Kargil Vijay Diwas 2022: कारगिल युद्ध के दौरान भारतीय सेना किसी भी कीमत पर टाइगर हिल पर पाकिस्तानियों का कब्जा नहीं चाहती थी. इसलिए 18 ग्रेनेडियर्स के एक प्लाटून को टाइगर हिल के बेहद अहम तीन दुश्मन बंकरों पर कब्जा करने का दायित्व सौंपा गया था. इन बंकरों तक पहुंचने के लिए ऊंची चढ़ाई करनी थी. ये चढ़ाई आसान नहीं थी. मगर प्लाटून का नेतृत्व कर रहे योगेन्द्र यादव ने इसे संभाला. जानें क्या है पूरी कहानी
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Kargil Vijay Diwas 2022: देशभर में हर साल 26 जुलाई के दिन कारगिल विजय दिवस (Vijay Diwas) मनाया जाता है. आज के दिन कारगिल में भारत और पाकिस्तान के बीच पूरे 60 दिनों तक चलने वाले युद्ध पर विराम लगा था और भारत ने इस युद्ध में जीत हासिल की थी. साल 1999 में पाकिस्तानी आतंकी और सैनिक चोरी-छिपे कारगिल (Kargil) की पहाड़ियों से देश में घुस आए थे और इन्हीं घुसपैठियों के खिलाफ भारतीय सेना ने 'ऑपरेशन विजय' शुरू किया था.
कारगिल में इतने सैनिकों ने दी शहादत
बता दें कि 26 जुलाई यानी की आज के ही दिन भारतीय सेना ने अपने दम पर कारगिल की पहाड़ियों से घुसपैठियों को उल्टे पांव लौटाया था. तभी से इस दिन को कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस युद्ध में 500 से ज्यादा भारतीय जवान शहीद हुए थे. हर साल आज के दिन देश में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. आज हम 'विजय दिवस' की 23वीं वर्षगांठ मना रहे हैं और इस अवसर पर उन वीर योद्धाओं के साहस और बलिदान को याद किया जाता है.
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सीने पर खाई 15 गोलियां, फिर कर दिए दुश्मन के दांत खट्टे
'विजय दिवस' के इस खास अवसर पर हम यह गौरव गाथा हम 19 साल के परमवीर चक्र प्राप्त करने वाले ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव की है. 10 मई, 1980 में उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले में औरंगाबाद अहिर गांव में योगेन्द्र यादव (Grenadier Yogendra Singh Yadav) का जन्म हुआ था. पिता पहले ही भारतीय सेना का हिस्सा रह चुके थे और पिता से शौर्य के किस्से कहानियों सुनकर ही योगेंद्र बड़े हुए और 1996 में महज 16 साल की उम्र में फौज में भर्ती हो गए.
यह बात उन दिनों की जब गांव का डाकिया योगेंद्र की सेना भर्ती की चिट्ठी लेकर आया तो उनकी खुशी का ठिकाना ही रहा. उस वक्त उन्होंने पिता आशीर्वाद लिया और सेना ट्रेनिंग के लिए निकल गए. मिलिट्री ट्रेनिंग के बाद यानी की 1999 में ही योगेंद्र शादी के बंधन में बंधे थे. कुछ दिन ही हुए थे कि सेना मुख्यालय से एक आदेश आया, जिसमें लिखा था कि तुरंत अपना सामान बांधे और कारगिल पहुंचे. उस वक्त योगेंद्र देश के लिए लड़ने का मौका नहीं छोड़ना चाहते थे.
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कारगिल युद्ध में मिली थी ये बड़ी जिम्मेदारी
बता दें कि जिस वक्त वो जम्मू कश्मीर पहुंचे तो उन्हें पता चला कि कमांडो 'घातक' प्लाटून का हिस्सा थे और टाइगर हिल पर तीन रणनीतिक बंकरों पर कब्जा करने की जिम्मेदारी उन्हें दी गई है. 18 ग्रेनेडियर्स के ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव ने हमले का नेतृत्व किया और चट्टान पर चढ़ाई की. उनका काम था बाकी की प्लाटून के लिए चट्टान पर रस्सियां लगाना था. कारगिल युद्ध के दौरान 4 जुलाई 1999 की कार्रवाई के लिए उन्हें भारत में सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.
इस युद्ध के दौरान योगेंद्र ने अपने सीने पर 15 गोलियां खाई थी, लेकिन इसके बावजुद उन्होंने हार नहीं मानी, इस दौरान उनका काफी खून बह चुका था. इसलिए वो ज्यादा वक्त तक होश में नहीं रहे पाए और इत्तेफाक से वह एक नाले में जा गिरे और बहते हुए नीचे आ गए. भारतीय सैनिकों ने उन्हें बाहर निकाला और इस तरह से उनकी जान बच सकी और कारगिल पर भारतीय तिरंगा लहराया गया.
आपको बता दें कि युद्ध के बाद योगेंद्र सिंह यादव को अपनी बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से नवाज़ा गया. वर्तमान में भी वो भारतीय सेना को अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इस पूरे युद्ध में योगेंद्र सबसे कम उम्र के सैनिक है. जिन्हें यह सम्मान प्राप्त है. हाल ही में उन्हें 'Rank of Hony Lieutenant' से नवाजा गया.
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