Girl Adoption: आंकड़े यह भी बताते हैं कि अब लोगों में जागरूकता के कारण गोद लेने वाले दंपतियों की संख्या में वृद्धि हुई है. अब लोग भी खुले दिल से बच्चों को अपने जीवन में स्वागत कर रहे हैं.
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पटना: Girl Adoption: कई घरों में बच्चियों के जन्म पर दंपतियों को मायूस होते देखा जाता है, लेकिन बिहार के दत्तक ग्रहण संसाधन केंद्र (एडॉप्शन एजेंसी) से नि:संतान दंपति द्वारा गोद लिए गए बच्चों में बेटियों की संख्या अधिक है. आमतौर पर देखा जाता है कि ठुकराए गए बच्चों में बच्चियों की संख्या अधिक होती है, लेकिन एडॉप्शन एजेंसी के आंकड़े बताते हैं कि उन बच्चियों को अपनाने वालों की संख्या भी कम नहीं है.
वैसे, आंकड़े यह भी बताते हैं कि अब लोगों में जागरूकता के कारण गोद लेने वाले दंपतियों की संख्या में वृद्धि हुई है. अब लोग भी खुले दिल से बच्चों को अपने जीवन में स्वागत कर रहे हैं.
राजधानी पटना में राज्य सरकार द्वारा संचालित विशिष्ट दत्तक ग्रहण संस्थान में बच्चों को गोद लेने को लेकर लोगों में रुचि बढ़ी है. पांच-छह साल पहले तक बच्चों को गोद लेने को लेकर इतनी रुचि नहीं देखी जाती थी लेकिन अब यह संख्या बढ़ गई है. जिला बाल संरक्षण इकाई की मानें तो केवल पटना में ही 2019 से लेकर अब तक 80 बच्चों को वैधानिक तौर पर गोद लिया गया है. इन 80 बच्चों में 13 बच्चे विदेशों की आंगन में खिलखिला रहे हैं.
संरक्षण इकाई के अधिकारियों की मानें तो पहले से बच्चों के गोद लेने की प्रक्रिया आसान और पारदर्शी होने के कारण लोगों में गोद लेने में दिलचस्पी बढ़ी है. देश के लोगों और विदेश के लोगों के लिए बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया अलग अलग है. विदेशी दंपतियों के लिए भारतीय बच्चे को गोद लेने के लिए केंद्रीय दत्तक ग्रहण संस्थान प्राधिकरण पर आवेदन करना होता है.
क्या कहते हैं आंकड़े?
जिला बाल संरक्षण इकाई के आंकड़ों पर गौर करें तो वर्ष 2019 में कुल 23 बच्चों को गोद लिया गया जिनमें 9 लड़के और 14 लड़कियां शामिल थी. इनमे 23 में 16 बच्चों को अपने ही देश में दंपतियों ने गोद लिया जबकि 7 को विदेशी दंपतियों ने गोद लिया.
वर्ष 2020 में 22 बच्चों को गोद लिया गया, इनमें 5 लड़के और 17 लड़कियां थी. इनमें 13 को देश के ही दंपतियों ने गोद लिया जबकि दो को विदेशी दंपतियों ने गोद लिया. इसी प्रकार 2022 में अब तक 11 बच्चों को गोद लिया जा चुका है, जिनमें 5 लड़के और 6 लड़कियां शामिल हैं. जिला बाल संरक्षण इकाई के सहायक निदेशक उदय कुमार भी मानते हैं कि गोद लेने की दिलचस्पी बढ़ने से सूनी पड़ी गोद हरी हो जा रही हैं. उन्होंने कहा कि लोगों में इसे लेकर जागरूकता बढ़ी है तथा नियम आसान और पारदर्शी हुए हैं.
इधर, समाजशास्त्री विवेक कुमार कहते हैं कि आज की भाग दौड़ की जिंदगी में सभी की व्यस्तता है और सभी पहले अपनी सारी सुविधाओं को पूरा करने में जुटे हैं. उन्होंने कहा कि लोग अब शादी विवाह करने के बजाय लिव-इन रिलेशनशिप में रहना चाहते हैं, जिससे लोग बच्चे को पैदा करने की जो जिम्मेदारी होती है, उसे नहीं उठाना चाहते हैं. इस कारण गोद लेने की परंपरा बढ़ी है.
(आईएएनएस)