Navratri 2024: तंत्र साधना का प्रमुख स्थल है बखरी का दुर्गा मंदिर, मुस्लिम कलाकार बढ़ा रहे पंडाल की भव्यता
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Navratri 2024: तंत्र साधना का प्रमुख स्थल है बखरी का दुर्गा मंदिर, मुस्लिम कलाकार बढ़ा रहे पंडाल की भव्यता

Begusarai News: बिहार के बेगूसराय जिले की तंत्र नगरी कही जाने वाली बखरी में अवस्थित पुरानी दुर्गा मंदिर इन दिनों आस्था के साथ-साथ सामाजिक सौहार्द के लिए चर्चा में हैं. दरअसल, बखरी के पुरानी दुर्गा स्थान को केदारनाथ की तर्ज पर सजाया गया है.

Navratri 2024: तंत्र साधना का प्रमुख स्थल है बखरी का दुर्गा मंदिर, मुस्लिम कलाकार बढ़ा रहे पंडाल की भव्यता

बेगूसराय: Begusarai News: बिहार के बेगूसराय जिले की तंत्र नगरी कही जाने वाली बखरी में अवस्थित पुरानी दुर्गा मंदिर इन दिनों आस्था के साथ-साथ सामाजिक सौहार्द के लिए चर्चा में हैं. दरअसल, बखरी के पुरानी दुर्गा स्थान को केदारनाथ की तर्ज पर सजाया गया है और इसको सजाने वाले सभी कलाकार मुस्लिम कलाकार है. गौरतलब है कि पुरानी दुर्गा स्थान जहां तंत्र सिद्धि के लिए देश-विदेश तक प्रसिद्ध है तो इस बार मुस्लिम कलाकारों ने पंडाल की भव्यता को निखार कर सामाजिक सौहार्द का एक नया उदाहरण पेश किया है.

ये है बखरी का सबसे पुराना दुर्गा स्थान जो श्रद्धालुओं एवं साधकों के लिए सदैव आस्था का केंद्र रहा है. यह मंदिर कितना पुराना है, इसकी कोई ऐतिहासिक प्रमानता नहीं मिलती, लेकिन स्थानीय लोगों के अनुसार तकरीबन 600 साल से भी अधिक पुराना इस मंदिर का इतिहास है. कहा जाता है कि राजा भोज एवं परमार वंश के राजाओं ने इस मंदिर की स्थापना की थी और तब से यहां विशिष्ट तरीके से पूजार्चना की जाती है. 

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श्रद्धालुओं का कहना है कि यहां आने वाले श्रद्धालु कभी निराश नहीं होते और सच्चे मन से जिसने माता की आराधना की एवं अपनी मनोकामना रखी उनकी मनोकामना सदैव पूर्ण हुई. खासकर अष्टमी के दिन यहां बिहार के अलावे उड़ीसा बंगाल झारखंड उत्तर प्रदेश सहित नेपाल तक के श्रद्धालु पहुंचते हैं एवं अपनी तंत्र साधना की सिद्धि प्राप्त करते हैं. पिछले कई बरसों से बनारस से आए पुजारी के द्वारा यहां संध्या आरती का भी आयोजन किया जाता है जो लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना रहता है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां जमा होते हैं. 

स्थानीय लोगों के अनुसार पूर्व में यहां जिस स्थान पर मंदिर है. वहां से कमला नदी की धार बहती थी, लेकिन राजा भोज के समय ही कमला नदी की धार को मोड़कर यहां बखरी की स्थापना की गई थी और राजाओं के वंशजों के द्वारा लाई गई. मूर्ति कोई यहां स्थापित किया गया था, लेकिन बाद में आपसी मतभेद के बाद अष्टधातु की मूर्ति चोरी हो गई, लेकिन तब देवी ने स्थानीय पुजारी को स्वप्न में यही मिट्टी की मूर्ति बनाकर पूजा करने का आदेश दिया और तब से यह प्रथा चली आ रही है. यूं तो पूरे वर्ष यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्र के दिनों में यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु जमा होते हैं एवं पूजार्चना करते हैं.

बनारसी अस्सी घाट से पधारे तरुण तिवारी ने बताया कि यहां पर पांच पंडितों की टीम दुर्गा महा आरती को संपन्न कराने पहुंची है. तरुण तिवारी ने बताया कि यहां मांगी गई मां से हर मुराद पूरी होती है. इसलिए यहां देश भर के लोग खास तौर पर पश्चिम बंगाल, झारखंड, उड़ीसा के लोग आते हैं. स्थानीय अमित परमार ने बताया कि आज वैज्ञानिक युग है. लोगों की माने या ना माने आज भी यहां तंत्र-मंत्र की साधना हो रही है. महा अष्टमी के दिन साधक यहां तंत्र सिद्धि के लिए पहुंचते हैं. इसके लिए सड़कों को पूरे नवरात्र जब तक करना पड़ता है. तभी उनकी तंत्र सिद्ध हो पाती है. मंदिर शक्तिपीठ मंदिर के नाम से जाना जाता है. इस मंदिर का खासियत यह है कि जो भी लोग मां से मन्नत मांगते हैं. उनकी मन्नत पूरी होती है. खासकर जिन महिलाओं को संतान नहीं प्राप्त होता है उन महिलाओं के द्वारा अगर मन से अष्टमी के रात आते हैं और मन्नत मांगती है उनकी मन्नत पुर की जाती है.

वहीं इस बार मुस्लिम कलाकारों ने हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल पेश की है. कलाकारों के अनुसार, आज एक तरफ जहां पूरे देश में लोग हिंदू और मुस्लिम के नाम पर मतभेद पाले हुए हैं. वहीं बखरी के पुरानी दुर्गा स्थान में मुस्लिम कलाकारों के द्वारा सामाजिक सौहार्द की मिसाल पेश की गई है. कलाकारों ने पुरानी दुर्गा स्थान में बाबा केदारनाथ की तर्ज पर पंडाल का निर्माण किया है. मुस्लिम कलाकारों के अनुसार दुर्गा पूजा सामाजिक सौहार्थ एवं आस्था का पर्व है और इसे हिंदू मुस्लिम दोनों साथ-साथ मिलकर मनाते हैं.

इनपुट- जितेन्द्र कुमार 

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