हार न मानने का जज्बा हो तो कोई भी लक्ष्य बड़ा नहीं होता है. इसको चरितार्थ करके दिखाया है सूरजपुर (Surajpur) के एक कॉलेज के प्रोफेसर ने. जो बचपन से नेत्रहीन होने के बावजूद भी अपनी काबिलियत की बदौलत इस पद पर पहुंचे हैं. जानिए उनके संघर्ष की कहानी
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Blind Professor in Surajpur: किसी ने कहा था कि मंजिलें उन्हें मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता हौंसलों से उड़ान होती है. ये लाइनें मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh)के सूरजपुर जिले के एक कॉलेज के सहायक प्रोफेसर पर बिल्कुल फिट बैठती है. क्योंकि प्रोफेसर ने जन्मजात नेत्रहीन (blind) होने के बावजूद भी अपनी पढ़ाई जारी रखी और लोगों को दिखाया कि अगर मंजिल पाने की चाहत हो तो कोई भी बाधा आपको नहीं रोक सकती है.
अंधे होने पर भी नहीं मानी हार
सूरजपुर कॉलेज में सहायकप्रोफेसर बुधलाल के बचपन में ही उनके सिर से पिता का साया उठ गया था. गांव के एक गरीब मां के साथ दोनों आंख से अंधे होने के बाद जिंदगी आसान नहीं थी. लोग बुधलाल उसकी मां को भीख मांग कर गुजारा करने की सलाह दिया करते थे. लेकिन मदद के नाम पर कोई सामने नहीं आता था. इसके बावजूद भी इन्होंने अपनी पढ़ाई को बरकार रखा और आज लोगों के लिए मिसाल बने हुए हैं.
कमजोरी को बनाया ताकत
बचपन से ही अंधे होने के बावजूद भी हर मोड़ पर प्रोफेसर के सामने कोई न कोई समस्याएं आती रहती थी, इसके बावजूद भी इन्होंने कभी पीछे मुड़के नहीं देखा. लागातर जी तोड़ मेहनत और अपने हौंसलों की बदौलत लगातार संघर्ष करते रहे और आज सूरजपुर के रेवती नारायण मिश्रा कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के पद तैनात हैं.
छात्रों को मिलती है प्रेरणा
रेवती नारायण मिश्रा कॅालेज में पढ़ने वाले छात्रों के लिए प्रोफेसर न केवल अध्यापक है बल्कि लोगों के लिए एक प्रेरणा का विषय़ भी हैं. जिन्होंने अपनी मेहनत और काबिलियत के बदौलत वो कर दिखाया जो असंभव सा लग रहा था. उनके इस हौसले को देखकर वहां पढ़ने वाले छात्रों को मेहनत करने की प्रेरणा मिलती है. इसलिए कहते हैं कि अगर जीतने का जज्बा हो तो दुनिया की कोई भी ताकत आपको नहीं हरा सकती है.