दुर्ग जिले में गाय के गोबर से बने दीयों की मांग अब विदेशों में भी होने लगी है. सिंगापुर, अमेरिका, स्विजरलैंड, कतर और लंदन जैसे देशों में अब तक छत्तीसगढ़ के गोबर से बने दिए और वंदनवार सप्लाई हो चुके है. आखिर कैसे बढ़ी इन गोबर के दीयों की मांगे आइए जानते हैं इनके बारे में...
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हितेश शर्मा/दुर्गः हिन्दू धर्म के अनुसार गोबर को सबसे शुद्ध और पवित्र माना जाता है इसी पवित्रता को देखते हुए दुर्ग की एक स्व सहायता समूह ने गोबर से दीये बनाकर गोबर को विशेष पहचान दिलाई है. गोबर से दीये बनाकर महिलाएं न सिर्फ रोजगार में आगे बढ़ रही हैं. बल्कि आम जन के बीच संस्कृति को भी बढ़ावा दे रही हैं. गाय के गोबर का इस्तेमाल कर किस तरह से धन अर्जित किया जा सकता है. इसकी मिसाल की भी प्रस्तुति की जा रही है.
विदेशों में भी हो रही सप्लाई
दरअसल दुर्ग जिले में बने गोबर के दिए और वंदन वार अब विदेश में भी पहुंचने लगे हैं. भिलाई की महिलाओं द्वारा निर्मित गोबर से बनी सजावटी सामग्री को स्विजरलैंड, कतर, अमेरिका,लंदन में भी खरीददार मिल रहे हैं. इतना ही नहीं देश भर में भी इनकी डिमांड भरपूर है. देश के लखनऊ, महाराष्ट्र के मुंबई, अकोला, पंजाब, उत्तराखंड, रायपुर, राजनांदगांव, कोरबा से भी आर्डर मिल रहा है. उड़ान नई दिशा संस्था की निधि चन्द्राकर का कहना है कि उन्होंने लंदन भेजने के लिए दीयों को वंदनवार, वाल हैंगिंग की डिलीवरी दे दी है. सोशल मीडिया में उनके द्वारा पोस्ट की गयी गोबर के दीयों को देखकर लोगों की डिमांड उन्हें लगातार मिल रही है.
शहरों में भी हो रही गोबर के दीयें की डिमांड
गोबर से बने दीयों और सजावट के सामान का अब ग्रामीण अंचल में ही नहीं बल्कि शहरों में भी क्रेज है. नगरीय निकायों में भी महिलाओं ने प्रशिक्षण प्राप्त किया और त्यौहार के लिए दिए और अन्य सजावटी सामान बना रहीं है. भिलाई की उड़ान नई दिशा की महिलाओं ने गोबर से वंदनवार,डेकोरेटिव दिए, वाल हैंगिंग, शुभ लाभ आदि बनाए हैं. दीयों का मुल्य 2 रुपए, डेकोरेटिव दीयों का मूल्य 50 से 150 रुपए, वंदनवार 150 से 250 रुपए और शुभ लाभ व लटकन 100 रुपए में उपलब्ध है. करीब 250 महिलाएं मिलकर ये काम कर रही हैं.
लाखों लोगों के आय का जरिया बना गोबर
महिला समूह की सदस्य पिंकी चंद्राकार ने बताया कि किसने सोचा था जिस गोबर को हम किसी काम का नहीं समझते थे. वही आज लाखों लोगों की आय का जरिया बन जाएगा. राज्य शासन की गोधन न्याय योजना से एक तरफ किसान व पशुपालकों की आय में इजाफा हुआ है और वर्मी कम्पोस्ट व नाडेप खाद बनाकर जैविक खेती की राह तो रोशन हुई ही है. तो दूसरी ओर स्व सहायता समूह की महिलाओं ने गोबर से दिए एवं अन्य सजावटी सामान बनाकर न केवल अपने हुनर का प्रदर्शन कर रही हैं. बल्कि आय भी अर्जित कर रही हैं. रक्षाबंधन में जहां गोबर से बनी राखियों को लोगों ने पसंद किया और गणेश चतुर्थी में गोबर व मिट्टी के गणेश घर घर विराजे अब नवरात्र और दीपावली के लिए दिए, धूप, वंदन वार, लटकन व शुभ-लाभ जैसे सामग्रियां बाजार में आने की तैयारी में हैं.
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