Navratri Kanya Pujan: नवमी के दिन कैसे करें कन्या पूजन, जानिए विधि और कथा
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Navratri Kanya Pujan: नवमी के दिन कैसे करें कन्या पूजन, जानिए विधि और कथा

Navratri Kanya Pujan: नवमी के दिन अपने घर में छोटी कन्याओं को बुलाकर उन्हें स-सम्मान भोजन कराया जाता है और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है.फिर कन्याओं को दक्षिणा, उपहार आदि देकर विदा करते हैं.

Navratri Kanya Pujan: नवमी के दिन कैसे करें कन्या पूजन, जानिए विधि और कथा

पटनाः Navratri Kanya Pujan:नवरात्रि के नौवें दिन का कन्या पूजन किया जाता है.इस दिन अपने घर में छोटी कन्याओं को बुलाकर उन्हें स-सम्मान भोजन कराया जाता है और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है.फिर कन्याओं को दक्षिणा, उपहार आदि देकर विदा करते हैं. नवरात्रि के आखिरी दिन हवन क्यों है जरूरी?नवरात्रि का समापन दरअसल हवन से ही होता है. कहते हैं कि नवरात्रि के आखिरी दिन यदि हवन ना किया जाए तो इससे माँ की साधना अधूरी रह जाती है. यही वजह है कि नवरात्रि के आखिरी दिन हवन करना बेहद जरूरी होता है. इतना ही नहीं हवन करने से ना केवल हमारे आसपास का वातावरण शुद्ध होता है बल्कि हमारे आसपास सकारात्मकता का संचार भी होता है. जानिए नवरात्र पर कैसे करें कन्याओं का पूजन

कन्या पूजन विधि (Kanya Pujan Vidhi)
कन्याओं को हलवा-पूड़ी या खीर-पूड़ी परोसने से पहले मां दुर्गा को भोग अवश्य लगाएं.
महा नवमी पर शुभ मुहूर्त में कन्याओं को घर पर बुलाएं.
सबसे पहले उन्हें स्वच्छ स्थान पर बिठाएं और उनके चरण धोएं.
कन्याओं के माथे पर तिलक लगाएं और हाथ में कलावा बांधें.
फिर कन्याओं को भोजन कराएं और उन्हें अपनी इच्छानुसार वस्त्र, उपहार और दक्षिणा भेंट करें.
अंत में कन्याओं के पैर छूकर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें.
मान्यता है कि जो सच्चे मन से कन्या पूजन करता है उसके घर में हमेशा सुख-समृद्धि का वास रहता है.

सभी कन्याएं हैं माता का स्वरूप
कन्याओं के पूजन के पीछे मान्यता है कि सभी कन्याएं माता का स्वरूप हैं. मान्यता है कि महिषासुर नाम का राक्षस था, जिसने चारों तरफ हाहाकार मचा रखा था. उसके भय से सभी देवता परेशान थे. उसके वध के लिए देवी आदिशक्ति ने दुर्गा का रूप धारण किया. 8 दिनों तक महिषासुर से युद्ध करने के बाद 9वें दिन उसको मार गिराया. जिस दिन मां ने इस अत्याचारी राक्षस का वध किया, उस दिन को महानवमी के नाम से जाना जाने लगा. असल में महिषासुर को ये वरदान था कि उसे कोई नहीं मार सकता था. उसने ब्रह्मदेव से अमरता का वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्मदेव ने ये वरदान देने से मना कर दिया. फिर उन्होंने कहा, वह अपना अंत स्वयं निश्चित कर सकता है. तब असुर ने स्वाभाविक मृत्यु से मुक्ति मांगी और कहा, उसे कोई देव-दानव, गंधर्व, त्रिदेव आदि नहीं मार पाएं. वह इनसे विजित रहे. मेरी मृत्यु किसी कुंआरी कन्या के ही हाथों हो. इसके पीछे महिषासुर की सोच थी, कि कुंवारी कन्या में कितना ही बल होगा, जो मुझे मार पाएगी. इसके बाद देवी ने कन्या रूप में ऋषि कात्यायन के घर जन्म लिया और कात्यायनी कहलाईं. उन्होंने महिषासुर का अंत किया. 

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