Mandala 21 Tribal Revolutionaries Story: देश की आजादी मंडला का बहुत बड़ा योगदान रहा है. यहां के कई आदिवासियों को बरगद के पेड़ में लटका दिया गया था. हालांकि देश के आजादी के लिए इतना बड़ा बलिदान देने के बावजूद भी इतिहास ने इन आदिवासी क्रांतिकारियों के साथ न्याय नहीं किया.
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विमलेश मिश्र/मण्डला: देश की आजादी के लिए मण्डला जिले के आदिवासियों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. इस आदिवासी बहुल जिले से जहां मण्डला के डिप्टी कमिश्नर कर्नल वाडिंगटन (Deputy Commissioner Col Waddington) ने बरगद के पेड़ पर उमराव सिंह (Umrao Singh) सहित 21 आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को पेड़ पर फांसी पर लटका दिया था, लेकिन इस घटना का जिक्र इतिहास में विस्तार से नहीं किया गया.
इतिहासकार उठाते हैं सवाल
इतिहासकारों ने स्वतंत्रता आंदोलन में मंडला जिले की भूमिका के बारे में सवाल उठाया है कि जहां 21 लोगों को एक बरगद के पेड़ पर एक साथ फांसी दे दी गई और ये बात डिप्टी कमिश्नर के पत्र में हो तो उसे कैसे झुठलाया जा सकता है. इतिहासकारों का कहना है कि जिले के शहीदों को स्वतंत्रता आंदोलन में उनका उचित स्थान नहीं मिला. इसके विपरीत शहीदों को डकैत और लुटेरा कहा गया.
किया जाना चाहिए उचित अध्ययन: इतिहासकार
बरगद का पेड़ आज भी शहर के वर्तमान एलिवेटेड चौक में मौजूद है. जिस पर 1857 में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान डिप्टी कमिश्नर वाडिंगटन ने उमराव सिंह समेत 21 आदिवासियों को बरगद के पेड़ पर लटका दिया था. आदिवासी बहुल मंडला जिले की आजादी में जो योगदान रहा, वह प्रदेश के लिए गौरव की बात है. इतिहासकारों का कहना है कि राज्य के आदिवासी सेनानियों ने न केवल आम लोगों के बीच क्रांति का संचार किया,बल्कि अपने बलिदान भी दिए, लेकिन उनके योगदान को इतिहास में उचित स्थान नहीं मिलने से इतिहासकार निराश हैं. वो मानते हैं कि इन पर उचित अध्ययन किया जाना चाहिए.
आजादी में जिले के आदिवासियों का बड़ा योगदान
इतिहासकार जहां इन बलिदानों पर उचित अध्ययन और इतिहास में इन आदिवासी बलिदानों को उचित स्थान देने की मांग कर रहे हैं.वहीं पुरातत्व विशेषज्ञ भी जिले के इतिहासकारों से सहमत हैं और कहते हैं कि देश की आजादी में जिले के आदिवासियों का बड़ा योगदान है.
आदिवासियों के हक को लेकर केंद्र और राज्य सरकारें तमाम योजनाएं चला रही हैं. उनका ध्यान आदिवासियों के विकास और उत्थान पर है तो क्यों न देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले आदिवासी वीर शहीदों को इतिहास में उचित स्थान नहीं दिया जा रहा है. इतिहासकारों को उम्मीद है कि अब जिले के आदिवासी वीर शहीदों को इतिहास में जगह मिलेगी.