Chunavi Kisse: चिराग पासवान ने किए थे 10 कॉल... राहुल गांधी की वो गलती और रामविलास पासवान NDA की गोद में जा बैठे
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Chunavi Kisse: चिराग पासवान ने किए थे 10 कॉल... राहुल गांधी की वो गलती और रामविलास पासवान NDA की गोद में जा बैठे

Lok Sabha Election 2024: चिराग पासवान ने राहुल गांधी को 10 बार कॉल किया था. चिराग पासवान ने राहुल गांधी से पूछा था, हमें कितनी सीटें मिलेंगी. इस मुद्दे पर बैठकर बात कर लेते हैं पर राहुल गांधी ने कोई रिस्पांस नहीं दिया था. उसके बाद चिराग पासवान इरीटेट हो गए थे.

राहुल गांधी-चिराग पासवान

Chunavi Kisse: हिमंता बिस्वा सरमा और गुलाम नबी आजाद जैसे कई नेताओं ने कांग्रेस छोड़ते समय कई नेताओं ने यह कहा था कि आलाकमान से उनका संपर्क स्थापित नहीं हो पा रहा था. पिछले काफी समय से पार्टी असमंजस में दिख रही थी और कोई ठोस स्टैंड नहीं ले पा रही थी. हिमंता बिस्वा सरमा ने तो कई बार अपने इंटरव्यू में इस बात का जिक्र किया था कि जब वे उनसे मिलने पहुंचे थे तो राहुल गांधी अपने कुत्ते को बिस्कुट ​खिला रहे थे और उन्हें असम कांग्रेस को लेकर बातचीत में कोई दिलचस्पी नहीं थी. राहुल गांधी ने इसी तरह की गलती 2014 के लोकसभा चुनाव के मौके पर की थी. पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने एक बार इंटरव्यू में इस बात का जिक्र किया था. 

पासवान का कहना था, सीट शेयरिंग को लेकर चिराग पासवान ने राहुल गांधी को 10 बार कॉल किया था. चिराग पासवान ने राहुल गांधी से पूछा था, हमें कितनी सीटें मिलेंगी. इस मुद्दे पर बैठकर बात कर लेते हैं पर राहुल गांधी ने कोई रिस्पांस नहीं दिया था. उसके बाद चिराग पासवान इरीटेट हो गए थे. पासवान ने अपने इंटरव्यू में कहा था, एक रात चिराग पासवान ने मुझसे कहा कि ये लोग अभी इतना इग्नोर कर रहे हैं तो बाद में क्या करेंगे. चिराग का यह कहना था और रामविलास पासवान ने तय कर लिया था कि अब वे एनडीए का रुख करेंगे. उन्होंने ऐसा ही किया. 

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रामविलास पासवान कहते थे, एनडीए में जाने का फैसला चिराग का था, मेरा नहीं. चिराग ने पहली बार कोई राजनीतिक फैसला लिया था, जिस पर रामविलास पासवान ने भी मुहर लगाई थी. इस तरह एक्टिंग में फ्लॉप एक्टर का पॉलिटिक​ल करियर ऐसे शुरू हुआ था. उसके बाद लोजपा एनडीए के बैनर तले चुनाव लड़ी और 7 में से 6 सीटें हासिल करने में सफल रही. चिराग पासवान खुद जमुई से सांसद चुने गए थे. चिराग पासवान के इस फैसले से पार्टी में उनकी धाक जम गई और रामविलास पासवान केंद्रीय मंत्री बन गए. 

2014 के चुनाव से पहले लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान नरेंद्र मोदी के धुर विरोधी थे. 2002 में गुजरात दंगों के विरोध में पासवान ने एनडीए से नाता तोड़ लिया था और 2004 से 14 के लोकसभा चुनाव से पहले तक वे यह मानते थे कि गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री की भूमिका स्पष्ट है. 2012 में रामविलास पासवान की ओर से इस तरह का बयान टाइम्स आफ इंडिया में भी प्रकाशित हुई थी, लेकिन चिराग पासवान ने अपने पिता के इस मजबूत स्टैंड को बदलने का काम किया, बल्कि मुश्किल समय में भी चिराग पासवान ने नरेंद्र मोदी को भगवान राम का दर्जा दिया. 

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जब 2021 में चिराग पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस ने पूरी पार्टी हड़प ली थी, तब भी चिराग पासवान ने झुकना स्वीकार नहीं किया. वे चाहते तो अपने चाचा का नेतृत्व स्वीकार कर सकते थे लेकिन उन्होंने संघर्ष का रास्ता चुना. संघर्ष किया भी. मुश्किल समय में भी भाजपा का साथ दिया और पूरे बिहार में जन आशीर्वाद यात्रा के माध्यम से खुद के साथ विश्वासघात की कहानी लोगों और कार्यकर्ताओं तक पहुंचाई. चिराग पासवान ने अपने संघर्षों से यह साबित कर दिया कि रामविलास पासवान के असली उत्तराधिकारी वहीं हैं. समय बदला, नसीब बदला, हाथ की रेखाएं बदलीं और चिराग को वो मिल गया, जो वो चाहते थे. हाजीपुर सीट पर चिराग पासवान का दावा भाजपा ने स्वीकार कर लिया और पशुपति को सीट शेयरिंग में 0 पर आउट कर दिया. मतलब साफ है कि पशुपति को इस हद तक मजबूर कर दिया गया है कि अब वे एनडीए से बाहर जाकर ही कोई फैसला ले सकते हैं.

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