Operation Khukri: मेजर जनरल राजपाल पुनिया ने बताया कि भारतीय सैनिक घास की रोटियां खाकर रहे पर उन्होंने विद्रोहियों को अपने हथियार नहीं छूने दिए.
Trending Photos
Patna: मेजर जनरल राजपाल पुनिया और उनकी बेटी दामिनी पुनिया द्वारा भारतीय सेना के ऑपरेशन खुकरी (Operation Khukri) पर लिखी पुस्तक का 15 जुलाई को पटना में बिहार के राज्यपाल फागु चौहान और पश्चिम पश्मिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनकड़ द्वारा विमोचन किया जाएगा. इस मौके पर फिल्म अभिनेता सुनील सेट्टी (Sunil Shetty) और ऑपरेशन में शहीद हुए हवलदार किशन कुमार के परिवार के लोग भी हिमाचल प्रदेश से आएंगे.
यह ऑपरेशन पश्चिमी अफ्रीका के सियरा लिओन में वहां के विद्रोही संगठनों के कब्जे में 75 दिनों तक बंधक रहे 223 भारतीय सैनिकों (Indian Army) को छुड़ाने के लिए चलाया गया था. इतने दिनों तक विदेश की धरती पर अति विषम परिस्थियों में रहे भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस और पराक्रम को मेजर जनरल पुनिया ने अपनी किताब में बेहतरीन तरीके से जीवंत किया है. झारखंड एवं बिहार सब एरिया के जनरल अफसर कमांडिंग के रूप में दानापुर स्थित सब एरिया मुख्यालय में पदस्थापित मेजर जनरल पुनिया उस वक्त संयुक्त राष्ट्र शांति सेना का हिस्सा थे. मेजर जनरल ने बताया कि 'इतने विकट परिस्थितियों में फंसे रहने के बावजूद हमारे सैनिकों ने देश की शान से समझौता नहीं किया और तिरंगे का मान बनाए रखा. सैनिक किन हालातों में रहे और उनपर क्या बीती यह किसी बुरे सपने से कम नहीं. उनकी वीरता की कहानी हर देशवासी तक पहुंचनी चाहिए.'
मेजर जनरल राजपाल पुनिया ने बताया कि भारतीय सैनिक घास की रोटियां खाकर रहे पर उन्होंने विद्रोहियों को अपने हथियार नहीं छूने दिए, ऑपरेशन खुकरी विदेशी जमीन पर भारतीय सैनिकों की वीरता की कहानी है इसकी जानकारी हर भारतीय को होनी चाहिए.
ये भी पढ़ें- Patna HC में अदालतों को फिजिकली खोलने के लिए याचिका दायर, कोविड के कारण लगी है रोक
ऑपरेशन खुकरी भारतीय सेना के शौर्य की एक बड़ी मिसाल है. इस ऑपरेशन को अफ्रीका में भारतीय सैनिकों द्वारा अपने दम पर अंजाम देते हुए विद्रोहियों के संगठन रिवोल्यूशनरी यूनाइटेड फ्रंट (आरयूएफ) के चंगुल में ढ़ाई माह से फंसे 223 भारतीय जवानों को मुक्त कराया था. भारतीय सेना यूनाइटेड नेशन की शांति सेना के हिस्से के रूप में अफ्रीका का गृह युद्ध खत्म होने के बाद विद्रोहियों और सरकार में हुए समझौते को लागू कराने के लिए सियेरा लियोन गई थी. 1 मई 2000 को विद्रोहियों के संगठन रिवोल्यूशनरी यूनाइटेड फ्रंट के कुछ तत्वों ने मकेनी इलाके में सैन्य बलों पर हमला कर दिया. इस दौरान संपर्क नहीं होने की वजह से कैलाहुन में तैनात टुकड़ी को इसकी खबर नहीं लगी.
अगले दिन वहां सेना के कुछ कमांडरों की विद्रोहियों के नेताओं के साथ बैठक थी. उसी दौरान विद्रोहियों ने सैन्य कमांडरों को बंधक बना लिया और पूरे इलाके में कब्जा कर लिया. दस दिन बाद जनता और शांति सेना के दबाव में विद्रोहियों ने चुनिंदा अधिकारियों को वापस बेस पर जाने की इजाजत दी और कुछ बंधकों को भी रिहा किया गया. लेकिन हालात बिगड़ते जा रहे थे, विद्रोहियों ने 500 केन्याई शांति सैनिकों के हथियार छीन लिए. सैन्य दल ने मोर्चा संभाल विद्रोहियों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया और केन्याई लोगों को बचाया. लेकिन कैलाहुन में हालत ज्यादा बिगड़ गए थे. वहां गोरखा राइफल्स की दो कंपनियां सैकड़ों आरयूएफ विद्रोहियों के बीच अपने बेस में घिरी गई थीं. मौका पाकर भारी संख्या में मौजूद विद्रोहियों ने चारों तरफ से घिर चुके सैनिकों को बंधक बना लिया और हथियार सौपने का दबाव डाल रहे थे. पश्चिमी अफ्रीका के भाप छोड़ते ट्रॉपिकल जंगल में बंधक बने सैनिक अपने टेंट में घिरे हुए थे. रसद खत्म होने पर घास की रोटियां खाने को मजबूर हो गए. अनिश्चितता के माहौल और दुनिया से कटे रहने के बावजूद भारतीय सैनिकों ने हौसला बनाए रखा. स्थिति दिन पर दिन बिगड़ती जा रही थी, जान पर बन आई थी फिर भी भारतीय वीरों ने विद्रोहियों के सामने हथियार नहीं डाला. सैनिकों को छुड़ाने के लिए हर संभव रास्ता तलाश किया जा रहा था. विद्रोही नेताओं से बातचीत चल रही थी लेकिन कोई हल नहीं निकला. भारतीय सेना ने ऑपरेशन खुकरी को अंजाम देने का निर्णय लिया.
ऑपरेशन की तैयारी पूरी कर ली, पर अन्य देशों ने मदद देने से इंकार कर दिया. तब भारतीय सेना ने अपने दम पर 30 घंटे में इस ऑपरेशन को पूरा करने का प्लान बनाया. पूरे इलाके में भारी बारिश हो रही थी, ऑपरेशन शुरू करना खतरे से खाली नहीं था. दस घंटे बाद बारिश थमी तो 15 जुलाई को भारतीय सेना के जवान विद्रोहियों को सबक सिखाने के लिए तैयार हो गए. ऑपरेशन शुरू हुआ, भारतीय सेना के दल में करीब दो हजार जवान थे, विद्रोहियों की संख्या भी लगभग इतनी ही थी पर विद्रोहियों को इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि भारतीय सेना उनके घर में घुसकर हमला करेगी. भारतीय सेना ने चारों तरफ से घेरकर विद्रोहियों को परास्त कर दिया, कई विद्रोही मारे गए और ऑपेरशन सफल हुआ. भारतीय सेना का एक सौनिक शहीद हुआ और कुछ घायल भी हुए.
कोरोना संक्रमण (Corona) काल से पहले मेजर जनरल राजपाल पुनिया की बेटी दिल्ली से पटना आई थी लेकिन लॉकडाउन में यहां फंस गई, इस दरम्यान जनरल पुनिया ने अपनी बेटी को ऑपरेशन खुकरी की कहानी सुनाई तो उनकी बेटी ने इसे पुस्तक के रूप में सबके सामने लाने की योजना तय कर ली. इसके चलते उन्होंने लॉकडाउन के समय में करीब दस महीने के अंदर इस पुस्तक को लिखा. मेजर जनरल राजपाल पुनिया की लेखिका बेटी दामिनी पुनिया ने दिल्ली के धौला कुआं स्थित आर्मी पब्लिक स्कूल से पढ़ाई करने के बाद दिल्ली विश्वविधालय के लेडी श्रीराम कॉलेज से राजनीतिशास्त्र में स्नातक और फिर मास्टर डिग्री हासिल की है. दामिनी पुनिया ने बताया कि जब ऑपरेशन खुकरी को अंजाम दिया गया तो उनकी उम्र महज चार वर्ष की थी और 21 वर्ष गुजर जाने के बाद यह पुस्तक सामने आ रही है. इस दरम्यान वे खुद भी इससे अनभिज्ञ थी. लेकिन लॉकडाउन (Lockdown) में इस ऑपरेशन की जानकारी मिलने के बाद पुस्तक के तौर पर इसे सबके सामने लाना तय किया गया जिससे हर भारतीय इस ऑपरेशन खुकरी से अवगत हो सके और भारतीय सेना के पराक्रम की जानकरी से उन्हें प्रेरणा मिले.