MP Seat Analysis Karera Vidhan Sabha: मध्य प्रदेश में अलगे कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव (Assembly Election 2023) होने हैं. इससे पहले आइये समझते हैं सिंधिया घराने के प्रभाव वाले शिवपुरी जिले (Shivpur News) की करैरा विधानसभा सीट (Karera Constituency) का सियासी समीकरण क्या कह रहा है.
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Karera Vidhan Sabha Seat Analysis: मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव (Assembly Election 2023) जल्द होने जा रहे हैं. इससे पहले दलबदल और दावेदारी का दौर शुरू हो गया है. आइये समझते हैं नए सिंधिया के प्रभाव वाले शिवपुरी (Shivpur News) की करैरा सीट का सियासी और जातीय समीकरण. करेरा की सबसे खास बात ये की करैरा (Karera Constituency) से जनसंघ के राजमाता सिंधिया जीत की शुरूआत की थी. आइये समझते हैं क्या कहते हैं यहां के सियासी और जतीय समीकरण.
करैरा के जातीय समीकरण
2018 के आंकड़ों के अनुसार, कुल मतदाता 2 लाख 54 हजार 283 मतदाताओं वाले करैरा में 1 लाख 36 हजार 144 पुरुष और 1 लाख 18 हजार 136 महिला वोटर हैं. जबकि, 3 अन्य मतदाता हैं. कुल वोटरों में यहां 50 हजार से ज्यादा अनुसूचित जाति, 1 लाख वोटर अन्य पिछड़ा वर्ग, सामान्य वोटर करीब 34 हजार और 8 हजार के करीब मुस्लिम वोटर हैं. इसके साथ ही जाटव, रावत, पाल और लोधी बाहुल्य इलाका होने के कारण इनके वर्चस्व में आता है.
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उपचुनाव से गुजरा है इलाका
अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित करैरा से साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के जसवंत जाटव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. हालांकि, सिंधिया के बीजेपी में जाने के साथ ही वो भाजपा में चले गए और उपचुनाव का सामना किया लेकिन हार गए. 2020 के उपचुनाव में कांग्रेस प्रागीलाल जाटव ने जीत हासिल की. उपचुनाव में प्रागीलाल जाटव को 95728 वोट. वहीं सिंधिया समर्थक जसवंत जाटव को 65087 वोट मिले थे.
रिपीट नहीं होता सिटिंग MLA
करैरा की सबसे खास बात ये भी है कि यहां से 1985 के बाद से अब तक कोई भी सिटिंग MLA रिपीट नहीं हुआ है. इससे पहले 19952 से लेकर 1985 तक हुए चुनावों में कांग्रेस के गौतम शर्मा (1957 और 1962) और जनसंघ के हनुमंत सिंह (1980 और 1985) ही है जिन्हें जनता ने दोबारा मौका दिया था. इसके बाद 8 चुनाव और 1 चुनाव में जनता ने अपना विधायक रिपीट नहीं किया. यहां से 6 बार कांग्रेस, 1 बार बीएसपी और 3 बार बीजेपी जीत कर आई.
राजमाता ने लड़ा था चुनाव
आजादी के बाद से ही ये इलाका सिंधिया राजघराने के वर्चस्व में रहा है. यहां से हमेशा ही सिंधिया समर्थक उम्मीदवार जीतता आया है. हालांकि, 2020 के उपचुनाव ये रिकॉर्ड टूट गया और सिंधिया के बीजेपी में जाने के बाद जनता ने कांग्रेस उम्मीदवार पर भरोसा जताया. करैरा से ही 1967 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने चुनाव लड़ा था और जीत हासिल की थी.
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क्या हैं इलाके के मुद्दे?
शिवपुरी और ग्वालियर के पास होने के बाद भी करैरा विकास की बाट जोह रहा है. क्षेत्र में कई इलाके ऐसे हैं जहां आज भी सड़क जैसी मूलभत सुविधाओं की कमी है. बाजार, गली मोहल्लों में काफी जर्जर है और युवाओं के पास रोजगार का मुद्दा तो है ही.