रघुपति राघव राजा राम... के बदले ईश्वर अल्लाह तेरो नाम..., महात्मा गांधी ने क्यों किया था भजन के मूल में बदलाव
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रघुपति राघव राजा राम... के बदले ईश्वर अल्लाह तेरो नाम..., महात्मा गांधी ने क्यों किया था भजन के मूल में बदलाव

Mahatma Gandhi: महात्मा गांधी ने दांडी मार्च का समूह गाना जब इस भजन को बनाया था, तब इसमें बदलाव कर अल्लाह शब्द को जोड़ा था. रघुपति राघव राजा राम... महात्मा गांधी का प्रिय भजन था पर उन्होंने इस भजन के मूल में बदलाव करके अपनाया था.

महात्मा गांधी (File Photo)

मौका: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जयंती समारोह का, स्थान: बापू सभागार, विवाद: महात्मा गांधी के प्रिय भजन ईश्वर अल्लाह तेरो नाम... गाने पर. आयोजन में गायिका ने जैसे ही यह भजन गाना शुरू किया, हंगामा हो गया. हंगामा इतना तेज हो गया कि गायिका देवी को माफी तक मांगनी पड़ गई. अब सवाल उठता है कि महात्मा गांधी के प्रिय भजन को लेकर क्यों विवाद हुआ? बताते हैं कि रघुपति राघव राजा राम... महात्मा गांधी का प्रिय भजन था पर उन्होंने इस भजन के मूल में बदलाव करके अपनाया था और फिर गाया था. हालांकि इसकी स्पष्टता को लेकर अलग अलग दावे किए जाते हैं और प्रामाणिक तौर पर कुछ भी स्पष्ट नहीं है. 

बताया जाता है कि 15वीं और 16वीं सदी के समय में श्रीरामचरितमानस के रचयिता ने शालिग्राम प्रतिमा के सामने रामधुन में यह भजन गाने लगे, जिसका मतलब था-गंगाजल से पवित्र और तुलसीदल से शोभित शालिग्राम के सुंदर विग्रह, जिसका रंग मेघ के श्याम रंग जैसे हैं, हे पतितों को पावन करने वाले सीमा के राम! रघुकुल शिरोमणि श्रीराम, मुझे दर्शन दो.

भजन इस प्रकार है: 

रघुपति राघव राजा राम, 
पतित पावन सीता राम 
सुंदर विग्रह मेघश्याम 
गंगा तुलसी शालिग्राम।

आनलाइन दुनिया में उपलब्ध सामग्रियों में तुलसीदास से इस भजन को जोड़ा जाता है, लेकिन तुलसीदास की रचनाओं श्रीरामचरितमानस, विनय पत्रिका, रामललानहछू, रामाज्ञापश्न, जानकी मंगल, वैराग्यसंदीपनी, पार्वती मंगल, गीतावली, कृष्ण गीतावली आदि में इस भजन का जिक्र कहीं नहीं मिला. इसके अलावा यह भी जान लेना जरूरी है कि महात्मा तुलसीदास की लेखन या तो अवधी में हुई है या फिर संस्कृत पदावली में. इसलिए भी यह भजन तुलसीदास की रचनाओं से मेल नहीं खाता. 

आनलाइन दुनिया में इस भजन को लेकर एक और दावा किया गया है. इस दावे के अनुसार, इस भजन में संत प्रवर श्री लक्ष्मणाचार्य द्वारा रचित श्री नाम रामायण के उत्तर कांड का वर्णन किया गया है. जब श्रीराम का वनवास खत्म होता है, वे अयोध्या लौटकर आते हैं और फिर उनका राज्याभिषेक होता है. इस भजन में कवि ने उसी समय के स्वरूप का वर्णन किया है.

बताया जाता है कि महात्मा गांधी ने दांडी मार्च का समूह गाना जब इस भजन को बनाया था, तब इसमें बदलाव कर अल्लाह शब्द को जोड़ा था. उसके बाद साबरमती आश्रम से लेकर पूरे देश के प्रार्थना सभाओं में इस भजन को गाया जाने लगा. महात्मा गांधी का उद्देश्य हिंदुओं और मुसलमानों को अंग्रेजों के खिलाफ एक करने का था. 

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इस भजन को बॉलीवुड ने भी इस्तेमाल किया. सबसे पहले 1942 में आई भरत मिलाप, 1948 में आई फिल्म श्रीराम भक्त हनुमान, 1954 में आई फिल्म जागृति के अलावा 1970 में आई पूरब और पश्चिम, 1982 में रिलीज हुई फिल्म गांधी, 2007 में रिलीज फिल्म माई फादर, 2013 में आई सत्याग्रह और 2006 में रिलीज हुई लगे रहो मुन्ना भाई में भी यह भजन प्रमुखता से गाए गए हैं.

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