Surajpur news: पंकज त्रिपाठी की फिल्म कागज जैसी ही एक कहानी छत्तीसगढ़ के सुरजपुर से आई है. जहां एक वृद्ध महिला पिछले 15 सालों से खुद को जिंदा साबित करने की जंग लड़ रही है. जानिए आखिर क्या है भुइली बाई की कहानी...
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Surajpur news: सुरजपुर। पंकज त्रिपाठी के अभिनय में निर्देशक सतीश कौशिक की फिल्म 'कागज' की कहानी तो सभी को पता होगी की कैसे एक बुजुर्ग खुद को जिंदा साबित करने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहता है. आखिर कार बुजुर्ग को उसका हक मिल जाता है. लेकिन, रियल लाइफ में ऐसा हो जरूरी नहीं है. क्योंकि छत्तीसगढ़ सुरजपुर में भी एक महिला 15 साल से खुद को जिंदा साबित करने की लड़ाई लड़ रही है. लेकिन, उसे अभी तक उसका हल नहीं मिल सका है.
ये है भुइली बाई की 'कागज' की कहानी
अजीबोगरीब मामला सामने आया है सूरजपुर जिले के गंगापुर गांव जहां एक वृद्ध महिला पिछले 15 सालों से खुद को जिंदा साबित करने की जंग लड़ रही है. दफ्तरों के चक्कर लगाती वृद्ध महिला का नाम भुईली बाई है. महिला, चुनाव में वोटिंग करती है, हर महीने सरकारी राशन भी उठाती है. बावजूद इसके सरकारी दस्तावेजों में यह महिला 15 साल पहले मर चुकी है.
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पति की मौत के बाद संपत्ति पर लोगों की नजर
सूरजपुर जिले के गंगापुर गांव की रहने वाली भुइली बाई के पति की मृत्यु काफी समय पहले चुकी है. इसका कोई बच्चा भी नहीं है, जिसकी वजह से या अपने रिश्तेदारों के पास रहकर वो अपना जीवन बसर कर सके. ऊपर से उसे सरकारी कागजों में मृत बताने पर योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है. वहीं कुछ लोग उनकी संपत्ति भी हथिया लिए हैं.
SDM के फैसले के बाद भी नहीं मिली संपत्ति
आरोप है कि वर्ष 2008 में गांव के सरपंच के साथ मिलकर कुछ लोग इसकी पैतृक संपत्ति हथियाने की नियत से ग्राम पंचायत में इसे मृत घोषित कर दिया. इतना ही नहीं भुइलि बाई के पैतृक संपत्ति को भी कुछ लोगों ने अपने नाम करा लिया. जब इसकी जानकारी पीड़ित तो 2012 में उसने एसडीएम सूरजपुर के पास शिकायत दर्ज कराई थी. 2018 में इसपर उनके पक्ष में फैसला तो आया, लेकिन अभी तक उसकी संपत्ति उसे नहीं लौटाई गई.
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कुछ मायनों कागज से अलग है कहानी
इस पूरे मामले में 15 वर्ष से ज्यादा का समय बीत चुका है और एक बार एसडीएम सूरजपुर के द्वारा फैसला भी सुनाया जा चुका है. बावजूद इसके आज भी संबंधित विभाग जांच कर कार्रवाई की बात कर रहा है और महिला सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट खुद को जिंदा बताते हुए बाग रही है. यही बात इस कहानी को फिल्म 'कागज' से अलग करती है. क्योंकि वहां तो कोर्ट के फैसले के बाद बुजुर्ग को हक मिल गया था. अब यहां देखना होगा महिला को कब उसका हक मिल पाता है.
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