Child Mobile Addiction: बच्चों को अब लाड़-प्यार के लिए और खाना खाने के दौरान मां का हाथ नहीं भा रहा है, बल्कि मोबाइल में रिल्स और कार्टून देखना भा रहा है. इसे जानकर आपको थोड़ा अजीब जरूर लग रहा होगा, लेकिन यह उतना ही सच है.
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Child Mobile Addiction News: मोबाइल जरूरी, मां-बाप के लाड़-प्यार से दूरी! ऐसा हम इसलिए कह रहे क्योंकि बच्चे जब फोन चलाने लगते हैं, तो मां-बाप को गर्व होता है कि हमारा बच्चा दूसरों से अलग और सबसे तेज है. आश्चर्य की बात यह है कि जब भी मां को काम करना हो या बच्चा रो रहा हो, किसी की स्थिति में अगर उनके हाथ में मोबाइल मिल जाए, तो बच्चे का चेहरा खिल जाता है, लेकिन ऐसा करना अब बच्चों पर भारी पड़ रहा है. छोटे-छोटे बच्चों को फ़ोन की बुरी लत लग चुकी है. जो उनके के लिए खतरनाक साबित हो रहा है. जी हां, जेएलएनएमसीएच भागलपुर के क्रॉस स्टडी में इसको लेकर बड़ा खुलासा हुआ है.
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दरअसल, भागलपुर के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के मनोरोग विभाग के डॉक्टरों ने डेढ़ साल में 2 से 5 साल तक के तकरीबन 200 से ज्यादा बच्चों पर क्रॉस स्टडी किया है. स्टडी में जो पाया गया वो बच्चों के माता-पिता को हैरान, परेशान और सावधान करने वाला है. बता दें कि स्टडी में सामने आया कि बच्चों को अब लाड़-प्यार के लिए और खाना खाने के दौरान मां का हाथ नहीं भा रहा है, बल्कि मोबाइल में रिल्स और कार्टून देखना भा रहा है. इसे जानकर आपको थोड़ा अजीब जरूर लग रहा होगा, लेकिन यह उतना ही सच है. बच्चे खाना खाने के दौरान या सोने के दौरान हर समय फ़ोन में मशगूल हो जाते हैं. मां जब खाना खिलाती है और फोन ले लेती है, तो बच्चा खाना नहीं खाता, रोने लगता है. ऐसे में मोबाइल की लत से नौनिहालों में चिड़चिड़ापन आ रहा है. बच्चा बात-बात पर अग्रेसिव हो जाता है. उसकी एकाग्रता छीन होती जा रही है. इतना ही नहीं मोबाइल की लत से बच्चे पढाई में भी पीछे हो रहे हैं. मोबाइल फ़ोन में लीन होने के कारण बच्चे बाहर मैदानों में खेलने नहीं जा पाते. इससे बच्चे का न तो मानसिक विकास और ना ही व्यक्तित्व का विकास हो पाता है. क्रॉस स्टडी के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए जेएलएनएमसीएच भागलपुर के मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर गौरव बताते हैं कि 'बच्चों में चिड़चिड़ापन और उसका गुस्सैल स्वभाव फोन की लत के कारण है. छोटे बच्चों को बिल्कुल भी स्क्रीन टाइम नहीं देना चाहिए. 5 साल से अधिक के बच्चे हैं, तो उसे ज्यादा से ज्यादा दो घण्टे स्क्रीन टाइम देना चाहिए. उसमें भी वह गलत चीजें नहीं देखे, बल्कि शिक्षा से जुड़ी चीजें देखे. इसपर अभिभावक मोनिटरिंग करें'. डॉक्टर गौरव आगे बताते हैं कि 'हमारे यहां 200 से ज्यादा बच्चों पर क्रॉस स्टडी हुआ. उसमें यह पाया गया कि नन्हे बच्चे फोन के पूरी तरह से आदि हो चुके हैं. ऐसे में बच्चों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है'.
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वहीं इस विषय में ज़ी न्यूज़ ने जब बच्चों के अभिभावकों से बात किया, तो उन्होंने कहा- 'फ़ोन की आदत इस तरह बच्चे को लग गई है कि वह सही से खाना नहीं खा पाता है. फोन लेने पर बच्चा चिल्लाने लगता है. काफी कोशिश करते हैं, फोन न देखे लेकिन बगैर फ़ोन का बच्चा रहता ही नहीं है. बाहर खेलने कूदने नहीं जाता, जो चिंतनीय है'. ऐसे में उन अभिभावकों को जरूर सचेत रहना चाहिए जो बच्चों को बात-बात पर मोबाइल फोन देखने दे देते हैं, इससे सावधान रहने की जरूरत है.
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