Darbhanga News: बिहार के दरभंगा जिले से भारत के साथ-साथ नेपाल की भी नागरिकता रखने का मामला सामने आया है. दरअसल, सबा परवीन उर्फ सबा खातून से चुनाव में जीती हुई कुर्सी छीन ली गई है. भारतीय नागरिकता के प्रमाणपत्र के आधार पर मुखिया का चुनाव लड़ा और जीता था.
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दरभंगाः बिहार के दरभंगा जिले से एक मुखिया द्वारा भारत के साथ-साथ नेपाल की भी नागरिकता रखने का मामला सामने आया है. दोहरी नागरिकता होने के वजह से जिला अधिकारी ने इस पर सख्त कार्रवाई की है. दरअसल, दरभंगा जिले के केवटी प्रखंड के कोठिया पंचायत की मुखिया सबा परवीन उर्फ सबा खातून दोहरी नागरिकता रखने के वजह से बिहार निर्वाचन आयोग के निर्देश पर डीएम राजीव रौशन ने पद से हटा दिया गया है. इसी के साथ मुखिया का प्रभार उप मुखिया को सौंप दिया गया है.
दरअसल, भारत में दोहरी नागरिकता रखने की अनुमति नहीं है. भारत का संविधान स्पष्ट रूप से दोहरी नागरिकता की अनुमति नहीं देता है. भारतीय नागरिक होने के साथ किसी अन्य देश की नागरिकता रखना अवैध है. इस मामले में मुखिया पर आरोप था कि उन्होंने नेपाल की नागरिकता भी ले रखी थी, जो उनकी भारतीय नागरिकता के विपरीत था.
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इसकी जानकारी मिलने के बाद डीएम ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए तुरंत कार्रवाई की. उन्होंने मुखिया को पद से हटाने और कानूनी कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू कर दी. इस निर्णय के साथ प्रशासन ने एक स्पष्ट संदेश दिया कि नियमों और कानूनों का उल्लंघन बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, भले ही वह किसी भी पद पर क्यों न हो. जानकारी के अनुसार, मुखिया सबा खातून के बारे में शिकायत जितेंद्र प्रसाद नामक युवक ने की थी. वे कोठिया गांव की रहने वाली है. यहीं उनका जन्म हुआ है. सबा खातून ने काफी समय पहले नेपाल के रहने वाले जावेद आलम से निकाह किया था. वहीं नेपाल की नागरिकता रहते हुए भारत में चुनाव लड़ने के लिए दस्तावेज देने को फर्जीवाड़ा मानते हुए सबा खातून के खिलाफ अब पुलिस कार्रवाई की भी तैयारी है.
यह मामला खासकर नेपाल और बिहार के दरभंगा में चर्चा का विषय बन गया है. नेपाल के साथ झारखंड और बिहार के कुछ क्षेत्रों के लोगों के पारिवारिक और व्यापारिक संबंध है. ऐसे में डीएम की इस कार्रवाई को कड़ा और अनुकरणीय कदम माना जा रहा है. नेपाल में भी इस मुद्दे को लेकर चर्चाएं हो रही हैं, क्योंकि भारत और नेपाल के नागरिकों के बीच रिश्तों को लेकर पहले भी कई मुद्दे उठ चुके हैं. वहीं डीएम की इस कार्रवाई ने यह सुनिश्चित किया कि भारतीय प्रशासनिक पदों पर बैठे लोगों को भारतीय कानूनों का पालन करना अनिवार्य है. यह निर्णय प्रशासनिक पारदर्शिता और नियमों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.
इनपुट- मुकेश कुमार
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