Budhni Assembly By Election: मध्य प्रदेश में इंडिया गठबंधन में एक बार फिर दरार दिख रही है. बुधनी विधानसभा सीट पर उपचुनाव में सपा ने प्रत्याशी उतार दिया है.
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Budhni By Poll: बुधनी विधानसभा सीट पर हो रहा उपचुनाव प्रत्याशियों के ऐलान के बाद दिलचस्प होता दिख रहा है. क्योंकि यहां इंडिया गठबंधन में दरार दिख रही है. बुधनी में कांग्रेस और सपा का गठबंधन नहीं दिख रहा है. क्योंकि कांग्रेस ने यहां पूर्व मंत्री राजकुमार पटेल को प्रत्याशी बनाया है, वहीं समाजवादी पार्टी ने अर्जुन आर्य के नाम का ऐलान किया है. खास बात यह है कि राजकुमार पटेल के नाम का ऐलान होते ही इधर सपा ने अर्जुन आर्य को प्रत्याशी बनाया उधर अर्जुन ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया. ऐसे में यहां इंडिया गठबंधन नहीं दिख रहा. बीजेपी ने इस सीट पर पूर्व सांसद रमाकांत भार्गव को प्रत्याशी बनाया है.
अर्जुन आर्य भी थे कांग्रेस के दावेदार
दरअसल, बुधनी विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में अर्जुन आर्य भी कांग्रेस की तरफ से दावेदार थे. लेकिन पार्टी ने राजकुमार पटेल को प्रत्याशी बनाया है. ऐसे में नाराज अर्जुन ने सपा का दामन थामा और अब वह सपा के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे. इससे पहले उन्होंने 14 अक्टूबर को सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात की थी. वहीं देर रात उन्होंने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को अपना इस्तीफा भेज दिया. बता दें कि इससे पहले भी अर्जुन आर्य सपा में रह चुके हैं. 2018 के विधानसभा चुनाव में भी अर्जुन आर्य का नाम कांग्रेस की तरफ से खूब चर्चा में चला था, लेकिन कांग्रेस ने तब अरुण यादव को चुनाव लड़ाया था, जबकि 2023 में विक्रम मस्ताल यहां से चुनाव लड़े थे. अर्जुन आर्य कांग्रेस पार्टी में दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के करीबी माने जाते थे.
बुधनी में त्रिकोणीय हो सकता है मुकाबला
अर्जुन आर्य के सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने की वजह से अब बुधनी में उपचुनाव त्रिकोणीय हो सकता है. क्योंकि अर्जुन भी स्थानीय नेता हैं, जबकि बीजेपी प्रत्याशी रमाकांत भार्गव भी लोकल प्रत्याशी हैं और सांसद भी रह चुके हैं. जबकि कांग्रेस प्रत्याशी राजकुमार पटेल 1993 में यहां से विधायक रह चुके हैं. ऐसे में मुकाबला दिलचस्प होने की उम्मीद दिख रही है.
बता दें कि बुधनी सीट से विधायक रहे पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान के सांसद बनने के बाद यहां उपचुनाव हो रहा है. बुधनी विधानसभा सीट बीजेपी का मजबूत गढ़ मानी जाती है. कांग्रेस को 1998 में यहां आखिरी बार जीत मिली थी. पिछले पांच चुनावों से बीजेपी लगातार यहां से चुनाव जीत रही है.
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