बिहार के प्रसिद्ध मर्चा चावल को मिला ‘GI Tag’, शाही लीची, मगही पान सहित ये 5 उत्पाद पहले से लिस्ट में शामिल
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बिहार के प्रसिद्ध मर्चा चावल को मिला ‘GI Tag’, शाही लीची, मगही पान सहित ये 5 उत्पाद पहले से लिस्ट में शामिल

Marcha Rice GI Tag: बिहार के पश्चिम चंपारण के प्रसिद्ध मर्चा चावल को सरकार ने जीआई (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) टैग(GI Tag) दे दिया है. इसके साथ ही बिहार में जीआई टैग कृषि उत्पादों की संख्या छह हो गई है.

बिहार के प्रसिद्ध मर्चा चावल को मिला ‘GI Tag’, शाही लीची, मगही पान सहित ये 5 उत्पाद पहले से लिस्ट में शामिल

पटना: Marcha Rice GI Tag: बिहार के पश्चिम चंपारण के प्रसिद्ध मर्चा चावल को सरकार ने जीआई (ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) टैग(GI Tag) दे दिया है. इसके साथ ही बिहार में जीआई टैग कृषि उत्पादों की संख्या छह हो गई है. इस सूची में कतरनी चावल, भागलपुरी जर्दालू आम, मगही पान, शाही लीची और मिथिला मखाना पहले से ही शामिल हैं. इन फसलों को उनके स्वाद और गुणवत्ता के कारण जीआई टैग दिया गया है. बता दें कि मर्चा चावल अपने सुगन्धित स्वाद और उससे बनने वाले सुगन्धित चूड़ा के लिए प्रसिद्ध है. जीआई रजिस्ट्री चेन्नई की जीआई टैग पत्रिका के रिपोर्ट के अमुसार जीआई टैग के लिए मर्चा धान उत्पादक प्रगतिशील समुहाट गांव, सिंगासनी, पश्चिमी चंपारण द्वारा आवेदन दिया गया था, जिसे अब मंजूरी मिल गई है.

मर्चा धान को मिला जीआई टैग

बता दें कि मर्चा धान बिहार के पश्चिमी चंपारण जिले में पाए जाने वाले धान की एक किस्म हो जो दिखने में बिलकुल काली मिर्च की तरह होता है, इसलिए इसे मिर्चा या मर्चा राइस भी कहा जाता है. वहीं स्थानीय स्तर पर इसे मिर्चा, मारीचै, मर्चैया आदि नामों से भी जाना जाता है. मर्चा धान के पौधे, अनाज और गुच्छे से एक अनूठी सुगंध आती है, जो इसे बाकी सारे धानों से अलग बनाती है. पश्चिमी चंपारण जिले के चनपटिया प्रखंड के कुछ गांव मैनाटांड़, गौनाहा, नरकटियागंज, रामनगर मर्चा चावल के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं.

एक हजार एकड़ में मर्चा धान की खेती

वहीं इस धान को जीआई टैग दिलाने के लिए जिले के डीएम और डा. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा की ओर से भी अनुशंसा की गई थी. वैश्विक स्तर पर मर्चा धान को पहचान मिलने के बाद इलाके के किसानों में खुशी की लहर देखने को मिल रही है. पश्चिम चंपारण में करीब एक हजार एकड़ में मर्चा धान की खेती में होती है. जिले के करीब 500 किसान इसकी खेती करते हैं.  जिल के अन्य प्रखंडों में भी इस धान का उत्पादन किया जाता है लेकिन उसकी गुणवत्ता उतनी अच्छी नहीं होती है.

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