झारखंड का सबसे बड़ा शक्तिपीठ है देवी मां का यह मंदिर, सहेलियों की भूख मिटाने के लिए काट दिया था अपना सिर
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झारखंड का सबसे बड़ा शक्तिपीठ है देवी मां का यह मंदिर, सहेलियों की भूख मिटाने के लिए काट दिया था अपना सिर

झारखंड के रामगढ़ में मां छिन्नमस्तिके का विशेष महत्व है. इस मंदिर में विशेष अनुष्ठान होता है. यह मंदिर महाभारतकालीन से बना हुआ है. यह मंदिर 6000 साल पुराना है. जिसकी एक अलग ही महिमा है. 

 

(फाइल फोटो)

Ramgarh: देश में नवरात्रि का त्यौहार शुरू हो गया है.  इस साल शारदीय नवरात्रि 26 सितंबर से शुरू हुई है. आज नवरात्रि का दूसरा दिन है. यह त्योहार पूरे देश में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है. इस नवरात्रि में मां दुर्गा के 9 स्वरूपों की पूजा की जाती है. इन दिनों लोग उपवास रखते हैं और अपने अपने घरों में कलश की स्थापना करते हैं. वहीं, झारखंड के रामगढ़ में मां छिन्नमस्तिके का विशेष महत्व है. इस मंदिर में विशेष अनुष्ठान होता है. यह मंदिर महाभारतकालीन से बना हुआ है. यह मंदिर 6000 साल पुराना है. जिसकी एक अलग ही महिमा है. 

तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध है मां छिन्नमस्तिके मंदिर
मां छिन्नमस्तिके भैरवी का मंदिर दामोदर नदी के संगम पर स्थित है. इस मंदिर से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं. वेद पुराणों में इस मंदिर का उल्लेख किया गया है. यह मां दुर्गा के शक्तिपीठों में से एक माना जाता है. यह मंदिर तंत्र साधना करने वाले लोगों के बीच बहुत प्रसिद्ध है. तंत्र साधना करने वाले श्रद्धालुओं के द्वारा मंदिर में लगभग 150 से 200 पशुओं की बलि दी जाती है. लोगों का कहना है कि मां छिन्नमस्तिके रात के समय इस मंदिर में घूमती हैं. यहां पर 13 हवन कुंड है. जहां पर तंत्र साधकों के द्वारा सिद्धि हासिल की जाती है. इसके अलावा इस मंदिर में बलि के बाद पशुओं के अपशिष्ट से लगभग 25 से 30 किलोवाट बिजली उत्पादन की योजना तैयार की गई है. 

जानें क्या है मां छिन्नमस्तिके मंदिर की कथा
इस मंदिर में बड़े पैमाने पर नवविवाहित माता का आशीर्वाद पाने के लिए आते हैं. इसके अलावा मां कामाख्या देवी के बाद इसे दूसरा शक्तिपीठ कहा जाता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार मां भवानी एक बार अपनी दो सहेलियों के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान के लिए गई थी. जिसके बाद दोनों सहेलियों को भूख लग गई. सहेलियों की भूख मिटाने के लिए मां भवानी ने अपना सिर तलवार से काट दिया. जिसके बाद मां की गर्दन से खून की तीन धाराएं निकली. जिसमें से एक मां के मुख में गई, जबकि दो माता की सहेलियों के मुख में. जिसके बाद माता की दोनों सहेलियों की भूख शांत हुई थी. उसके बाद से मां छिन्नमस्तिके स्वरूप की पूजा की जाने लगी. रजरप्पा में छिन्नमस्तिके मंदिर के परिसर में मां काली के साथ-साथ कई देवी देवताओं के मंदिर हैं. जिसमें सूर्य भगवान, भगवान भोलेनाथ के 10 मंदिर शामिल हैं. 

अन्य कथाएं
मां छिन्नमस्तिके स्वरूप को 10 महाविद्या में से एक माना जाता है. यह देवी का रौद्र स्वरूप है. इसमें मां छिन्नमस्तिके ने एक राक्षस का वध किया है. इसके अलावा उन्होंने अपना सिर हाथ में पकड़ा हुआ है. जिससे तीन धाराएं बहती हुई दिखाई दे रही है. मां छिन्नमस्तिके का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है. जिसका अलग-अलग अर्थ होता है. इसमें छिन्न का अर्थ है अलग और मस्तक का अर्थ है माथा. इस मंदिर की दीवार के शिलाखंड पर मां छिन्नमस्तिके का दिव्य स्वरूप बना हुआ है. नवरात्रि के महीने में यहां पर बिहार के आसपास के राज्यों से भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं. इस मंदिर में जाने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

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