Research : London के साइंटिस्ट का दावा किया है कि कोरोना वैक्सीन की अब कोई जरूरत नहीं है. वहीं भारत में भी वैक्सीन पर रिसर्च करने वाले बूस्टर न लेने की सलाह दे रहे हैं.
Trending Photos
नई दिल्ली : लंदन के मशहूर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ असीम मल्होत्रा ने कोरोना की वैक्सीन को लेकर अब अपनी राय बदल दी है. हाल ही में उन्होंने सबूतों के साथ यह जानकारी शेयर की कि क्यों कोरोना को बूस्टर डोज की अब कोई जरूरत नहीं है. उनके इस शोध को यूट्यूब पर दो लाख लोग और ट्विटर पर 11 लाख लोग सुन चुके हैं
वैक्सीन को लेकर डॉ असीम मल्होत्रा का शोध जर्नल ऑफ़ इन्सुलिन रेजिस्टेंस नाम की पत्रिका में छपा है. इस रिसर्च में यह बताया गया है कि कोरोना वायरस की बूस्टर डोज से होने वाले नुकसान आपको अस्पताल पहुंचा सकते हैं. अब कोरोना वायरस आपको अस्पताल पहुंचा सकता है, इस बात की आशंका बेहद कम रह गई है.
डॉ असीम मल्होत्रा ने 2021 में कोरोना वायरस वैक्सीन की दोनों डोज ली थीं और वह लोगों को भी वैक्सीन लगवाने की सलाह दे रहे थे, लेकिन कुछ समय के बाद उनके पिता कैलाश चंद की अचानक हार्ट अटैक से मृत्यु हो गई. डॉ असीम मल्होत्रा हैरान थे कि ऐसा क्यों हुआ क्योंकि उनके पिता बेहद फिट इंसान थे इसके बाद डॉ असीम ने वैक्सीन से होने वाले नुकसान पर विस्तृत रिसर्च शुरू की.
डॉ. मल्होत्रा के मुताबिक कोरोना वैक्सीन की वकालत करने वाले ड्रग रेगुलेटर असल में किसी न किसी रूप में फार्मास्यूटिकल कंपनियों से जुड़े होते हैं. दुनियाभर में ड्रग रेगुलेटर को 60 फीसदी से ज्यादा फंड करने वाली भी फार्मा कंपनियां ही होती हैं, इसीलिए ट्रायल के बाद जो नतीजे सामने आते हैं उन्हें तोड़मरोड़ कर पेश किया जाता है जैसे कि फायदों को बढ़ा चढ़ाकर और नुकसान को कम आंककर बताया जाता है. हालांकि वैक्सीन की डिटेल रिसर्च करने के बाद यह समझ में आता है कि बहुत से लोगों को वैक्सीन की जरूरत ही नहीं है.
एम्स में भारत बायोटेक की कोरोना वैक्सीन को वैक्सीन पर रिसर्च करने वाले डॉ. संजय राय भी मानते हैं कि कुछ मामलों में वैक्सीन ने फायदा कम और नुकसान ज्यादा किया है. डॉक्टर के मुताबिक दूसरी लहर आते-आते भारत में 70 फीसदी से ज्यादा आबादी कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुकी थी. इसका मतलब यह हुआ कि उन्हें नेचुरल इंफेक्शन हुआ और उनके शरीर में कोरोना वायरस के इंफेक्शन के खिलाफ नेचुरल लड़ना यानी एंटीबॉडी बनाना भी सीख लिया. कोई भी लैब नेचुरल एंटीबॉडी से बड़ी कोई भी दवा नहीं बना सकती, इसीलिए कोरोना वायरस की बूस्टर डोज की जरूरत अब लगभग न के बराबर है.
डॉक्टर राय के मुताबिक बेहद बूढ़े लोग चाहे तो बूस्टर लगवा सकते हैं, लेकिन साथ ही उन्होंने सावधान भी किया है कि उम्र जितनी कम है, वैक्सीन उतना ही नुकसान कर सकती है. इसकी वजह यह है कि बच्चों और युवाओं में इम्यून सिस्टम बेहद सक्रिय होता है.
ऐसे में अगर किसी युवा को पहले से कोरोना वायरस का संक्रमण हो चुका है और उसके ऊपर से वह बूस्टर डोज भी लगवा लेता है तो उसके शरीर में हाइपर इम्यून रेस्पॉन्स पैदा हो सकता है और शरीर के सेल्स आपस में लड़ने लग जाते हैं. इसीलिए बूस्टर डोज लगवाने में बहुत लोगों को फायदा कम और नुकसान ज्यादा होने की आशंका बनी हुई है. हालांकि कोरोना वायरस की बीमारी के बाद हार्ट अटैक के मामलों में दुनियाभर में इजाफा देखा गया है, लेकिन वैज्ञानिक और पुख्ता तौर पर वैक्सीन को नकारने वाली कोई बड़ी तर्कसंगत रिसर्च अभी नहीं आई है. इसीलिए अगर आप भी कोरोना वायरस की बूस्टर डोज को लेकर असमंजस में हैं तो अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें और अपने विवेक का इस्तेमाल भी करें.
रिसर्च को झेलनी पड़ी आलोचनाएं
भारत में अब तक 21 करोड़ 54 लाख 93 हजार बूस्टर डोज लगाई जा चुकी हैं. यह रफ्तार कोरोना वायरस की वैक्सीन से होने वाले नुकसान की आशंकाओं की वजह से ही काफी कम चल रही है. हालांकि लंदन से आई इस रिसर्च को बहुत आलोचनाएं भी झेलनी पड़ी हैं और कई फोरम पर वर्ल्ड हेल्थ काउंसिल में जारी की गई इस रिसर्च और प्रजेंटेशन का भारी विरोध हुआ है.
---