Surajkund Mela: कला और काबिलियत के दम पर दिव्यांग शिल्पकार दिखा रहे बेरोजगारों को रास्ता
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Surajkund Mela: कला और काबिलियत के दम पर दिव्यांग शिल्पकार दिखा रहे बेरोजगारों को रास्ता

Surajkund Mela 2023: मेले में आए तमाम कलाकारों के साथ असम के शिल्पकार राजू तुमंग भी शामिल हैं. पैरों से दिव्यांग राजू ने अन्य लोगों की तरह हिम्मत नहीं हारी और कैन बैंबू कला सीखकर पूर्वोत्तर समेत पूरे देश और विश्व में अपनी कला से प्रसिद्धि पा रहे हैं.

Surajkund Mela: कला और काबिलियत के दम पर दिव्यांग शिल्पकार दिखा रहे बेरोजगारों को रास्ता

फरीदाबाद : देश और विदेश में पहचान बना चुका अंतरराष्ट्रीय सूरजकुंड मेला अपने पूरे शबाब पर है. दिल्ली-एनसीआर और हरियाणा समेत दूर-दूर से लोग इसे देखने पहुंच रहे हैं. इस बार देश के अलग-अलग हिस्सों से पहुंचे कलाकार दिव्यांग होने के बावजूद अपनी कला और काबिलियत के दम पर आने-जाने वाले हर पर्यटक को अपनी ओर खींच रहे हैं. ये उन लोगों के लिए प्रेरणा के स्रोत बन रहे हैं, जो दिव्यांगता की वजह से जीवन के प्रति हिम्मत हार चुके हैं. जो ये सोचते हैं कि वे अपने जीवन में क्या कर सकते हैं या फिर ऐसे लोग जो मानसिक विकलांगता का शिकार होकर अपनी बेरोजगारी के लिए सरकार को कोसते रहते हैं. 

दरअसल मेले में आए तमाम कलाकारों के साथ असम के शिल्पकार राजू तुमंग भी शामिल हैं. पैरों से दिव्यांग राजू ने अन्य लोगों की तरह हिम्मत नहीं हारी और कैन बैंबू कला सीखकर पूर्वोत्तर समेत पूरे देश और विश्व में अपनी कला से प्रसिद्धि पा रहे हैं. उनकी कला के कद्रदान दिन प्रतिदिन बढ़ रहे हैं. 

असम के एक छोटे से क्षेत्र के रहने वाले राजू बचपन से दिव्यांग हैं. उनके माता-पिता ने उन्हें एक एनजीओ से जोड़ दिया, जिसके बाद उन्होंने यहां पर यह कैन बैंबू कला के बारे में सीखना शुरू कर दिया. इसके बाद उनका जीवन बदल गया.

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आज वह बांस से कुर्सी, लैंप समेत तमाम सजावटी आइटम बनाते हैं. अगर हम सूरजकुंड मेले की बात करें तो यहां पर नॉर्थ ईस्ट के केंद्रीय राज्य मंत्री भी इनकी कला को सराह चुके हैं. मेले में आने वाला हर पर्यटक इनके द्वारा बनाए क्वालिटी उत्पादों की तारीफ कर रहे हैं.

दिव्यांगता को पछाड़कर अंजू ने शुरू किया स्टार्ट अप और दूसरों को भी दिया रोजगार 
सूरजकुंड मेले में फरीदाबाद की अंजू भी आई है. कोरोना महामारी के चलते इस दिव्यांग महिला ने अपना रोजगार खो दिया, लेकिन उन्होंने जिंदगी से शिकायत नहीं की और न अपना हौसला नहीं खोया. सरकारी योजनाओं की जानकारी हासिलकर परिवार और दोस्तों की मदद से उन्होंने स्टार्ट अप शुरू किया.

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उन्होंने एक संस्था से जुड़कर अचार बनाना सीखा और फिर घर का अचार नाम से प्रोडक्ट मार्किट में लॉन्च कर दिया. कोरोना के बाद उनके आत्म विश्वास का ही यह नतीजा है कि आज वह दूसरों को भी रोजगार दे रही हैं. महिला ने लोन लेकर आज घर का अचार को इतना बड़ा ब्रांड बना दिया कि दूर-दूर तक इनके आचार की चर्चा होती है. अंजू ने बताया, पिछले सूरजकुंड मेले में उन्होंने मात्र 5 किलो अचार से अपना काम शुरू किया था और अब 50 किलो अचार बेच रही हैं. 

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