Anti Depressant: बुरे से बुरा गम भुला देगी 'म्यूजिक थेरेपी', नहीं पड़ेगी दवाओं की जरूरत
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Anti Depressant: बुरे से बुरा गम भुला देगी 'म्यूजिक थेरेपी', नहीं पड़ेगी दवाओं की जरूरत

अगर आप भी इन दिनों अवसाद से ग्रस्त हैं तो म्यूजिक थेरेपी के प्रयोग से आप बुरे से बुरा गम मिनटों में अपने जीवन से हमेशा के लिए दूर कर सकते हैं. तो चलिए हमारे साथ जानें कि कैसे म्यूजिक थेरेपी से अवसाद को कैसे दूर किया जा सकता है.   

Anti Depressant: बुरे से बुरा गम भुला देगी 'म्यूजिक थेरेपी', नहीं पड़ेगी दवाओं की जरूरत

Anti Depressant: दशकों से दुनिया को अवसाद यानी डिप्रेशन की एक परिभाषा पढ़ाई जा रही है कि दिमाग में मौजूद serotonin केमिकल का जब imbalance होता है यानी serotonin केमिकल जब दिमाग में तय मात्रा से कम या ज्यादा होता है तब व्यक्ति अवसाद का शिकार हो जाता है. 60 के दशक में यह परिभाषा दुनिया के सामने रखी गयी थी और 90 का दशक आते-आते इसी परिभाषा के आधार पर Anti-Depression दवाओं ने बाजार में कब्जा कर लिया.

आज दुनियाभर की मार्केट में Anti Depressant दवाओं की भरमार है और अवसाद से शिकार व्यक्ति को डॉक्टर ठीक होने के लिए Anti Depressant दवा देते हैं जिसका काम दिमाग में serotonin के लेवल को maintain करना है, लेकिन ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के वैज्ञानिकों की विश्व प्रसिद्ध जर्नल नेचर में छपी स्टडी के मुताबिक कोई भी व्यक्ति अवसाद का शिकार दिमाग में serotonin के लेवल के कम ज्यादा होने से नहीं होता है और अवसादग्रस्त व्यक्ति को दी जाने वाली Anti Depressant दवाएं उसे फायदा तो नहीं करती हैं लेकिन नुकसान बेहद ज्यादा करती हैं.

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देखिये हमारी यह खास रिपोर्ट:-

साल 1969 में ब्रिटिश साइकैट्रिस्ट एलेक कॉपन, रूसी वैज्ञानिक आई पी लैपिन और ग्रेगरी ऑक्सेनक्रुग ने अवसाद पर एक hypothesis दी थी कि व्यक्ति के दिमाग में मौजूद serotonin केमिकल जब कम या ज्यादा होता है तब वह व्यक्ति अवसाद का शिकार हो जाता है. क्योंकि जीवित व्यक्ति के दिमाग मे मौजूद केमिकल को मापा नहीं जा सकता है. इसीलिए यह सिर्फ एक अंदाजा था जो उस समय वैज्ञानिकों ने लगाया था और इस अंदाजे को Serotonin Hypothesis नाम दिया गया था.

इसी Hypothesis को केंद्र मे रख कर साल 1990 के बाद से विश्व भर की दवा बाजार में Anti Depressant दवाओं का अंबार लग गया जिनका काम दिमाग में serotonin के level को ठीक करना था और Anti Depressant दवाओं का जो बाजार 1991 में 100 करोड़ डॉलर के आसपास का था वो 2020 में 1500 करोड़ से ज्यादा का हो गया, लेकिन इस Anti Depressant दवा के बाजार को ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के वैज्ञानिकों की 20 जुलाई को जर्नल नेचर में छपी रिपोर्ट ने कड़ी मार दी है.

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यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के वैज्ञानिकों ने डिप्रेशन पर की गई अपनी umbrella रिसर्च में डिप्रेशन के शिकार लोगों और स्वस्थ लोगों के डेटा को analyze किया और वैज्ञानिकों ने पाया कि दिमाग में serotonin के लेवल के कम या ज्यादा होने से किसी व्यक्ति को अवसाद नहीं होता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक depression से पीड़ित और स्वस्थ लोगों के डेटा को analyze करने के बाद उन्होंने पाया कि 80% से ज्यादा स्वस्थ और डिप्रेशन का शिकार लोगों के दिमाग में serotonin का लेवल लगभग बराबर ही था.

ऐसे में serotonin hypothesis जिसके सहारे सालों से दवा कंपनियां अपनी अवसाद रोधी दवाएं खिला रही है वो गलत है serotonin के लेवल को ठीक करने का दावा करने वाली anti depressant दवाओं के बारे में लंदन  के वैज्ञानिकों ने कहा कि ये दवाएं किसी placebo से कम नहीं है और इनका कोई बेहतर असर depression से झूझ रहे व्यक्ति पर नहीं होता है. हां खराब असर जरूर होता है क्योंकि ये दवाएं व्यक्ति के दिमाग को सुन्न यानी numb कर देती है जिससे व्यक्ति के मूड में बदलाव होने लगते हैं और वो चिड़चिड़ा हो जाता है.

अब आप सोच रहें होंगे कि अगर कोई व्यक्ति अवसाद से ग्रसित हो तो उसे क्या करना चाहिए? अमेरिका की Northeastern University ने अपनी रिसर्च में बताया था कि अगर कोई व्यक्ति अवसाद से ग्रस्त है तो उसे म्यूजिक थेरेपी का प्रयोग करना चाहिए, जिससे उसका दिमाग शांत होगा और उसे अवसाद और चिंता से छुटकारा मिलेगा. अपनी रिसर्च में वैज्ञानिकों ने पाया था कि रोज कम से कम 1 घण्टे म्यूजिक सुनने या म्यूजिकल instrunmets को बजाने वाले मरीज अवसाद से बाकी मरीजों से जल्दी ठीक हुए.

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ऐसा ही कुछ हमें दिखा नोएडा के Spine Clinic पर जहां बुजुर्गों को डिप्रेशन से दूर रखने के लिए एक विशेष सेशन चलाया था जिसमें उनसे musical instrunments बजवाये जा रहे हैं ताकि वो अवसाद से दूर रहें.  विशेषज्ञों के मुताबिक आज के दौर में मानसिक रोग के अहम समयस्या बन चुकी है और अगर कोई व्यक्ति इससे प्रभावित होता है तो सबसे पहले उसे अपने बीच एक स्वस्थ वातावरण बनाना चाहिए जिससे वो अवसाद से दूर हो सकें यह स्वस्थ वातावरण म्यूजिक, डांस, एक दूसरे से बातचीत किसी के भी आधार पर हो सकता है.

आज के दौर में जब भारत के 4 करोड़ से ज्यादा लोग मानसिक रोग का शिकार हैं तो ऐसे में ये मानसिक अन्य रोगों के भी कारक बने जा रहे हैं. डॉक्टरों के मुताबिक उनके पास आज अगर कोई व्यक्ति रीढ़ की हड्डी में झुकाव, POSTURE में खराबी की शिकायत ले कर आ रहा है तो उसकी जड़ मानसिक रोग से ही जुड़ी है क्योंकि इसने व्यक्ति की दिनचर्या को बिगाड़ दिया है. इसी वजह से डॉक्टर आज मरीजों को अवसाद और मानसिक बीमारियों से दूर करने के लिए Mental Welness प्रोग्राम तक चला रहे हैं.

मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ रही है तो दूसरी तरफ दवा कम्पनियों का मुनाफा भी. आज विश्व के 26 करोड़ से ज्यादा लोग अवसाद का शिकार हैं और 2030 तक यह संख्या 30 करोड़ पार करने का अनुमान है. ऐसा ही अनुमान anti depressant की बाजार बढ़ने का है. साल 2020 में 1500 करोड़ डॉलर की अवसादरोधी दवाओं के बाजार का 2030 तक 2100 करोड़ डॉलर तक बढ़ने का अनुमान है. ऐसे में विशेषज्ञों की माने तो अभी जरूरत है ऐसी रिसर्च की जो फार्मा फंडेड ना हो बल्कि लोगों के हितों के लिए हो. ताकि लोग और डॉक्टर अवसाद के सही कारणों और सही दवाओं के बारे में जान पाए.

आपको बता दें कि साल 1969 में अवसाद पर आई SEROTONIN HYPOTHESIS सिर्फ एक अंदाजा ही रह गयी क्योंकि जीवित व्यक्ति के दिमाग में मौजूद केमिकल को पक्के तौर पर मापना असम्भव है जिस कारण DEPRESSION SEROTONIN के IMBALNACE की वजह से ही होता है यह लैब में सिद्ध नही हो पाया और ना ही यह थ्योरी बन पाई लेकिन हां इस एक HYPOTHESIS ने दवा कंपनियों को अरबो जरूर कमवा दिए.

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