PM के कार्यक्रम में पढ़ी गई जो 'मैं खाकी हूं' कविता, उसे लिखने वाले अफसर की कहानी
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PM के कार्यक्रम में पढ़ी गई जो 'मैं खाकी हूं' कविता, उसे लिखने वाले अफसर की कहानी

सुकीर्ति माधव मिश्रा मूल रूप से बिहार के जमुई जि‍ले के मलयपुर गांव के निवासी हैं. उनका जीवन संघर्षों में गुजरा. उन्होंने सरकारी स्कूल से अपनी पढ़ाई पूरी की.

वर्तमान में सुकीर्ति माधव मिश्रा वाराणसी में एसपी (सुरक्षा) के पद पर तैनात हैं. (तस्वीर साभार-@SukirtiMadhav)

पटना: कोरोना महामारी के दौर में जहां हर ओर कोरोना वॉरियर्स की चर्चा हो रही है वहीं, कुछ दिनों से जमुई के मलयपुर गांव के होनहार और युवा आईपीएस (IPS) अधिकारी  की चर्चा पूरे देश में हो रही है. हो भी क्यों न, इस गांव के युवा आईपीएस (IPS) अधिकारी सुकीर्ति माधव मिश्रा (Sukirti Madhav Mishra) की कविता  'मैं खाकी हूं' को पूरे देश में सराहा जा रहा है. सोशल मीडिया (Social Media) के हर प्लेटफॉर्म पर कविता तेजी से वायरल हो रही है. पिछले दिनों इसका जिक्र पीएम मोदी के सामने भी किया गया.

दरअसल, हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) हैदराबाद के सरदार वल्‍लभ भाई पटेल नेशनल पुलिस एकेडमी से पासआउट होने वाले युवा आईपीएस अधिकारियों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने युवा आईपीएस अधिकारियों से उनके अनुभव के बारे में चर्चा की. इसी बीच एमपी कैडर के युवा आईपीएस अधिकारी आदित्य मिश्रा को पीएम के सामने बोलने का मौका मिला.

 

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जहां, आदित्य मिश्रा अपने शब्दों को बोलते-बोलते वे भावुक हो गए. साथी कोरोना वॉरियर देवेंद्र चंद्रवंशी को याद करते हुए उन्होंने 'मैं खाकी हूं' कविता सुनाई. कविता की पंक्तियां कुछ इस तरह रहीं-

दिन हूं, रात हूं,
सांझ वाली बाती हूं,
मैं खाकी हूं.
आंधी में, तूफान में,
होली में, रमजान में,
देश के सम्मान में,
अडिग कर्तव्यों की,
अविचल परिपाटी हूं,
मैं खाकी हूं....

सुकीर्ति माधव मिश्रा की यह कविता अब लोगों के जुंबा पर छाई हुई है. सोशल मीडिया फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर इसे लाखों लोग देख और सुन चुके हैं. आईपीएस अधिकारी सुकीर्ति मिश्रा को कभी उम्मीद नहीं थी कि उनकी कविता इतनी ज्यादा पसंद की जाएगी.

सुकीर्ति माधव मिश्रा मूल रूप से बिहार के जमुई जि‍ले के मलयपुर गांव के निवासी हैं. उनका जीवन संघर्षों में गुजरा. उन्होंने सरकारी स्कूल से अपनी पढ़ाई पूरी की. उनके पिता कृष्ण कांत मिश्र जूनियर हाईस्कूल में टीचर और मां कविता मिश्र हाउसवाइफ हैं. इस बीच, ज़ी बिहार-झारखंड से आईपीएस अधिकारी सुकीर्ति माधव मिश्रा ने तमाम मसलों पर खास बातचीत की. वर्तमान में सुकीर्ति माधव मिश्रा वाराणसी में एसपी (सुरक्षा) के पद पर तैनात हैं.
 

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सवाल: पुलिस विभाग और साहित्य दो अलग-अलग धुव्र हैं, ऐसे में आपको कविता लिखने की प्रेरणा कैसी मिली?

उत्तर: यह कोई साहित्य नहीं है, बल्कि मेरा अहसास है जो मैंने यूनिफॉर्म के लिए महसूस किया कि व्यक्ति को कैसा होना चाहिए और क्या आदर्श होने चाहिए.

सवाल: इस कविता को आपने कब लिखी और उस वक्त आपके जेहन में क्या चल रहा था?
जवाब:
मुझे लिखने-पढ़ने का शौक है. घर में भी ऐसा माहौल रहा है और जब मैं मेरठ में अपनी ट्रेनिंग कर रहा था तो मुझे पता चला कि पुलिस वाले किन परिस्थितियों में कार्य करते हैं. इसके बारे में मुझे बहुत कुछ सीखने और समझने का अवसर मिला. इसके बाद जब मैं ट्रेनिंग खत्म करके निकलने लगा तो मुझे लगा कि अपने अनुभव को शब्दों में पिरोया जाए, तो उसी अहसास को मैंने लिखना शुरू किया तो वह कविता बन गई और अब लोगों को पसंद आ रही है.

सवाल: कोल इंडिया की नौकरी छोड़कर आप आईपीएस बनने की ओर कैसे प्रेरित हुए?
उत्तर:
देखिए सिविल सेवा में जाने के लिए बहुत ही कठिन परिश्रम करना पड़ता है. इसलिए मुझे लगता था कि सबकुछ बहुत मुश्किल है, लेकिन कोल इंडिया में जॉब मिलने के बाद मैं थोड़ा कम्फर्टेबल जोन में था, पर पिता जी की इच्छा थी कि मैं सिविल सेवा में जाऊं और मुझे भी धीरे-धीरे यह बात समझ में आई कि सेवा करने का दायरा सिविल सेवा में ज्यादा है. इसलिए मैंने प्रयास किया और मुझे सफलता मिली.
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सवाल: पुलिस की कार्यशैली को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं, ऐसे में आपको क्या बदलाव की गुंजाइश दिख रही है?
उत्तर:
हाल के दिनों में कम्यूनिटी पुलिसिंग पर काफी जोर आया है. प्रशिक्षण और कौशल को देखकर काफी नए चेंज भी अब दिख रहा है और निश्चित रूप से अब पुलिस को भी अपनी कार्यशैली बदलनी होगी. साथ ही, जनता के प्रति और अच्छे से व्यवहार करना होगा. कुछ चीजें और सुधारने की जरूरत है और मुझे आशा है कि वह भी जल्दी ठीक हो जाएगी.
 
सवाल: अब के समय में और जिस समय आप नौकरी ज्वाइन किए थे, दोनों दौर में पुलिस की कार्यशैली में क्या खास अंतर आपने महसूस किया?
उत्तर:
जवाबदेही बढ़ गई है और लोग जागरूक हुए हैं. वो आप से अब सवाल कर सकते हैं. इसकी वजह से पारदर्शिता हो गई है. ऐसे में आप अंधेरे में कोई काम नहीं कर सकते हैं और आपको अपने कार्यों को लोगों के सामने रखना होता है. इससे लोग सवाल करते हैं और यह अच्छा भी है. क्योंकि यह आपको अच्छे काम करने के लिए प्रेरित करता है.
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सवाल: जनता, प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के बीच कार्यों का सामंजस्य आप कैसे बैठाते हैं?

उत्तर: आपका आशय ठीक है तो कोई दिक्कत नहीं होती है.

सवाल: आपका बचपन कैसे बीता, किस तरह के संघर्षों का आपको सामना करना पड़ा?
उत्तर:
मैं निम्न मध्यवर्गीय परिवार से आता हूं. बचपन में बहुत अभाव देखे हैं. जमीन पर बैठकर सरकारी स्कूल में पढ़ाई की, लेकिन संस्कार घरवालों ने बहुत अच्छे दिए. घरवालों ने संघर्ष करना, हिम्मत बांधे रखना और हार नहीं मानना सिखाया. इसी सीख की वजह से शायद मुझे अबतक सफलता मिलती रही है.

सवाल: क्या आपको उम्मीद थी कि कविता को इतना सराहा जाएगा?
उत्तर:
नहीं, मुझे बिल्कुल उम्मीद नहीं थी कि कविता को इतना ज्यादा पसंद किया जाएगा. मैंने कविता अपने मेरठ के पुलिस के साथियों और अधिकारियों को समर्पित करते हुए लिखी थी, लेकिन अब कविता पसंद की जा रही है तो काफी अच्छा लग रहा है.

सवाल: कविता के माध्यम से लोगों का क्या संदेश देना चाहेंगे?
उत्तर:
देखिए खाकी के त्याग को लोग एप्रीशियेट करें. साथ ही खाकी के लोगों को मेरा संदेश है कि जनता को आपसे बहुत आशाएं और अपेक्षाएं हैं. आप अपने आपको एक आदर्श व्यक्ति की तरह पेश आएं. साथ ही जनता की अपेक्षाओं को पूरी तरह से निभाने का प्रयास करें.