बिहार: 26 साल की उम्र में तेजस्वी बने थे डिप्टी CM, अब पिता लालू की गैरमौजूदगी में होगी 'अग्निपरीक्षा'
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बिहार: 26 साल की उम्र में तेजस्वी बने थे डिप्टी CM, अब पिता लालू की गैरमौजूदगी में होगी 'अग्निपरीक्षा'

बिहार की राजनीति में जब भी युवा नेताओं की बात होती है तो उसमें एक नाम बहुत तेजी से राज्य की राजनीतिक फलक पर तैरता है और वो है आरजेडी के युवराज तेजस्वी यादव का.

26 साल की उम्र में तेजस्वी यादव बिहार के डिप्टी CM बन गए थे. (फाइल फोटो)

पटना: बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Vidhansabha Chunav 2020) में मुख्य सियासी संग्राम एनडीए (NDA) बनाम आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन (Mahagathbandhan) के बीच में हैं. एनडीए जहां नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव में जा रही है तो वहीं, महागठबंधन का अभी चेहरा तय नहीं है. लेकिन आरजेडी नेताओं का कहना है कि तेजस्वी यादव ही महागठबंधन के मुख्यमंत्री फेस हैं.

दरअसल, बिहार की राजनीति में जब भी युवा नेताओं की बात होती है तो उसमें एक नाम बहुत तेजी से राज्य की राजनीतिक फलक पर तैरता है और वो है आरजेडी (RJD) के 'युवराज' तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) का. तेजस्वी यादव की पहचान तो वैसे आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) और राबड़ी देवी (Rabri Devi) के छोटे बेटे के तौर पर होती है. लेकिन बीते 3 साल में तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) का चेहरा जिस तेजी से प्रमुख नेता के तौर पर बिहार में उभरा है, उससे इंकार नहीं किया जा सकता है.

जीवन परिचय
तेजस्वी यादव का जन्म 10 नवंबर 1989 को बिहार के बड़े राजनीतिक घराने में हुआ था. तेजस्वी यादव के पिता लालू यादव और माता राबड़ी देवी दोनों बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. साथ ही 15 साल तक आरजेडी का बिहार की सियासत में एकछत्र राज था. इसलिए तेजस्वी के लिए राजनीति कोई नई चीज नहीं थी. लेकिन तेजस्वी यादव राजनीति के बजाए क्रिकेट में अपना कैरियर बनाना चाहते थे. लेकिन किस्मत ने क्रिकेट की पिच पर तेजस्वी का साथ नहीं दिया और वह राजनीति में चले आए.

क्रिकेट प्रेम
तेजस्वी एक मीडिल ऑर्डर बल्लेबाज थे और उन्होंने एक रणजी ट्रॉफी (Ranji Trophy) और सीमित ओवर क्रिकेट में 2 मैचों झारखंड के लिए खेले हैं. साथ ही 2008, 2009, 2011 और 2012 में वह आईपीएल (IPL) में दिल्ली डेयरडेविल्स (अब दिल्ली कैपिटल्स) की टीम का हिस्सा रह चुके हैं. लेकिन जब क्रिकेट की पिच पर तेजस्वी को सफलता नहीं मिली तो वह राजनीतिक की पिच पर उतर आए और अपने पहले ही मैच में छक्का छड़ दिया.

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मोदी लहर में किया किला फतह
दरअसल, 2015 में राजनीति में एंट्री करने वाले तेजस्वी यादव ने बिहार विधानसभा चुनाव में वैशाली की राघोपुर सीट से चुनाव लड़ा और 91, 236 मतों से बीजेपी (BJP) के सतीश कुमार को हरा दिया. ये वही सतीश कुमार थे जिन्होंने 2010 में राबड़ी देवी को चुनाव में पटकनी दे दी थी. तेजस्वी की जीत उस वक्त हुई थी जब पूरे देश में बीजेपी और नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की लहर थी और 2014 के लोकसभा समेत हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र चुनाव में विपक्ष पूरी तरह से धरासाई हो गया था.

सबसे युवा डिप्टी CM
उस वक्त बिहार में एनडीए के रथ को महागठबंधन ने रोका था. बता दें कि 2015 के चुनाव में जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस ने गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा था और परिणामस्वरूप ऐतिहासिक जीत हासिल की थी. इसके बाद राज्य में महागठबंधन की सरकार बनी. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) सीएम और तेजस्वी यादव राज्य के पहले युवा डिप्टी सीएम बने.

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नेतृत्व की दिखाई क्षमता
हालांकि, डेढ़ साल बाद महागठबंधन बिखर गया और जेडीयू ने वापस बीजेपी के साथ मिलकर राज्य में सरकार बना ली और इस तरह आरजेडी सत्ता से बाहर हो गई. इसी के साथ आरजेडी का 'पतन' भी शुरू हो गया. लालू यादव को दोबारा जेल जाना पड़ गया और परिवार के खिलाफ कई तरह की जांच शुरू हो गई. लेकिन तेजस्वी घबराए नहीं और आगे आकर लगातार विपक्ष के नेता के रूप में सरकार की मुखालफत करते रहे.

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युवाओं में खासे लोकप्रिय
तेजस्वी सड़क से लेकर सदन तक लगातार नीतीश सरकार पर हमलावर रहे और यहां तक की नीतीश कुमार को उन्होंने 'पलटू राम' की उपाधि दे दी. इस बीच, बीते 3 वर्षों में तेजस्वी का जनाधार बढ़ता गया और वह युवाओं के बीच लगातार लोकप्रिय होते गए. इस बीच, 2019 में लोकसभा चुनाव हुए लेकिन तेजस्वी के नेतृत्व वाले महागठबंधन को बुरी हार का सामना करना पड़ा. लेकिन उन्होंने अपनी लड़ाई को जारी रखा और सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते रहे.

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तेजस्वी के सामने दोहरी चुनौती
उन्होंने बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अपराध, शिक्षा, सड़क, स्वास्थ्य, बाढ़ और कोरोना को लेकर लगातार नीतीश सरकार को घेरते रहे. इस बीच, चुनाव से पहले 'तेज रफ्तार तेजस्वी सरकार' का नारा बिहार में खूब उछल रहा है. लेकिन चुनाव के मुहाने पर खड़े बिहार में इस बार तेजस्वी के सामने दोहरी चुनौती है. पहला तो महागठबंधन में सामंजस्य बैठाकर दलों को एकजुट करना और दूसरा पिता की अनुपस्थिति में पार्टी के पुराने नेताओं को साथ लेकर चुनाव में जाना, लेकिन फिलहाल दोनों ही मोर्चे पर तेजस्वी अभी तक असफल दिख रहे हैं. क्योंकि इस बार पिता लालू यादव का बेटे के साथ आशीर्वाद तो है. लेकिन शारीरिक रूप से लालू तेजस्वी के साथ जेल में होने की वजह से खड़े नहीं हैं, जिसकी कमी साफ देखी जा रही है और तेजस्वी के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है.

नीतीश के सामने तेजस्वी
फिलहाल, 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार जैसे पुराने और अनुभव से भरपूर चेहरे के सामने तेजस्वी कैसे लालटेन को जलाए रख पाते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा. लेकिन यह कहने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए की तेजस्वी ने बहुत कम समय में बिहार की राजनीतिक फलक पर अपनी गहरी छाप छोड़ी है.