Delhi Assembly Election 2025: आप संयोजक अरविंद केजरीवाल ने राजनीतिक दलों को आईना दिखाने के साथ सवाल उठाया है कि जनता के पैसे का इस्तेमाल जनता को लाभ पहुंचाने के लिए क्यों नहीं किया जा सकता, क्यों दिल्ली की तरह पूरे देश में फ्री बिजली नहीं दी जा सकती.
Trending Photos
Delhi Vidhan Sabha Chunav 2025: दिल्ली के विधानसभा चुनाव नजदीक हैं. राजनीतिक दलों ने अपनी सियासी बिसात बिछा दी है. इस बीच एक शब्द अक्सर सुनने को मिलता है सियासत का दिल्ली मॉडल. ये आखिर है क्या चीज, जिसने देश की सबसे बड़ी और सबसे पुरानी पार्टियों की नींद उड़ाकर रख दी है. मुफ्त बिजली का लाभ दिल्ली में रह रहे प्रत्येक परिवार को मिला. दिल्ली का अंधेरा दूर करने में आम आदमी पार्टी की सरकार को साल में 3,500 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े. जब दिल्ली मॉडल पंजाब पहुंचा तो वहां की जनता ने भी आम आदमी पार्टी को सिर आंखों पर बैठा लिया. जब दो राज्य गंवाने के बाद बड़े राजनीतिक दलों की नींद खुली तो उनके सामने था केजरीवाल का दिल्ली मॉडल. सियासी पार्टियों ने मुफ्त सुविधाओं को मुफ्तखोरी का नाम देकर उसे देश के विकास के लिए घातक बताया. वहीं केजरीवाल ने जनसाधारण को ये समझाने की कोशिश की कि जनता से वसूले जिस टैक्स से राजनीतिक दलों के नेताओं, बड़ी कंपनियों और नामी गिरामी परिवारों को अगर सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकती हैं तो आम लोगों को क्यों नहीं. क्यों इस लाभ को किसी दायरे तक सीमित रखा जाए. अब लाख टके का सवाल यही है कि क्या देश के स्तर पर भी असंभव मानी जा रही है सब्सिडी आधारित मुफ्त बिजली आम लोगों को मिलना संभव हो सकेगा?
सिर्फ 12 साल पहले बनी आम आदमी पार्टी ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत देश की राजधानी दिल्ली से की. इसके लिए आप आदमी पार्टी ने लोगों को भरोसा दिलाया कि उनकी रोजमर्रा से जुड़ी जरूरतों का वह पूरा ध्यान रखेगी और यही से पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल का दिल्ली मॉडल निकलकर सामने आया. दिल्ली की सत्ता में काबिज होने के बाद अरविंद केजरीवाल ने सबसे पहले 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने की शुरुआत कर दी. दिल्लीवासियों के लिए किसी गिफ्ट से कम नहीं था और ऐसा भी नहीं है कि आम आदमी पार्टी की सरकार ने ये तोहफा जात-पात या अमीर-गरीब की हैसियत को देखकर किसी ख़ास वर्ग को ही दिया. इसके अलावा मुफ्त पानी, महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में जनता को लाभान्वित करने वाली पॉलिसी इसी दिल्ली मॉडल का हिस्सा हैं. अरविंद केजरीवाल इनकम टैक्स कमिश्नर के साथ-साथ अच्छे अकाउंटेंट भी रहे हैं. राजनीति में आने के बाद उन्होंने सब कुछ जोड़ लिया, आकलन कर लिया है, हिसाब लगा लिया और लोगों को ये भरोसा दिलाया कि जिसे दुनिया असंभव मानती है, उसे आपका बेटा संभव कर सकता है. केजरीवाल की पूरी सियासत इसी भरोसे के इर्द-गिर्द है.
दिल्ली की तर्ज पर सियासत का राष्ट्रीय मॉडल
क्या अरविंद केजरीवाल दिल्ली मॉडल की तर्ज पर सियासत का राष्ट्रीय मॉडल खड़ा कर पाएंगे. अगर ऐसा हुआ तो तीसरे नंबर की राष्ट्रीय पार्टी दूसरे या पहले बनने की होड़ में जरूर दिखने लग जाएगी जो फिलहाल कोसों दूर लगता है. केजरीवाल का दावा है कि जब दिल्ली में अंधेरा 3500 करोड़ की सब्सिडी से दूर हो सकता है तो पूरे देश का अंधेरा 1.80 लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी देकर दूर क्यों नहीं हो सकता? सब्सिडी के 1.80 लाख करोड़ का आकलन खुद अरविंद केजरीवाल ने देश के सामने रखा है. सातों दिन 24 घंटे निर्बाध रूप से बिजली आपूर्ति दिल्ली के बिजली मॉडल की खासियत है.
देश में बिजली की कमी नहीं
आप संयोजक अरविंद केजरीवाल का कहना है कि देश में बिजली की कमी नहीं है. दिल्ली तो स्वयं बिजली का उत्पादन तक नहीं करता, मगर प्रबंधन करना बेहद जरूरी है. ऐसा कैसे हो सकता है कि अपने देश की बिजली का उत्पादन झारखंड के गोड्डा में हो और उसी राज्य में ही 24 घंटे बिजली की सप्लाई सुनिश्चित किए बगैर उसका निर्यात कर दिया जाए? बांग्लादेश को 1600 मेगावाट बिजली बेच दी जाए. बिजली से सालाना 1 अरब डॉलर की कमाई बड़ी कमाई है, लेकिन ये देश का अंधेरा दूर करने की प्राथमिकता से बड़ी कमाई नहीं हो सकती.
जेल जाना भी दिल्ली मॉडल की सियासत का तरीका
आम आदमी पार्टी ने हमेशा आमजन को समझने की कोशिश की है की अगर अडानी के हाथों अगर केजरीवाल सरकार ने बिजली का सौदा कर लिया होता तो दिल्ली के लोगों को मुफ्त बिजली नहीं मिलती. केजरीवाल की मानें तो बिजली इतनी महंगी हो जाती कि उसका खर्च आम लोग वहन ही नहीं कर पाते. उन्होंने हमेशा कहा कि भले ही उन्हें जेल जाना पड़े, मुख्यमंत्री का पद गंवाना पड़े, लेकिन आम जनता के कल्याण के लिए वह किसी धनकुबेर के सामने झुकेंगे नहीं.
पूरे देश में बिजली पर सब्सिडी कैसे मिलेगी?
अब सवाल पैदा होता है कि पूरे देश में सब्सिडी के लिए रकम कैसे जुटाई जाएगी? पैसा कहां से आएगा. विदेशी अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी का कहना है कि अगर देश के 100 अरबपतियों पर 2 प्रतिशत टैक्स लगाने से डेढ़ लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कलेक्शन हो सकता है तो लगभग यही रकम तो चाहिए देश को फ्री बिजली या बिजली बिल पर सब्सिडी देने के लिए.
दिल्ली मॉडल का व्यापक असर
आम आदमी पार्टी की सरकार में दिल्ली के 37 लाख परिवारों को मुफ्त बिजली देना संभव हुआ है तो इसका मतलब है कि 54.73% परिवारों को मुफ्त बिजली मिली है. दिल्ली में मोटे तौर पर 67.6 लाख परिवार रहते हैं. देशभर में 30.24 करोड़ परिवार हैं. ऐसे में दिल्ली की तर्ज पर 16.55 करोड़ परिवारों को मुफ्त बिजली देने की चुनौती सरकार के सामने होगी. इसी तरह अगर आधे बिल माफ वाले आंकड़े लें तो दिल्ली में 15 लाख यानी 22.18% परिवारों के बिजली बिल माफ हुए. इस हिसाब से ये आंकड़ा राष्ट्रीय स्तर पर 6.70 करोड़ परिवार हो जाता है.
अब अगर मुफ्त बिजली और हाफ बिजली बिल वाले परिवारों की संख्या को जोड़ें तो यह संख्या राष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली की तर्ज पर 23.25 करोड़ परिवार हो जाती है तो क्या इतनी बड़ी आबादी को मुफ्त या आधे बिल पर बिजली देने के लिए देश 1.80 लाख करोड़ रुपये खर्च नहीं कर सकता? केजरीवाल की सोच भले ही जनता के भले की हो, लेकिन इस सोच ने अन्य राजनीतिक दलों के सामने एक चुनौती तो फिलहाल रख दी है, जिस पर उन्हें भी विचार करना पड़ सकता है, क्योंकि दिल्ली मॉडल का प्रभाव न होता तो मुफ्तखोरी-मुफ्तखोरी कहकर चिढ़ाने वाले दल स्वयं चुनाव से पहले मतदाताओं के समक्ष फ्री योजनाओं का पिटारा न खोलते.