Center Ordinances: विपक्षी एकता में कांग्रेस बनी 'बाधा', जानें क्यों नहीं है AAP को समर्थन देने का इरादा
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Center Ordinances: विपक्षी एकता में कांग्रेस बनी 'बाधा', जानें क्यों नहीं है AAP को समर्थन देने का इरादा

Center Ordinances: दिल्ली में अपनी राजनीतिक जमीन खो रही कांग्रेस के लिए ये दोनों ही राहें मुश्किल हैं. अगर कांग्रेस केंद्र सरकार के अध्यादेश के विरोध में AAP को समर्थन नहीं देती तो 2024 लोकसभा चुनाव में एक राष्ट्रीय पार्टी (AAP) का साथ खो सकती है. वहीं अगर AAP का समर्थन करती है तो दिल्ली में कांग्रेस की बची हुई राजनीतिक साख भी खत्म हो जाएगी.

Center Ordinances: विपक्षी एकता में कांग्रेस बनी 'बाधा', जानें क्यों नहीं है AAP को समर्थन देने का इरादा

Center Ordinances: दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई 2023 को दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला तो सुनाया, लेकिन 19 मई 2023 को केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार(GNCTD)(संशोधन) अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया और 'सेवा विभाग' से जुड़ी शक्ति उपराज्यपाल के हाथों में सौंप दी. किसी भी अध्यादेश को अगले 6 महीने के भीतर बतौर बिल/विधेयक संसद में पेश होना होता है और लोकसभा-राज्यसभा से पास होने की कसौटी पर खरा उतरना होता है. लोकसभा में NDA के पास 334 सांसद हैं, जो अध्यादेश के पक्ष में वोट करेंगे और 301 सांसदों वाली BJP लोकसभा में बहुमत में ही है. राज्यसभा में BJP के पास बहुमत नहीं है. ऐसे में जहां केंद्र ने अध्यादेश लाकर अपने संवैधानिक अधिकार का उपयोग किया वहीं AAP के पास ये भी ये अधिकार है कि अध्यादेश के खिलाफ वो अन्य दलों का समर्थन हासिल कर राज्यसभा में बिल को पास होने से रोक सके.

वर्तमान में राज्यसभा में 7 सीटें खाली हैं और कुल 238 राज्यसभा सांसद सदन में हैं. यानी विधेयक को पास होने के लिए राज्यसभा में बहुमत का जादूई आंकड़ा 120 है. अब गणितीय समीकरण समझें तो राज्यसभा में BJP के 93 सांसद हैं, जिनमें 88 चयनित और 5 मनोनीत सांसद शामिल हैं. राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत पी टी उषा, रंजन गोगोई, वी विजयेंद्र प्रसाद, इलैयाराजा और वीरेंद्र हेगड़े जैसे 5 सांसद किसी भी राजनीतिक दल से संबद्ध नहीं हैं, लेकिन इनका समर्थन NDA के साथ होगा, इसकी संभावना ज्यादा है. इस समीकरण के चलते अध्यादेश के पक्ष में 111 वोटों का आना लगभग तय है.

अब विपक्ष के समीकरण पर आएं तो उच्च सदन में आम आदमी पार्टी के पास महज 10 राज्यसभा सांसद हैं. ऐसे में अरविंद केजरीवाल लगातार राजनीतिक दलों से संपर्क साधकर अपने संख्याबल को मजबूत करने की कवायद कर रहे हैं. उच्च सदन में दूसरा सबसे बड़ा दल कांग्रेस है, जिसके 31 राज्यसभा सांसद यदि अरविंद केजरीवाल को समर्थन देने के लिए राजी हो जाते हैं तो विधेयक के खिलाफ वोटिंग में आम आदमी पार्टी की ताकत में करीब तीगुना इजाफा हो सकता है.

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राज्यसभा में तीसरा सबसे बड़ा दल ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस है, जिसकी सुप्रीमो ममता बनर्जी कोलकाता में अरविंद केजरीवाल से मुलाकात के बाद 12 सांसदों के समर्थन का वादा कर चुकी हैं. इससे पहले दिल्ली में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से मुलाकात के बाद अरविंद केजरीवाल को JDU के 5 और RJD के 6 राज्यसभा सांसदों का साथ भी मिल गया है. नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार से मुंबई में मिलकर अरविंद केजरीवाल ने NCP के 4 सांसदों का समर्थन हासिल कर लिया है और शिवसेना के उद्धव गुट का समर्थन भी उन्हें 3 सांसदों की ताकत देगा. BRS प्रमुख और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने भी अपने 7 सांसदों के समर्थन का आश्वासन अरविंद केजरीवाल को दिया है. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट) के राष्ट्रीय महासचिव सीताराम येचुरी से मिलने के बाद अरविंद केजरीवाल को 5 और सांसदों का साथ मिला.

1 जून को तमिलनाडु के सीएम एम के स्टालिन से चेन्नई में हुई मुलाकात के बाद 10 सांसदों वाली द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम का समर्थन भी अरविंद केजरीवाल को मिल गया है, वहीं आज यानी 2 जून को रांची में झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन से मिलने के बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा का समर्थन जुटाकर अरविंद केजरीवाल को 2 और सांसदों का समर्थन मिल चुका है. इन सब मुलाकातों के बाद लग रहा है कि अरविंद केजरीवाल ने खूब मेहनत की , लेकिन नतीजा महज 64 के आंकड़े तक पहुंचा है, जो 120 के बहुमत के आंकड़े से तकरीबन आधा है.

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अब बात करते हैं उन 3 निर्णायक दलों की, जो अरविंद केजरीवाल की AAP, दिल्ली और दिल्ली के अधिकारियों की किस्मत तय करेंगे. पहली पार्टी 31 सांसदों वाली कांग्रेस है, जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और पूर्व सांसद राहुल गांधी से दिल्ली के सीएम ने मिलने का वक्त मांगा है. हालांकि सूत्रों का कहना है कि दिल्ली कांग्रेस के नेताओं ने खड़गे के साथ बैठक में आम आदमी पार्टी को समर्थन नहीं देने का सुझाव दिया. दिल्ली में अपनी राजनीतिक जमीन खो रही कांग्रेस के लिए ये दोनों ही राहें मुश्किल हैं. अगर समर्थन नहीं देते तो 2024 लोकसभा चुनाव में एक राष्ट्रीय पार्टी (AAP) का साथ खो सकते हैं और समर्थन करते हैं तो दिल्ली में कांग्रेस की बची हुई राजनीतिक जमीन भी खिसक सकती है.

दूसरी निर्णायक पार्टी है युवाजना श्रामिका रैतु कांग्रेस पार्टी(YSRCP),जिसके 9 राज्यसभा सांसद अगर दिल्ली सरकार का साथ दे दें, तो विपक्ष की ताकत बढ़ने से उतना असर नहीं होगा, जितना ज्यादा असर NDA की ताकत कम होने से होगा. हालांकि, आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री वाई एस जगनमोहन रेड्डी की पार्टी हमेशा से कई मुद्दों पर BJP के साथ खड़ी नजर आई है. दिल्ली के अधिकारियों के तबादले और नियुक्ति को लेकर YSR कांग्रेस ने अपना मत तो स्पष्ट नहीं किया है, लेकिन दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने के मुद्दे पर YSRCPऔर AAP का मत हर मंच पर अलग-अलग रहा है. ऐसे में जिसकी संभावना काफी अधिक है, वो समीकरण बैठ जाए यानी अगर YSRCP के 9 निर्णायक वोट NDA के पक्ष में जाते हैं, तो 111 सांसदों के मतों के साथ मिलकर अध्यादेश के पक्ष में 120 वोट मिल सकते हैं और सिर्फ YSRCP का समर्थन NDA की जीत तय कर सकता है.

तीसरी निर्णायक राजनीतिक पार्टी है बीजू जनता दल, जिसके 9 सांसद संभवत: NDA के साथ ही जाएंगे, जिसके बाद अध्यादेश के पक्ष में 129 वोट पड़ सकते हैं. इतिहास गवाह रहा है कि ओडिशा के मुख्यमंत्री और BJD के अध्यक्ष नवीन पटनायक संसद में ज्यादातर BJP के साथ खड़े रहे हैं और जब साथ नहीं दिया, तब मतदान से दूर रहे हैं. ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि BJP की 'गुड बुक्स' में रहने वाली विपक्षी पार्टियों की फहरिस्त में BJD सबसे ऊपर है.  अगर मान लिया जाए कि YSRCP के सांसद अध्यादेश के खिलाफ मतदान करें या मतदान से दूरी भी बना लें, तो BJD के 9 सांसदों का समर्थन भी 120 के आंकड़े तक पहुंचने में केंद्र सरकार की जीत सुनिश्चित कर देगा.

राज्यसभा में 1-1 सांसदों वाली बहुजन समाज पार्टी (BSP),तेलुगु देशम पार्टी (TDP) और जनता दल (सेक्युलर) यानी JD(S)ने भी अब तक न तो दिल्ली सरकार को समर्थन का वादा किया है, न ही केंद्र सरकार को. वैसे भी इन दलों के सहयोग की जितनी जरूरत AAP को है, उतनी BJP को नहीं. BJP के लिए अध्यादेश पारित करवाना जितना आसान है, आम आदमी पार्टी के लिए इसे पास होने से रोक पाना उतना ही कठिन.

अगर YSRCP, BJD, BSP, TDP और JD(S) का समर्थन NDA के साथ है, तो अध्यादेश के पक्ष में 132 मत पड़ सकते हैं, लेकिन अगर विपक्षी एकता का परिचय देने के लिए आतुर होकर ये 5 दल AAP का साथ देते हैं, तब भी विपक्ष के पास 85 वोट होंगे और मान भी लें कि कांग्रेस AAP का साथ दे, तो कांग्रेस के समर्थन के बाद भी 116 वोट ही हो पाएंगे। तब भी विधेयक को पास करने से रोकने के लिए 4 वोट्स की दरकार होगी.

ये परिस्थितियां भी तब बनेंगी, जब सभी दल मतदान में हिस्सा लें, किसी भी दल का मतदान में तटस्थ होना, केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार दोनों का पलड़ा हल्का करेगा.

कुल मिलाकर अरविंद केजरीवाल के लिए केंद्र के अध्यादेश को राज्यसभा में पास होने से रोक पाना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा. AAP के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल अध्यादेश के खिलाफ मतदान को '2024 का सेमीफाइन' बता रहे हैं. फिर भी AAP अध्यादेश के खिलाफ कितना समर्थन जुटा सकेगी, ये उनकी लगन और भाग्य पर निर्भर करता है, लेकिन इन बैठकों का फायदा उसे 2024 के चुनावों में मिलना तय है.