कर्नाटक की सत्ता में बने रहने के लिए बीजेपी ने एड़ी से चोटी का जोर लगा दिया था. लेकिन इसके बाद भी शिकस्त का सामना करना पड़ा. इसका सबसे बड़ा कारण है कि बीजेपी अपने पुराने ढर्रे पर ही चल रही थी.
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Karnataka Election Results 2023: कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ चुके हैं. नतीजों से भाजपाईयों को जहां तगड़ा झटका लगा है, वहीं कांग्रेसी खेमा जहां काफी खुश है. कर्नाटक हारते ही बीजेपी का दक्षिण भारत से पूरी तरह से सफाया हो चुका है. हालांकि ये कोई नई बात नहीं है. तकरीबन साढ़े तीन दशक के इतिहास में हर बार ऐसा ही हुआ है, जब कोई सरकार सरकार अगली बार सत्ता में न लौटी हो. एक साल बाद ही यानी मई 2024 में लोकसभा चुनाव होने वाले हैं. इस लिहाज से बीजेपी के लिए आत्ममंथन करने का समय आ चुका है.
कर्नाटक की सत्ता में बने रहने के लिए बीजेपी ने एड़ी से चोटी का जोर लगा दिया था. लेकिन इसके बाद भी शिकस्त का सामना करना पड़ा. इसका सबसे बड़ा कारण है कि बीजेपी अपने पुराने ढर्रे पर ही चल रही थी. पार्टी ने समझा था कि सीएम बदल कर एंटी इनकंबेंसी को रोक लेगी. ध्रुवीकरण करके फिर से सत्ता सुख मिल जाएगा और इतने पर भी बात नहीं बनी तो पीएम मोदी के नाम पर चुनाव लड़ लिया जाएगा. हालांकि इनमें से कोई भी नुस्खा काम नहीं आया. येदियुरप्पा की जगह बोम्मई बहुत ढीले नजर आए. हलाला, हिजाब और अजान के बाद बजरंगबली के मुद्दे भी हिंदुओं का वोट नहीं दिला सके और मोदी मैजिक भी देखने को नहीं मिला.
ध्रुवीकरण से भी चुनावी वैतरणी फंसी
कर्नाटक में पिछले साल से ही ध्रुवीकरण शुरू हो गया था. धार्मिक ध्रुवीकरण में कांग्रेस और बीजेपी ने बजरंगबली की भी एंट्री करा दी थी. हिन्दू ध्रुवीकरण की चाल को विफल करने के लिए बजरंग दल पर बैन लगाने का वादा किया. बीजेपी ने इसे अपने पक्ष में भुनाने के लिए बजरंग बली का नारा उछाल दिया. बीजेपी ने ऐसा कर कांग्रेस को हिन्दू विरोधी बताने की कोशिश की. अब परिणामों से साफ हो गया है कि अहिन्दी भाषी प्रदेशों में देवी-देवता, मंदिर-मस्जिद और हिन्दू-मुस्लिम के बल पर चुनावी वैतरणी पार करना संभव नहीं. इससे पहले पश्चिम बंगाल में भी जय श्री राम का नारा असफल हो गया था.
नए चेहरों वाला प्रयोग भी फेल रहा
पिछले कुछ चुनावों से पार्टी हर राज्य में तकरीबन 60 फीसदी नए चेहरों पर दांव खेलती है. इससे सिटिंग विधायक की नाराजगी दूर हो जाती है. यूपी, उत्तराखंड और गुजरात में ये दांव काम भी कर गया था. लेकिन हिमाचल के बाद कर्नाटक में भी ये चाल नाकाम साबित हुई. नए चेहरों के लिए पार्टी ने अपने कई कद्दावर नेताओं को नाराज कर दिया था. बागियों की नाराजगी पार्टी को भारी पड़ गई. हिमाचल की तरह कर्नाटक में भी कई सीटों पर हार-जीत का अंतर 1000 वोटों से कम रहा. पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा को भी किनारे कर दिया गया. पूर्व सीएम जगदीश शेट्टार और पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी को टिकट नहीं मिली तो उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया.
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मोदी मैजिक नहीं देखने को मिला
2014 के बाद से देश में अधिकतर विधानसभाओं के चुनाव मोदी के नाम पर ही लड़े गए. हालांकि, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी इस धारणा को ध्वस्त कर चुकी थीं. अब कर्नाटक में भी मोदी मैजिक देखने को नहीं मिला. कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी को जीत दिलवाने के लिए लिए जी-जान लगा दिया था. चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी पूरे सात दिनों में 17 रैलियों में शामिल हुए और पांच रोड शो भी किया. मैसूर के श्रीकांतेश्वरा मंदिर में दर्शन के बाद उन्होंने अपना चुनाव प्रचार का समाप्त किया था. मोदी के अलावा योगी ने भी 10 रैली और 3 रोड शो किए. उनका क्रेज भी दिखाई नहीं दिया. इससे साफ है कि स्थानीय नेता बहुत जरूरी हैं.