BJP News: हर पार्टी का पैरामीटर होता है और चुनाव लड़ने के लिए पार्टी कई नजरिये से और कई कसौटी पर प्रत्याशी की जांच परख करती है, तब जाकर सेलेक्शन होता है. प्रधानमंत्री के आवास पर रातभर इस पर चर्चा होती है. एक एक उम्मीदवार के बारे में, उसकी जीतने की क्षमता के बारे में भी चर्चा होती है.
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BJP Strategy: भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2024 से पहले आश्चर्यजनक रूप से पार्टी के भीतर एक ज्वाइनिंग कमेटी बनाई. इस कमेटी का काम दूसरे दलों से पार्टी में शामिल होने वाले लोगों को चिह्नित करना था. एक आंकड़े के अनुसार, चुनाव का अभी पहला चरण भी नहीं बीता है और भाजपा में राष्ट्रीय से लेकर लोकल स्तर तक के करीब 80,000 नेताओं-कार्यकर्ताओं को पार्टी में शामिल कराया जा चुका है. ज्वाइनिंग कमेटी में बिहार भाजपा के प्रभारी विनोद तावड़े, पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद, सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर, श्रम मंत्री भूपेंद्र यादव और विज्ञान एवं तकनीकी मंत्री राजीव चंद्रशेखर को शामिल किया गया है. विनोद तावड़े को पश्चिमी भारत, रविशंकर प्रसाद को पूर्वी भारत, राजीव चंद्रशेखर को दक्षिणी भारत तो अनुराग ठाकुर को उत्तर भारत की जिम्मेदारी सौंपी गई है. बड़ी बात यह है कि ज्वाइनिंग कमेटी में जो लोग शामिल हैं, उनमें से एक बिहार के हैं तो दूसरे बिहार भाजपा के प्रभारी हैं और तीसरे नेता बिहार भाजपा के प्रभारी रह चुके हैं. अब सवाल उठता है कि भाजपा ने आखिरकार यह कदम क्यों नहीं उठाया. विपक्षी दल भी अभी भाजपा की इस रणनीति का गुणा भाग समझने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन हमने भाजपा की इस रणनीति को डिकोड कर लिया है. और अब हम आपको इसके पीछे की पूरी रणनीति का खुलासा करने जा रहे हैं.
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753 हो सकती हैं लोकसभा की सीटें
दरअसल, देश में अगर फिर से मोदी सरकार बनती है तो उसके जिम्मे वैसे तो बहुत अहम काम होंगे, जैसा कि पीएम मोदी ने पिछले दिनों इशारा भी कर दिया था, लेकिन सबसे बड़ा काम देश में जनगणना कराना और 2026 में परिसीमन का होने वाला है. परिसीमन के बाद अनुमानित रूप से देश की जनसंख्या 1 अरब 42 करोड़ 19 लाख 48 हजार हो सकती है. इतनी जनसंख्या के बाद अगर परिसीमन होता है तो माना जा रहा है कि लोकसभा की सीटें बढ़कर 753 हो सकती हैं. अभी 26 लाख वोटरों पर लोकसभा की एक सीट है. 2001 में 18 लाख वोटरों पर एक सीट होती थी. माना जा रहा है कि 2001 से 2026 के बीच जनसंख्या में 38.5 प्रतिशत का परिवर्तन हो सकता है. 38.5 प्रतिशत जनसंख्या को सीटों में कन्वर्ट करें तो लोकसभा की सीटों में 210 की बढ़ोतरी हो सकती है. इस तरह अभी लोकसभा की सीटें 543 हैं और इसमें 210 को प्लस कर दिया जाए तो यह 753 हो रहा है. यहां आपको बता दें कि 1977 के बाद से लोकसभा की सीटें नहीं बढ़ाई गई हैं.
उत्तर भारत में लोकसभा की ज्यादा सीटें बढ़ेंगी
दक्षिण भारत की अपेक्षा उत्तर भारत में जनसंख्या की दर काफी ज्यादा है. इसलिए उम्मीद जताई जा रही है कि दक्षिण भारत की अपेक्षा उत्तर भारत में लोकसभा की सीटों में अधिकाधिक बढ़ोतरी हो सकती है. अभी उत्तर प्रदेश में 80 सीटें हैं जो अनुमानित रूप से परिसीमन के बाद 128 हो सकती हैं. इसका मतलब यह हुआ कि उत्तर प्रदेश में 48 लोकसभा सीटें बढ़ सकती हैं. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं जो परिसीमन के बाद 70 तक जा सकती हैं. यानी बिहार में 30 सीटें बढ़ सकती हैं. मध्य प्रदेश में 29 सीटें हैं और परिसीमन के बाद इसके 47 होने का अनुमान जताया जा रहा है. मतलब 18 सीटें यहां भी बढ़ सकती हैं. महाराष्ट्र में अभी 48 सीटें हैं और वहां 20 सीटें बढ़ सकती हैं, जो 68 हो रही है. राजस्थान में 25 सीटें हैं तो परिसीमन के बाद यह 44 हो सकती हैं. यानी यहां भी 19 सीटों का इजाफा हो सकता है. इसी तरह गुजरात में 26 सीटें हैं, जिसमें 13 सीटें बढ़ सकती हैं और यहां टोटल 39 सीट हो सकती हैं.
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केरल में तो एक सीट कम भी हो सकती है
अब बात करते हैं दक्षिण भारत की. कर्नाटक में अभी 28 लोकसभा सीटें हैं जो बढ़कर 36 हो सकती हैं. यानी यहां 8 सीटें बढ़ सकती हैं. केरल में लोकसभा की 20 सीटें हैं जो परिसीमन के बाद घटकर 19 पर आ सकती है. तेलंगाना में 17 लोकसभा सीटें हैं जो परिसीमन के बाद 20 हो सकती हैं. यहां 3 सीटें बढ़ने का अनुमान है. आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 25 सीटें हैं जो परिसीमन के बाद 28 तक जा सकती हैं. तमिलनाडु की बात करें तो वहां 39 लोकसभा सीटों में 2 का इजाफा हो सकता है और यह 41 तक हो सकती है.
लोकसभा की सीटें बढ़ने से प्रत्याशियों की भी जरूरत होगी
अब सवाल यह है कि भाजपा की ज्वाइनिंग कमेटी द्वारा दूसरे दलों के नेताओं को पार्टी में शामिल कराने और परिसीमन के बाद लोकसभा की सीटों के बढ़ने का क्या संबंध है. तो हम आपको बता रहे हैं कि इसमें सीधा संबंध है. लोकसभा की सीटें बढ़ेंगी तो ज्यादा से ज्यादा नेताओं की भी जरूरत होगी. अब आप ही बताइए, आज बिहार में 40 सीटें हैं और आधे से अधिक सीटों पर गठबंधन के प्रत्याशी मैदान में हैं. भाजपा केवल 17 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. अगर 2029 में 70 या गठबंधन होने की स्थिति में भी कम से कम 40 सीटों पर चुनाव लड़ना पड़ा तो अचानक से पार्टी को उम्मीदवार खोलने की मशक्कत करनी पड़ेगी. आप यह कह सकते हैं कि भाजपा के पास नेताओं की कमी थोड़े है. तो आपको यह भी बता दें कि टीवी पर या मीडिया में बयान देने वाले सभी प्रत्याशी नहीं हो सकते.
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जब तक बाकी दल समझेंगे, खेला हो चुका होगा!
हर पार्टी का पैरामीटर होता है और चुनाव लड़ने के लिए पार्टी कई नजरिये से और कई कसौटी पर प्रत्याशी की जांच परख करती है, तब जाकर सेलेक्शन होता है. प्रधानमंत्री के आवास पर रातभर इस पर चर्चा होती है. एक एक उम्मीदवार के बारे में, उसकी जीतने की क्षमता के बारे में भी चर्चा होती है. ऐसे में भाजपा की ओर से जो ज्वाइनिंग कमेटी बनाई गई है, वह निश्चित रूप से 2029 को ध्यान में रखकर बनाई गई है. भाजपा की इस समय सबसे बड़ी ताकत पीएम मोदी और उनकी दूरदर्शिता है और पीएम मोदी ने पहले ही आने वाली इस चुनौती को भांप लिया है. बाकी दल जब तक समझेंगे, तब तक भाजपा अपना काम कर चुकी होगी.