Panipat News: कई साल पहले सरकार ने ग्रामीणों की शिफ्टिंग का आदेश दिया था. ग्रामीणों का साफ कहना है कि अगर सरकार मुआवजे और शिफ्टिंग का काम नहीं करा पा रही तो गांव से सीमेंट का प्लांट कहीं और ले जाए, हम गांव में ही रह लेंगे.
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पानीपत: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कहा करते थे कि भारत का दिल उसके गांवों में बसता है, लेकिन विकास के लिए बड़े-बड़े प्रोजेक्ट, प्लांट और उद्योगों की वजह से अब गांव के लोगों के दिलों में वर्षों से एक टीस बन चुकी है. हम बात कर रहे हैं पानीपत के एक ऐसे गांव के बारे में, जो पिछले 30 से 35 साल से बीमारियों की गिरफ्त है और जहां के लड़कों की शादी नहीं हो रही. कोई भी अपनी लड़की का रिश्ता इस गांव में करने से घबराता है.
ग्रामीण कई बीमारियों की चपेट में
यहां के लोगों को चमड़ी रोग, दमा, आंखों की रोशनी से जुड़ी व लकवा जैसी कई बीमारियों ने घेर लिया है. गांव में आलम यह है कि 40 से 50 लोग कैंसर से मर चुके हैं. सरकार की अनदेखी की वजह से काफी संख्या में परिवार गांव से पलायन कर रहे हैं. गांव की गलियां सुनसान रहती हैं तो पुराने मकान खंडहरों में तब्दील होते जा रहे हैं. वर्षों से परेशान ग्रामीण गांव शिफ्ट कराने की मांग कर रहे हैं. सरकार भी उन्हें शिफ्ट करने का आदेश जारी कर जमीन अलॉट कर चुकी है, वो काम इतना धीमी गति से किया जा रहा है, जिससे ग्रामीणों में रोष है.
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हवा के साथ धूल भी जा रहा शरीर के अंदर
पानीपत से महज 12 किलोमीटर दूर थर्मल व सीमेंट फैक्ट्री के साथ बसे गांव खुखराना की कहानी बड़ी दुखदाई है. थर्मल पावर स्टेशन से उड़कर आने वाली राख से लोग पहले से परेशान थे, जिस पर सीमेंट के प्लांट ने लोगों के जीवन को नरक बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. ग्रामीण महिला साबो ने बताया कि राख व सीमेंट और धूल से लकवा, आंखों की रोशनी से जुड़ी समस्या और चमड़ी रोग हो रहे हैं. उन्होंने बताया कि खाने के साथ वे हवा में मिल चुकी राख व सीमेंट भी खाने को विवश हैं. महिला ने यह भी बताया कि गांव में कोई अपना रिश्ता नहीं करना चाहता.
30 साल से ग्रामीण झेल रहे दंश
गांव के शिवकुमार ने बताया कि दमा, एलर्जी जैसी बीमारियों से पिछले 30 साल से लोग परेशान हैं. गांव स्विफ्ट की बात तो कर रहे हैं, लेकिन शिफ्टिंग का सिस्टम समझ में नहीं आ रहा है. शिफ्ट करने की बात कर रहे हैं, लेकिन वहां पूरे प्लॉट नहीं दिए जा रहे हैं और कोई मुआवजा नहीं मिलता है. आलम यह है कि गांव के पुराने मकान जर्जर होकर गिर रहे हैं और लोग उन्हें मरम्मत भी नहीं करा सकते.
100 से अधिक परिवार छोड़ चुके हैं गांव
पूर्व सरपंच तेजवीर ने बताया कि 20 साल से शिफ्ट होने की बात चल रही है. शिफ्टिंग का कार्य भी चल रहा है, लेकिन सरकार बहुत देर कर रही है. वहीं उन्होंने जानकारी दी कि 40 से 50 लोगों की कैंसर से भी मौत हो चुकी है, जिसके कारण 100 से अधिक परिवार गांव से पलायन कर चुके हैं.
पूरी जमीन नहीं मिली तो नहीं छोड़ेंगे गांव
गांव के देवी राम ने बताया कि जिस समय शिफ्ट की बात हुई थी, उस समय ईंट का भाव 2000 रुपये प्रति हजार था, आज रेट बढ़कर 6000 रुपये हो गया है. इसलिए हमारा मुआवजा भी बढ़कर 3 गुना होना चाहिए. उन्होंने कहा कि जो प्लाट छूट चुके हैं, वह भी मिलने चाहिए. उन्होंने सरकार से गुहार लगाई कि सीमेंट की फैक्ट्री को यहां से हटा दिया जाए. हम इस गांव में ही रह लेंगे. देवी राम ने कहा कि अगर हमें पूरी जमीन नहीं मिली तो हम गांव नहीं छोड़ेंगे.
मुआवजा कम मिलने से ग्रामीण असंतुष्ट
गांव के सरपंच नरेश कुमार ने बताया कि लगभग हर घर में कोई न कोई बीमारी से पीड़ित है. यह समस्या पिछले 30 साल से बनी हुई है. उन्होंने बताया कि हाल-फिलहाल शिफ्टिंग का मामला चला हुआ है, लेकिन उसमें भी कुछ नजर नहीं आ रहा है क्योंकि सरकार द्वारा मुआवजा काफी कम दिया जा रहा है.
मुआवजे का मसला है तो ग्रामीण करें शिकायत
पानीपत के उपायुक्त सुशील सारवान ने कहा कि ग्रामीणों की शिफ्टिंग की तैयारी युद्धस्तर पर चल रही है. पहले इंफ्रास्ट्रक्चर व सर्विस का कार्य पूरा कर दिया जाए, ताकि जब लोग शिफ्ट हो तो वहां सुविधाओं की कमी न हो. मुआवजे को लेकर उन्होंने कहा कि यदि किसी ग्रामीण की कोई शिकायत है तो वह लिखित में दे सकता है, उस पर सुनवाई की जाएगी.
इनपुट: राकेश भयाना