हिंदू धर्म में गाय को बेहद पवित्र माना जाता है. यही वजह है कि हमारे देश में गाय की पूजा की जाती है लेकिन एक आदिवासी समुदाय ऐसा भी है, जिसका जीवन गायों के बिना अधूरा है. ये लोग गाय पर इस तरह निर्भर करते हैं कि यह गाय के साथ ही सोते और खाते हैं. हम बात कर रहे हैं कि दक्षिण सूडान के मुंडारी समुदाय की. तो आइए जानते हैं कि क्यों खास है ये आदिवासी समुदाय...
दक्षिण सूडान की नील नदी के किनारे पर मुंडारी आदिवासी समुदाय रहता है. इन आदिवासियों का पूरा जीवन इनकी गायों के ईर्द -गिर्द ही बीतता है. इस समुदाय की गायों को अंकोले वातुसी कहा जाता है और इनके सींग बड़े बड़े होते हैं. ये गायें 8 फीट तक लंबी होती हैं. मुंडारी लोग अपनी गायों को अपनी सबसे महंगी संपत्ति मानते हैं. ये लोग मांस के लिए गायों की हत्या नहीं करते हैं और अपने जीवन की जरूरतों के लिए गायों पर निर्भर करते हैं.
मुंडारी लोग गाय के दूध और दही का सेवन करते हैं. गोमूत्र से अपना मुंह धुलते हैं और नहाते हैं. दरअसल ये लोग मानते हैं कि गोमूत्र में एंटीसेप्टिक गुण होते हैं जिससे ये लोग बीमारी से बचे रहते हैं.
गोमूत्र में नहाने के चलते इनके बालों का रंग भी ओरेंज हो गया है. मुंडारी लोग गाय के गोबर से बने उपलों को जलाकर उसके पाउडर को अपने सनस्क्रीन के तौर पर शरीर पर लगाते हैं.
मुंडारी लोग रोजाना अपने पशुओं की दो बार मालिश करते हैं. दरअसल मुंडारी समुदाय में जिन लोगों के पास जितनी गायें होती हैं, उनका समाज में उतना ही रुतबा होता है.
मुंडारी लोग अपनी गायों के पास ही सोते हैं और वहीं पर खाना भी खाते हैं. गायों की चोरी ना हो जाए, इसलिए ये लोग हमेशा उनके साथ ही रहते हैं.
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