी जगह हो की महल से सीधे देखा जा सके. इसी आधार पर मंदिर बन रहा था. लेकिन, जबतक निर्माण पूरा होता रानी ने भगवान को अपनी रसोई में ठहरा दिया. तब वो ये भूल गईं थी की उन्होंने ने तो शर्त रखी थी कि ओरछा में जहां बैठ जाऊंगा, वहां से उठूंगा नहीं. बस तभी से राजाराम रानी की रसोई में विराजित है.
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आज भी 400 साल बाद भगवान राम महल में नहीं महारानी की रसोई में विराजमान हैं. हालांकि, बाद में जहां प्रभू राम विराजित हैं वहां भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया. अब आधुनिक युग में सरकार इसी मंदिर परिक्षेत्र का विकास करना चाह रही है और इसे के लिए राजाराम लोक प्रोजेक्ट आया है.
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