Shardiya Navratri: मां दुर्गा के शस्त्रों का महत्व जानते हैं आप? नहीं तो इस लेख को पढ़िए
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Shardiya Navratri: मां दुर्गा के शस्त्रों का महत्व जानते हैं आप? नहीं तो इस लेख को पढ़िए

क्या आपको पता है कि एक साल में 4 बार नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है. जिसमें से शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि के अलावा दो गुप्त नवरात्रि भी आती है. यह माघ, चैत्र, आषाढ़ और आश्विन के महीने में आता है.

(फाइल फोटो)

Shardiya Navratri: क्या आपको पता है कि एक साल में 4 बार नवरात्रि का त्योहार मनाया जाता है. जिसमें से शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि के अलावा दो गुप्त नवरात्रि भी आती है. यह माघ, चैत्र, आषाढ़ और आश्विन के महीने में आता है. ऐसे में आश्विन के महीने में पड़ने वाले इस नवरात्र को शारदीय नवरात्र के नाम से जाना जाता है. इस दिन मां दुर्गा के सभी 9 रूपों की हर दिन के हिसाब से पूजा की जाती है. 

मां शक्ति की उपासना से लोगों के सभी कष्ट और जीवन में आ रही परेशानियां दूर होती हैं. इससे भक्तों के जीवन में आने वाली सभी संकटों से छुटकारा मिल जाता है. इसके साथ ही अगर आपकी कुंडली में स्थित 9 ग्रह अगर दोषयुक्त हैं तो उनके अशुभ प्रभाव से भी मुक्ति मिल जाती है. 

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इस बार 15 अक्टूबर से शुरू होकर शारदीय नवरात्र 24 अक्टूबर तक चलेगा. जिसमें अलग-अलग दिन मां के अलग-अलग 9 रूपों की पूजा होगी. ऐसे में मां के अलग-अलग अस्त्रों-शस्त्रों की पूजा का भी विधान है. ऐसे में बता दें कि मां दुर्गा के ये अस्त्र-शस्त्र शक्ति का प्रतीक माने जाते हैं. ऐसे में मां अपने भक्तों को इसके जरिए सुरक्षित रखती हैं. 

मां के हाथ में धारण किया गया त्रिशुल त्रिदेव के रूप को दर्शाता है. यह शक्ति का प्रतीक भी है. यह आत्मरक्षा के लिए भी अहम माना गया है. सत्व, रजस और तमस गुणों के प्रतीक तीनों शूल के संतुलन से ही सृष्टि संचालित होती है. भगवान भोलेनाथ ने मां को यह त्रिशुल दिया था. 

मां ने चंड-मुंड का नाश करने के लिए तलवार का प्रयोग किया था. इसे मां को भगवान विघ्नहर्ता गणेश ने भेंट की थी. इसे ज्ञान का प्रतीक माना गया है. मां को भेंट में भाला अग्नि देव ने दिया था. वगीं भगवान विष्णु द्वारा मां को प्रदत्त चक्र दृढ़ संकल्प का प्रतीक है. जबकि मां के हाथ में वरुण देव का दिया शंख नकारात्मकता को मिटाने वाला माना गया है. वहीं देवराज इंद्र ने मां को घंटा भेंट में दिया था जो साहस को दर्शाता है. 
 

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