Indore Accident Case: इंदौर में 36 मौतों का जिम्मेदार कौन? मंदिर प्रशासन, निगम या नेता...? पढ़िए अब तक का घटनाक्रम
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Indore Accident Case: इंदौर में 36 मौतों का जिम्मेदार कौन? मंदिर प्रशासन, निगम या नेता...? पढ़िए अब तक का घटनाक्रम

तारीख 30 अप्रैल 2023, दिन गुरवार....देश भर में मंदिरों में रामनवमी का आयोजन हो रहे था. इंदौर के एक मंदिर में एक हादसा हुआ और 36 जानें लील गया.... हर तरफ चीख पुकार मच गई... कोई कुछ समझ नहीं पा रहा था हुआ क्या... अचानक बावड़ी की छत ढ़ह गई और भीड़ कुएं (बावड़ी) में समा गई. देखिए कब क्या क्या हुआ ... 

Indore Accident Case: इंदौर में 36 मौतों का जिम्मेदार कौन? मंदिर प्रशासन, निगम या नेता...? पढ़िए अब तक का घटनाक्रम

Indore Accident Case Chronology: इंदौर। तारीख 30 अप्रैल 2023, दिन गुरवार....देश भर में नवरात्रों के आखिरी दिन जवारा निकालने का कार्यक्रम चल रहा था. साथ ही मंदिरों में रामनवमी के मौके पर रामजन्मोत्सव का आयोजन हो रहा था. हर जगह भजन 'भय प्रगत कृपाला, दीन दलाया, कौशल्या हितकारी' के साथ जय श्री राम के नारे लगे रहे थे.  इंदौर के स्नेह नगर में स्थित बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर में भी भक्तों की भीड़ उमड़ी थी. हवन की तैयारी चल ही रही थी कि यहां भयानक हादसा हो जाता है और चारों तरफ अफरा-तफरी मच जाती है.

दोपहर 12 बजे हुआ हादसा
मध्य प्रदेश की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले इंदौर के स्नेह नगर में स्थित बेलेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर में भारी संख्या में लोग राम जन्म उत्सव माने के लिए पहुंचे थे. दोपहर के करीब 12 बजे सभी हवन के तैयारी में थे. इसके लिए लोग मंदिर की बावड़ी की छत पर पहुंचते हैं. तभी अचानक बावड़ी की छत ढ़ह जाती है और एक झटके में ऊपर खड़ी पूरी भीड़ सीढ़ीनुमा कुएं (बावड़ी) में समा जाती है. 

मौतों का आंकड़ा 36 पर पहुंचा
शुरुआती दौर में 25 लोगों के बावड़ी में गिरने की बात सामने आई. बचाव कार्य शुरू हुआ तो SDRF और NDRF बचाव कार्य में जुट गई. रेस्क्यू गुरुवार 31 अप्रैल की दोपहर तक चला, जिसमें 36 लोगों के मौत की बात सामने आई. बचाव दल अब दूसरे चरण की सर्चिंग कर चुका है. हालांकि, घटना के तुरंत बाद हुए बचाव कार्य में 18 लोगों का जिंदा रेस्क्यू किया गया. इसमें से कुछ लोगों को डिस्चार्ज कर घर भेज दिया गया है. वहीं कुछ लोगों का अभी अस्पताल में इलाज चल रहा है.

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मंदिर प्रशासन पर हत्या का केस
हादसे के बाद प्रशासन ने कड़ी कार्रवाई करते हुए बालेश्वर महादेव झूलेलाल मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष, पूर्व पार्षद सेवाराम गलानी और सचिव श्रीकांत पटेल, कुमार सबनानी के खिलाफ गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज कराया है. धारा 304 के तहत FIR होने के बाद कमिश्नर मकरंद देउसकर ने बताया कि न्यायिक जांच के आदेश हो गए हैं. अभी किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया है.

PMO और मुख्यमंत्री ने दी सहायता
घटना के बाद तत्काल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने स्थानीय अधिकारियों से जानकारी और मृतकों के लिए सहायता राशि का ऐलान किया. इसके कुछ समय बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने CM से बात कर बचाव और राहत कार्य की जानकारी ली. कुछ समय बाद PMO ने पीएम केयर फंड से सहायता राशि उपलब्ध कराने का ऐलान किया. आज शिवराज सिंह घायलों से मिलने के लिए भी पहुंचे.

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जनता बोली राजनीति बंद करो
हादसे के बाद मामले में राजनीति भी गरमाने लगी. कांग्रेस नेताओं ने मंदिर प्रशासन और नगर निगम पर आरोप मढ़े. मामले में दिग्विजय सिंह, कमलनाथ, जीतू पटवारी के बयान सामने आए. दिग्विजय सिंह और जीतू पटवारी मौके पर भी पहुंच. इस दौरान स्थानीय लोगों का आक्रोश भी देखने को मिला. लोगों ने जीतू पटवारी को मंदिर में घुसने से रोक दिया. दर्द से कराह रहे लोगों का कहना था राजनीति बंद करो. 

मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष ने झाला पल्ला
मामले में पहले तो मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष सेवाराम गलानी ने अपना पल्ला झाड़ लिया. मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि शिवरात्री पर भी हजारों लोग जमा हुए थे. उस वक्त कोई हादसा नहीं हुआ. अब हुआ तो हम क्या कर सकते हैं. मौतों की जिम्मेदारी पर उन्होंने कहा 'मैं क्या कर सकता हूं. मैं तो दो महीने से बेड पर हूं. मेरी हड्डी टूटी हुई है.' वहीं नोटिस पर गलानी ने कहा कि हमने इसका जवाब दिया था कि हम अतिक्रमण नहीं कर रहे हैं, केवल जीर्णोद्धार करा रहे हैं.

निगम के रिकॉर्ड में नहीं बावड़ी
निगम प्रशासन के मुताबिक, उनके रिकॉर्ड में इस बावड़ी का कोई जिक्र ही नहीं था. पिछले साल अवैध निर्माण की शिकायत के बाद नोटिस जारी किया गया था तब समिति अध्यक्ष सेवाराम गलानी ने बावड़ी खोलने की बात कही थी. लेकिन, उन्होंने बावड़ी को जस का तस बने रहने दिया.

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और कितने हादसे?
मिडिया रिपोर्ट के अनुसार, निगम के रिकॉर्ड में दर्ज 629 बावड़ियां दर्ज हैं. लेकिन, कई ऐसे खरनाक निर्माण है जो इन कागजों का हिस्सा ही नहीं हैं. झूलेलाल मंदिर की बावड़ी भी इन्हें में से एक थी. जिसे लेकर नोटिस जारी किया गया था, लेकिन राजनीतिक दबाव में कोई कार्रवाई नहीं हो पाई. अब सवाल ये खड़ा होता है कि वास्तव में इसका जिम्मदार कौन है? मंदिर प्रशासन, जो नोटिस के बाद निर्माण को डिस्मेंटल नहीं किया या निगम जो एक साल से जानकारी होने के बाद भी कार्रवाई नहीं कर सका या फिर वो नेता जो कार्रवाई को प्रभावित करते रहे.

गलती किसी की भी हो लेकिन, खामियाजा आम लोगों को ही भोगना पड़ा. शहर के साथ प्रदेश में ऐसे कई निर्माण है, जो खतरे की लाइन में आते हैं. लेकिन, उनपर भी किसी न किसी कारण से कार्रवाई नहीं हो पाती है. बाद में हादसा होता है और आम लोगों को जान गंवानी पड़ती है. प्रशासन जांच और सरकारें मुआवजा देकर सोचती हैं कि उन ने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया. वहीं विपक्ष ऐसे हादसों को भुनाने लगती है और जनता की यही टीस रहती है कि इनके आंसुओं पर राजनीति न हो...

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