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Opposition Plan to Oppose Modi Failed: देश को नई संसद भवन की सौगात रविवार 28 मई को मिलनेवाली है. इसके लिए 970 करोड़ रुपए की लागत से नया संसद भवन बनकर तैयार हो गया है. बता दें कि पुराने संसद भवन की जगह नए संसद भवन के निर्माण की मांग लंबे समय से चल रहा था. ऐसे में नरेंद्र मोदी सरकार की तरफ से ढाई साल के लगभग के समय में यह नआ संसद भवन की बिल्डिंग का निर्माण कार्य पूरा हो गया. अब इसका उद्घाटन देश के प्रधानमंत्री नरेंदर मोदी 28 मई को करेंगे, ऐसे में विपक्षी दलों के द्वारा पीएम मोदी के इस उद्घाटन कार्यक्रम का बहिष्कार किया जा रहा है. इसमें देश की 20 विपक्षी दल शामिल हैं जिसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी है.
विपक्ष की तरफ से इस नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर जो वितंडा खड़ा किया गया है. उसका कोई तुक नजर नहीं आ रहा है. विपक्ष की तरफ से यह कहकर वितंडा खड़ा किया गया है कि इस भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति के द्वारा क्यों नहीं कराया जा रहा है. बता दें कि इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की गई थी. वहां भी सुप्रीम कोर्ट ने पीआईएल दाखिल करनेवाले को सख्त लहजे में चेतावनी देते हुए इसे खारिज कर दिया. बता दें कि विपक्ष के इस वितंडे के पीछे राष्ट्रपति से उद्घाटन नहीं कराना वजह नहीं बल्कि पीएम नरेंद्र मोदी से विपक्ष की चिढ़ है.
विपक्ष को मोदी के हर काम में खामी निकालने की आदत सी पड़ गई है. पीएम के विदेश में जोर-शोर से स्वागत भी विपक्ष को नहीं पचता है. फिर भारत की धरती पर पीएम के किसी भी फैसले को वह कैसे सराहे. मोदी हाल ही में कई देशों के दौरे पर थे और विदेश की धरती पर उनका जिस तरह का स्वागत हुआ उससे भी विरोध खुश नजर नहीं आए. वह इसमें भी पीएम का मजाक उड़ा रहे थे. ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानी ने तो इस दौरे के दौरान पीएम मोदी को 'बॉस' तक कह दिया. यह बात विपक्ष के गले नहीं उतरी. अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन का अपनी सीट से उठकर पीएम मोदी के पास आकर उनका अभिवादन करने भी विपक्षियों को नहीं भाया. ऐसे में मोदी के भारत वापसी से पहले ही विपक्ष उनके विरोध के लिए चक्रव्यूह तैयार कर रहा था.
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नये संसद भवन के उद्घाटन पीएम मोदी के हाथों होने को लेकर विपक्ष गोलबंदी होने लगा. राहुल गांधी ने इस विरोध के सिलसिले को शुरू किया तो धीरे-धीरे सभी विपक्षी दल इसके साथ जुड़ने लगे और संख्या 20 के करीब पहुंच गई. विपक्ष समर्थित एजेंडे को सुप्रीम कोर्ट से भी झटका लगा लेकिन विरोध कर रहे विरोध टस से मस नहीं हुए.
दूसरी तरफ मोदी के शासनकाल में जिस तरह से केंद्रीय एजेंसियां भ्रष्टाचार के मामलों मे सक्रिय हुई इससे भी विपक्ष के पेट में मरोड़ होने लगा. विपक्षी इसके खिलाफ भी एकजुट होकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और यहां उन्हें मुंह की खानी पड़ी. नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल तो इतने झटके के बाद भी मोदी के विरोध में डटे नजर आ रहे हैं. आपको बता दें कि मोदी के विरोध के लिए उनका सुप्रीम कोर्ट पहुंचने का दाव हर बार उल्टा पड़ा नीतीश कुमार को तो जाति जनगणना के मामले पर कोर्ट से झटका लगा ही साथ ही आनंद मोहन की रिहाई के मामले में अभी सुनवाई आगे भी होनी है.
विपक्ष को अडानी मामले पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट पर वितंडा खड़ा करते तो देखा ही. उसके बाद कई पार्टी अचानक से सुप्रीम कोर्ट के समझ इस मामले को लेकर पहुंच गए. सुप्रीम कोर्ट ने भी इसके लिए एक जांच कमेटी गठित कर दी. उसके बाद उस कमेटी की जो रिपोर्ट आई उसमें भी अडानी के खिलाफ कुछ नहीं मिला. विपक्ष एक बार फिर क्लिन बोल्ड हो गया. राहुल गांधी से लेकर तमाम विपक्षी दलों के नेता एक संवैधानिक पद पर बैठे इंसान के लिए तरह-तरह के अपशब्दों का प्रयोग करते रहे. अब नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल जैसे विपक्षी नेता भी इसे सोचकर हैरान हैं कि मोदी विरोध का विपक्षी प्लान क्यों फेल हो रहा है?