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MP के इस शहर में है एशिया की सबसे बड़ी और छोटी मस्जिद, खास है इतिहास

madhya pradesh news-अगर आपको मस्जिदों में जाकर नमाज पढ़ना पसंद है तो मध्यप्रदेश के भोपाल में बस जाइए. क्योंकि यहां साल के दिन कम पढ़ जाएंगे लेकिन पूरे साल भी रोज मस्जिद में नमाज पढ़ने पर भी मस्जिदों की संख्या नहीं. भोपाल में 10 या 20 नहीं बल्कि 550 मस्जिदें हैं. गंगा-जमुनी तहजीब की विरासत संभाले इस शहर की बड़ी खासियत यह है कि यहां एशिया की सबसे बड़ी और सबसे छोटी मस्जिद मौजूद है. 

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भोपाल को झीलों की नगरी के नाम से जाना जाता है. इस खूबसूरत शहर को नबावों ने बसाया था. यहां के हरे भरे पेड़ और आबो हवा हर किसी को शहर की ओर आकर्षित करती है. एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद जिसका नाम ताज-उल-मसाजिद है और सबसे छोटी मस्जिद ढाई सीढ़ी भी भोपाल में ही है. 

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भोपाल के शासक बहादुर शाह जफर की पत्नी सिकंदर बेगम ने ताज उल मस्जिद को दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद बनाने का सपना देखा था. सिकंदर बेगम की मौत के उनकी बेटी शाहजहां बेगम इसे अपना सपना बताते हुए इस मस्जिद का निर्माण शुरू करवाया.

 

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मस्जिद का निर्माण शुरू तो हो गया लेकिन कुछ ही हिस्सा बन पाया. खजाने में पैसे कम होने और फिर शाहजहां बेगम के इंतकाल के कारण मस्जिद अधूरी छूट गई. इसके बाद 1970 में मौलाना मोहम्मद इमरान खां के प्रयासों से ताजुल मसाजिद का निर्माण पूरा करवाया गया.

 

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मोतिया तालाब और ताज-उल-मस्जिद को मिलाकर इस मस्जिद का कुल क्षेत्रफल 14 लाख 52 हजार स्क्वेयर फीट है जो मक्का-मदीना के बाद सबसे ज्यादा है. इसलिए इसे विश्व की तीसरी सबसे बड़ी मस्जिद कहा जाता है. साथ ही ये एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद है. 

 

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इस मस्जिद में 1 लाख 75 हजार नमाजी एक साथ नमाज पढ़ सकते हैं. ताज-उल-मस्जिद का रंग गुलाबी है. इस मस्जिद की 2 सफेद गुंबदनुमा मीनारें हैं, जिन्हें मदरसे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. इस मस्जिद की सीढ़ियों पर टीवी सीरियल की शूटिंग हो चुकी है. 

 

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भोपाल में एशिया की सबसे छोटी मस्जिद है जिसे ढाई सीढ़ी वाली मस्जिद कहा जाता है. इस मस्जिद को करीब 300 साल पहले बनाया गया था. यह मस्जिद फतेहगढ़ किले के बुर्ज पर बनाई गई है.

 

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इसका निर्माण दोस्त मोहम्मद खान ने कराया था. इस मस्जिद में इबादत स्थल तक जाने के लिए ढाई सीढ़ियों का निर्माण करवाया गया था. इसी लिए इसे ढाई सीढ़ी की मस्जिद कहा जाता है.