Mithila Chauth Chandra: देशभर में कलंकित चांद को क्यों पूजता है मिथिला, जानिए यहां की खास परंपरा
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Mithila Chauth Chandra: देशभर में कलंकित चांद को क्यों पूजता है मिथिला, जानिए यहां की खास परंपरा

भारत भर में मिथिलांचल अपनी रंग भरी संस्कृति के लिए जाना जाता है. यहां के लोक रंग में पर्वों-त्योहारों का महत्व आज भी रचा बसा है. समय के इतने पहिए घूम जाने के बाद भी यहां परंपराएं महज औपचारिकताएं नहीं रह गई हैं, बल्कि वह धमनियों में घुलकर बह रही हैं.

Mithila Chauth Chandra: देशभर में कलंकित चांद को क्यों पूजता है मिथिला, जानिए यहां की खास परंपरा

पटनाः Mithila Chauth Chandra: एक तरफ जब पूरे देश में गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी, ठीक इसी दिन बिहार के मिथिला राज्य में एक अलग ही परंपरा देखने को मिलेगी. गणेश चतुर्थी के दिन मान्यता है कि भादों की चौथ का चांद नहीं देखना चाहिए, यह कलंकित होता है. इसके उलट मिथिला वाले मानते हैं कि, उनका चांद कलंकित नहीं है, उनके आकाश में स्वच्छ चांद चमक रहा है. वह सच्चा है और उसको देखने वाला भी यूं ही सत्य से चमकता रहे. गणेश चतुर्थी वाले दिन मिथिला में सुबह गणेश पूजा होती है, फिर व्रत रखकर चांद निकलने का इंतजार होता है. दिनभर इस इंतजार के साथ पकवान बनते हैं और फिर जब आकाश में चौथी का चांद उगने में देर करता है तो तो घर की बूढ़ी दादी, अम्मा या पूजा करने वाली स्त्री हाथ में खीर-पूरी लेकर कहती हैं, कहती हैं, उगा हो चांद, लपकला पूरी...

मिथिला में मनेगा चौरचन (चौठचंद्र)
भारत भर में मिथिलांचल अपनी रंग भरी संस्कृति के लिए जाना जाता है. यहां के लोक रंग में पर्वों-त्योहारों का महत्व आज भी रचा बसा है. समय के इतने पहिए घूम जाने के बाद भी यहां परंपराएं महज औपचारिकताएं नहीं रह गई हैं, बल्कि वह धमनियों में घुलकर बह रही हैं. परंपरा का ऐसा ही एक लोकरंग बिहार के मिथिला में चोरचन के मौके पर नजर आता है. चोरचन लोक भाषा में अपभ्रंश है, असल में यह चौठचंद है. इसके पीछे पौराणिक कथा तो वही गणेशजी वाली है. जब कहीं रास्ते से आते गणपति फिसल कर गिर पड़े तो उनके ढुलमुल शरीर को देखकर चंद्रमा हंस पड़ा. खुद को खूबसूरत समझने वाले चंद्र से गणेश जी ने चांदनी चुराकर उसे कांतिहीन कर दिया और श्राप दिया कि आज के दिन जो तुझे देखेगा, उसे भी चोरी और झूठ का कलंक लगेगा. कहते हैं कि इस श्राप के असर से श्रीकृष्ण भी नहीं बच पाए थे और उन्हें दिव्य मणि चुराने का झूठा आरोप झेलना पड़ा था. 

मिथिला की अलग है परंपरा
अब आते हैं मिथिला पर. भारत में जो चांद, गणेश जी से कलंकित रहा, उसे मिथिलावालों ने कलंकमुक्त करा लिया. इसकी कथा सत्यघटना पर आधारित बताई जाता है और सोलहवीं सदी के उस दौर से जोड़ती है जब भारत के चप्पों पर मुगलिया हुकूमत अपने जुल्मी दाग छोड़ रही थी. सन 1568 में मिथिला की गद्दी पर एक महात्मा राजा बैठा. नाम था हेमांगद ठाकुर. वहीं हेमांगद ठाकुर, जिन्होंने 16वीं शताब्दी में महज बांस की खपच्चियों, पुआलों के तिनकों और जमीन पर कुछ गणनाएं करके अगले 500 सालों तक होने वाले सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण की तिथियां बता डालीं और इसके आगे के लिए गणना की सरल विधि भी निकाल ली. उन्होंने ये सारा विवरण ग्रहण माला नामक पुस्तक में संकलित किया है, जिसे उन्होंने कैद में रहते हुए रचा था. 

बादशाह ने किया कैद
वो कैद में क्यों थे? कहानी ये है कि हेमांगद राजा तो बन गए, लेकिन जनता से कर लेना, प्रताड़ित करना ये सब उनके बस की बात नहीं थी. लेकिन दिल्ली के ताज बादशाह को तो लगान समय पर चाहिए था, लिहाजा उसने ठाकुर साहब को तलब करा लिया. ठाकुर साहब आ गए. पूछताछ हुई तो बोले, पूजा-पाठ में कर का ध्यान न रहा. बादशाह इस बात को नहीं माना. उसने कर चोरी का आरोप लगाया और कैद में डाल दिया. हेमांगद ठाकुर कैद में यही खगोल गणना में जुट गए. एक दिन पहरी ने देखा तो ये सब बादशाह को बताया. बोला कि मिथिला का राजा सनकी हो गया है.

इस तरह मिटा कलंक
बादशाह खुद हेमांगद को देखने कारावास पहुंचा. जमीन पर अंकों और ग्रहों के चित्र देख पूछा कि आप पूरे दिन यह क्या लिखते रहते हैं. हेमांगद ने कहा कि यहां दूसरा कोई काम था नहीं सो ग्रहों की चाल गिन रहा हूं. करीब 500 साल तक लगनेवाले ग्रहणों की गणना पूरी हो चुकी है. बादशाह ने तत्काल हेमांगद को ताम्रपत्र और कलम उपलब्ध कराने का आदेश दिया और कहा कि अगर आपकी भविष्यवाणी सही निकली, तो आपकी सजा माफ़ कर दी जाएगी. हेमांगद ने बादशाह को माह, तारीख और समय बताया. उन्होंने चंद्रग्रहण की भविष्यवाणी की थी. उनके गणना के अनुसार चंद्रग्रहण लगा और बादशाह ने न केवल उनकी सजा माफ़ कर दी, बल्कि आगे से उन्हें किसी प्रकार लगान देने से भी मुक्त कर दिया. अकर(टैक्स फ्री) राज लेकर हेमांगद ठाकुर जब मिथिला आये तो रानी हेमलता ने कहा कि मिथिला का चांद आज कलंकमुक्त हो गये हैं, हम उनका दर्शन और पूजन करेंगे.

इसलिए होती है चौरचन पूजा
रानी हेमलता के पूजन की बात जन जन तक पहुंची. लोगों ने भी चंद्र पूजा की इच्छा व्यक्त की. मिथिला के पंडितों से राय विचार के उपरांत राजा हेमांगद ठाकुर ने इसे लोकपर्व का दर्जा दे दिया. इस प्रकार मिथिला के लोगों ने कलंकमुक्ति की कामना को लेकर चतुर्थी चन्द्र की पूजा प्रारम्भ की. हर साल इस दिन मिथिला के लोग शाम को अपने सुविधानुसार घर के आँगन या छत पर चिकनी मिट्टी या गाय के गोबर से नीप कर पीठार से अरिपन देते हैं. पूरी-पकवान, फल, मिठाई, दही इत्यादि को अरिपन पर सजाया जाता है और हाथ में उठकर चंद्रमा का दर्शन कर उन्हें भोग लगाया जाता है.

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