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बेतिया: दुनियाभर में बाघों के सरंक्षण के लिए 29 जुलाई को अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया जाता है. वर्ल्ड टाईगर डे की शुरुआत 2010 में की गई थी. वहीं बिहार के इकलौते वाल्मीकि टाईगर रिज़र्व ने बाघों के संरक्षण और संवर्धन को लेकर देश के 6 राज्यों को पीछे छोड़ कृतिमान स्थापित किया है. लिहाजा टाईगर जनगणना के बाद गत वर्ष वाल्मिकी टाईगर रिजर्व को देशभर के शीर्ष 5वें स्थान का गौरव प्राप्त हुआ और पीएम मोदी द्वारा सम्मानित भी किया गया. हालांकि उस वक्त यहां बाघों की संख्या 30 से 35 के करीब थी लेकिन आज यहां बाघों की तादाद में निरंतर बढ़ोत्तरी के बाद अब यह आंकड़ा 50 के करीब जा पहुंचा है. जिसके बाद अधिकारी और स्थानीय गणमान्य इसे गौरव का क्षण मान रहे बेहद आह्लादित हैं.
वैसे तो साल 2008 में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में महज 8 बाघ थे. उसके बाद बाघों के संरक्षण और संवर्धन पर जोर देने के कारण अब उनकी संभावित संख्या 50 के पार होने का अनुमान है. हालांकि आधिकारिक तौर पर इनकी संख्या 47 बताई जा रही है जिसमें शावक शामिल नहीं हैं.
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दरअसल 'वर्ल्ड टाइगर डे’ की शुरुआत को लेकर साल 2010 में रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में अंतरराष्ट्रीय बाघ सम्मेलन का आयोजन किया गया था. इसमें 13 देशों ने हिस्सा लिया जिसमें 2022 तक बाघों की संख्या को दोगुनी करने का लक्ष्य रखा गया था लिहाजा केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकार भी बाघों के संरक्षण को लेकर खास तौर पर इस ओर ध्यान दे रही है. वहीं, वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड और ग्लोबल टाइगर फोरम की ओर से जारी 2016 के आंकड़ों में बताया गया कि पूरी दुनिया में तकरीबन 6000 ही बाघ बचे हैं जिनमें से 3891 बाघ इंडिया में मौजूद हैं.
बताया जा रहा है कि दुनियाभर में बाघों के कई किस्म की प्रजातियां पाई जाती हैं जिसमें से 6 प्रजातियां प्रमुख हैं. इनमें साइबेरियन बाघ, रॉयल बंगाल टाईगर, इंडोचाइनीज बाघ, मलायन बाघ, सुमात्रा बाघ और साउथ चाइना बाघ शामिल हैं.
इधर यूपी औऱ नेपाल सीमा पर स्थित वाल्मीकि टाईगर रिजर्व में रॉयल बंगाल टाईगर पाए जाते हैं. जिनकी संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है क्योंकि पड़ोसी देश नेपाल के चितवन नेशनल पार्क से सटे नारायणी गण्डक नदी तट पर क़रीब 900 वर्ग किलोमीटर में फैले VTR का इलाका इंडो नेपाल सीमा के वाल्मीकिनगर से बेतिया तक है जिसे दो डिवीजन औऱ 8 वन क्षेत्र में बांटा गया है और WTI व WWF के साथ वन विभाग की ओर से बेंत के घने सदाबहार जंगलों के साथ-साथ ग्रास लैंड को विकसित किये जाने के बाद यहां बाघों के अधिवास बेहतर किये गए हैं. वहीं हाल के दिनों में बाघों के शिकार पर रोक को लेकर SSB के साथ ज़िला पुलिस प्रशासन के अलावा ख़ुद वन विभाग की पैनी नज़र है. दूसरी ओर घने जंगलों के बीच सैकड़ों कैमरा ट्रेप लगाए गए हैं जिससे इनकी गणना और सुरक्षा में मदद मिल रही है. हालांकि तस्करों और शिकारियों की टेढ़ी नज़र से इंकार नहीं किया जा सकता है, बावजूद इसके संसाधनों के बीच संवर्धन को लेकर खासतौर पर कदम उठाये गए हैं. बाघों के संरक्षण को लेकर जन जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है स्कूली छात्रों के साथ-साथ जनसहभागिता की क़वायद तेज़ है. खासतौर पर गन्ना किसानों से सहयोग को लेकर इको विकास समिति का गठन किया गया है और तो और यहां आने वाले सैलानियों से भी बाघों को बचाने की अपील की जा रही है.
इमरान अजीज