International Women's Day 2024: MP की 'पैड जीजी' पूरे देश में हुई मशहूर, अमेरिका से नौकरी छोड़ बनीं गांव की मुखिया
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International Women's Day 2024: MP की 'पैड जीजी' पूरे देश में हुई मशहूर, अमेरिका से नौकरी छोड़ बनीं गांव की मुखिया

International Women's Day 2024: मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के मेहरा गांव की रहने वाली माया विश्वकर्मा को साईं खेड़ा तहसील की सरपंच हैं. जो भारत में पैडवुमन ऑफ इंडिया के नाम से मशहूर हैं.

International Women's Day 2024: MP की 'पैड जीजी' पूरे देश में हुई मशहूर, अमेरिका से नौकरी छोड़ बनीं गांव की मुखिया

International Women's Day 2024: हर साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. इस दिन को मनाने का मकसद महिला सशक्तिकरण की तरफ एक कदम है. इसके साथ ही महिलाओं की उन्नति और विकास को बढ़ावा देना भी है. आज हम आपको ऐसी महिला की स्टोरी बताने वाले हैं, जिन्होंने कई महिलाओं को जागरूक करने का काम किया हैं. दरअसल हम बात कर रहे हैं पैडवुमन माया विश्वकर्मा की. जो भारत में पैडवुमन ऑफ इंडिया के नाम से मशहूर हैं.

बता दें कि मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के मेहरा गांव की रहने वाली माया विश्वकर्मा भारत में पैड वुमेन या पैड जीजी के नाम से मशहूर हैं. उन्होंने महिलाओं के लिए अमेरिका में अच्छी नौकरी को भी छोड़ दिया और अब वो महिलाओं का जीवन संवारने में जुट गई है. 

जानिए कौन हैं माया विश्वकर्मा?
मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के मेहरा गांव की रहने वाली माया विश्वकर्मा को साईं खेड़ा तहसील की सरपंच हैं. उन्हें 2023 चुनाव में निर्विरोध सरपंच चुना गया था. माया विश्वकर्मा ने अपनी शिक्षा अमेरिका से पूरी की है. उन्होंने अपनी पीएचडी 2008 में की थी. उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, सैन फ्रांसिस्को में ब्लड कैंसर पर रिसर्च किया था. हालांकि वो विदेश में अपनी अच्छा जीवन जी रही थी, लेकिन देश और गांव के प्रति विकास के लिए उनका जज्बा उन्हें वापस भारत ले लाया.

इसके बाद उन्होंने गरीबों के लिए काम करना शुरू किया और पीरियड्स जैसे मुद्दे पर उन्होंन महिलाओं में जागरुकता फैलाना शुरू की.

26 साल तक कपड़े का किया इस्तेमाल
गौरतलब है कि भारत में आज भी सैनिटरी पैड को लेकर बात हमेशा फुसफुसाकर या एक दूसरे के कान में ही बोली जाती है. यहां तक ही घरों में भी पीरियड्स से जुड़ी बातें खुलकर नहीं होती है. ऐसे में माया विश्वकर्मा ने जब उन्हें पहली बार पीरियड्स आए तो उनके घर पर भी कपड़ा इस्तेमाल करने की सलाह दी गई. जिसके बाद 26 साल की उम्र तक उन्होंने कपड़े का ही इस्तेमाल किया. इस वजह से उन्हें इंन्फेक्शन भी हुआ. 

ये ही वो कारण था कि माया अपने गांव की महिलाओं को मेंस्ट्रूल हाइजीन का महत्व बताना चाहती थीं, क्योंकि शहरों के मुकाबले गांवों में ये समस्या ज्यादा फैली थी.

आज माया विश्वकर्मा को पैड जीजी व पैड वुमन के नाम से जाना जाता है. वो अपने एनजीओ के जरिए समाजसेविका के तौर पर काम करती हैं. महिलाओं को मासिक धर्म, हाइजीन, स्वास्थ्य को लेकर जागरुक करने का काम भी करती है. उन्होंने इसके लिए कई वर्कशॉप और सेमिनार को बढ़ावा भी दिया.

उन्होंने अपने मेहरा गांव में एक छोटा क्लिनिक भी खोला ताकि महिलाएं और लड़कियां बिना झिझक के उन्हें अपनी परेशानी भी बता सके. इसके अलावा नरसिंहपुर में ही एक छोटी पैड की फैक्ट्री यूनिट लगाई है. जो बाजार में मिलने वाले ब्रांड की कंपनियों के पैड से काफी सस्ते मिलते हैं.

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