Hazaribagh: आम के पेड़ों की एक अनोखी कहानी, जानें लोचर गांव की खुशहाली का राज
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Hazaribagh: आम के पेड़ों की एक अनोखी कहानी, जानें लोचर गांव की खुशहाली का राज

Hazaribagh Samachar: हजारीबाग जिले का लोचर गांव हर तरफ आम के पेड़ की हरियाली से घिरा हुआ है. मात्र सत्तर परिवारों की आबादी वाले इस गांव में इन पेड़ों की वजह से न सिर्फ हरियाली है.

 

आम का आम, विकास का भी काम, खुशहाल हो रहा लोचर गांव (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Hazaribagh: अभी तक आपने आम के आम, गुठली के दाम वाली कहावत तो सुनी होगी. लेकिन, आज हम आपको आम के आम, विकास का काम की हकीकत से रूबरू कराएंगे. दरअसल, हजारीबाग जिले का लोचर गांव हर तरफ आम के पेड़ की हरियाली से घिरा हुआ है. मात्र सत्तर परिवारों की आबादी वाले इस गांव में इन पेड़ों की वजह से न सिर्फ हरियाली है, बल्कि हर तरफ खुशहाली भी है. इन पेड़ों को लगाने और फिर उसके विशाल रूप लेने की कहानी 1994 से शुरू होती है. तब सुधीर प्रसाद हजारीबाग जिले के उपायुक्त बनकर आए थे, उन्होंने कुछ अलग करने का सोचा. इसी सोच के तहत सुधीर प्रसाद ने केरेडारी प्रखंड के लोचर गांव के चारों तरफ वन भूमि पर आम के 300 पौधे लगाने का तत्कालीन डीएफओ बीके बरियार को निर्देश दिया. इसके बाद पौधे लगाने की शुरुआत हुई. अभियान के तहत तीन सौ पौधे लगाए गए, लेकिन उनमें से 200 पौधे ही बच पाए. उन पौधों ने अब विशाल रूप ले लिया है और उनमें बड़ी संख्या में फल लगने लगे है. 

स्वाद से भरे आम, खुशहाली के आ रहे काम
लोचर गांव की जमीन पर लगे इन आम के पेड़ों से न सिर्फ रसदार फल मिल रहे हैं, बल्कि वे बेहद स्वादिष्ट भी हैं, जिससे उनकी बाजार में काफी मांग है. सरकारी जमीन पर लगाए गए आम के इन पेड़ों पर लोचर गांव के लोगों का अधिकार है. खास बात यह है कि जब फल पककर तैयार हो जाता है तो पहले गांव वाले तय करते हैं कि उनके बीच कितनी संख्या में आम का वितरण होगा. तय संख्या के अनुसार आम गांव वाले आपस में बांटते हैं. फिर जो आम बचते हैं उन्हें बाजार में बेच दिया जाता है. आम को बेचकर जो पैसा मिलता है, उसका इस्तेमाल सामुदायिक विकास के कामों के लिए किया जाता है. इन पैसों से शौचालय, सड़क, नाली का निर्माण तो किया ही जाता है. साथ ही गांव में सिंचाईं सुविधा को दुरूस्त करने और मंदिर के लिए भी उसका सदुपयोग होता है. 

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आम की रखवाली, ईंट का भी इस्तेमाल
एक खास बात और है कि शुरुआती दिनों में आम के पौधों की सुरक्षा के लिए जो ईंट घेरे के रूप में इस्तेमाल किए गए थे, अब गांव वालों ने पेड़ के बड़े और सुरक्षित होने के बाद उसे वहां से निकाल लिया है. उन ईंटों का इस्तेमाल गांव में मंदिर बनाने और चबूतरे के निर्माण के लिए किया गया है. इसी चबूतरे पर बैठकर गांव की खुशहाली को लेकर हर फैसला लिया जाता है. गांव वाले आम के इन पौधों को लगाने का श्रेय तो तत्कालीन उपायुक्त सुधीर प्रसाद को देते हैं, लेकिन, सामुदायिक विकास की सोच के लिए मीनू महतो को क्रेडिट देते हैं. मीनू महतो का कहना है कि जब उपायुक्त ने आम को पेड़ों का तोहफा दिया तो उन्होंने उसे सामुदायिक विकास का जरिया बनाने की सोच विकसित की. 

गांव वालों के जिम्मे पेड़ की सुरक्षा 
आम के जो पेड़ लोचर गांव की खुशहाली का कारण बन गए हैं, उसकी सुरक्षा और देखभाल की जिम्मेदारी भी गांव वालों ने अपने कंधे पर उठा ली है, न सिर्फ पेड़ों की सुरक्षा की जाती है बल्कि सालभर पेड़ों को पानी और खाद देने का काम भी गांव वाले ही करते हैं. फिर मंजर आने से लेकर फलों के तैयार होने तक गांव का हर शख्स अपना दायित्व संभालता है. इस साल गांव वालों ने आपस में आम बांटने का साथ 90 हजार रुपए के आम बेचें भी हैं. अब गांव वाले बैठेंगे और आपस में यह तय करेंगे कि आम की बिक्री से मिले पैसे का उपयोग किस विकास कार्य के लिए किया जाए. आज गांव वाले तत्कालीन जिला उपायुक्त की जमकर तारीफ कर रहे हैं. इन पौधों की वजह से बने शौचालयों के चलते न सिर्फ गांव की महिलाओं को शौच के लिए बाहर जाने का सिलसिला बंद हो गया है बल्कि गांव में हर तरफ खुशहाली की तस्वीर दिख रही है.

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