Ukraine Crisis: संकट के बीच जाने क्यों यूक्रेन के लोग कर रहे हैं इस तानाशाह को याद
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Ukraine Crisis: संकट के बीच जाने क्यों यूक्रेन के लोग कर रहे हैं इस तानाशाह को याद

Ukraine Crisis: रूस यूक्रेन के बीच हो रहे घमासान में यूक्रेन पर सिर्फ बमों की ही नहीं बल्कि मुसीबतों की बारिश भी हो रही है. एक तरफ यूक्रेन दुनिया को अनाज पहुंचा रहा है ताकि दुनिया में कोई भूखा ना रहे. लेकिन खुद उसकी जनता बिजली और पानी की ज़बरदस्त  किल्लत से जूझ रही है. युक्रेन के लोगों को 1932-33 में जोसफ़ स्टालिन की तानाशाही के दौर का वक्त खुद को दोहराता हुआ नज़र आ रहा है. जानिए पूरी ख़बर.

Ukraine Crisis: संकट के बीच जाने क्यों यूक्रेन के लोग कर रहे हैं इस तानाशाह को याद

Ukraine Crisis: दुनिया भर में अनाज पहुंचाने वाला यूक्रेन खुद एक बहुत बड़े बोहरान (संकट) से जूझ रहा है. दरअसल रूस के हमलों के बाद यूक्रेन के कई बड़े शहरों में बिजली पानी की दिक्कत काफी बढ़ गई है. इन दिनों यूक्रेन अंधेरे और ठंड की चपेट में है. और यूक्रेन के सद्र (राष्ट्रपति) वोलोदिमीर जेलेंस्की ने इन हालात के लिए रूस को जिम्मेदार बताते हुए अक]वामे मुत्तहिदा (संयुक्त राष्ट्र) से रुस को सज़ा देने की मांग भी की थी. अब ठंड के दिनों में की यूक्रेन को बिजली ज़रूरत काफी ज़्यादा है. युक्रेन में इस सूरते हाल को देखते हुए इन हालात का मवाज़ना (तुलना) 1932-33 में जोसफ़ स्टालिन की तानाशाही के दौर से किया जा रहा है. 1932-33 में जोसफ़ स्टालिन ने यूक्रेन के लोगों की हिम्मत तोड़ने के लिए मुल्क में अकाल ला दिया था. आज 90 साल बाद यूक्रेन के लोगों को देश में वो इतिहास फिर दोहराता नज़र आ रहा है.

कौन था जोसफ़ स्टालिन ?

जोसेफ़ विसारियोनोविच ज़ुगाशविली यानी स्टालिन एक मामूली से परिवार से ताल्लुक़ रखता था और जो सोवियत रुस (युक्रेन भी इसका हिस्सा था) की हुकूमत के ख़िलाफ़ सरगर्मियों में मुलव्विस रहता था. बीसवीं सदी की शुरुआत में स्टालिन लगातार रूसी साम्राज्य के ख़िलाफ़ बाग़ी तेवर अपनाए हुए थे. स्टालिन अक्सर हड़ताल और विरोध प्रदर्शन मुनक्किद करता था. रूस के बादशाह ज़ार की ख़ुफ़िया पुलिस को स्टालिन की हरकतों का अंदाज़ा हो चुका था. लेकिन स्टालिन इतना शातिर था कि हुकूमत की नज़र में आने के बावजूद 1905 में उसने पहली बार रूसी साम्राज्य के ख़िलाफ़ गुरिल्ला युद्ध में हिस्सा लिया.

1920 की दहाई के आख़िर के आते-आते स्टालिन सोवियत संघ का तानाशाह बन चुका था. कहा जाता है कि स्टालिन के राज में ज़ुल्मो-सितम की इंतेहा हुई. स्टालिन नीतियों और फ़रमानों की वजह से मुबैयना (कथित) तौर पर दसियों लाख लोग मारे गए. स्टालिन ने खेती का मॉडर्नाईज़ेशन शुरू किया और तमाम ज़मीन का राष्ट्रीयकरण कर दिया. बहुत से किसानों ने इसका विरोध किया. किसानों ने अपने जानवर मारकर और अनाज छुपाकर इसकी मुख़ालफ़त की. जिसकी वजह से क़रीब पचास लाख लोग भुखमरी से मर गए. इससे नाराज़ स्टालिन ने जमाखोरी करने वाले और अपनी पॉलिसीज़ की मुख़ालफ़त करने वाले किसानों को मरवाना शुरू कर दिया. जिससे उस दौर में अनाज पैदा करने वाले किसानों की कमी हो गई और जानबूझकर अकाल की नौबत पैदा कर दी गई.

दुनिया को अनाज दे रहे यूक्रेन में ही संकट,भारी बर्फबारी में सिर्फ़ चार घंटे मिलेगी बिजली

दिक्कत ये है कि दुनिया भर में अनाज पहुंचाने वाला यूक्रेन खुद एक बहुत बड़े बोहरान (संकट) से जूझ रहा है. दरअसल रूस के हमलों के बाद यूक्रेन के कई बड़े शहरों में बिजली पानी की परेशानी काफी बढ़ गई है. ठंड के मौसम में तो यूक्रेन को बिजली की ज़रूरत काफी ज़्यादा है. लेकिनठंड से ठिठुरते यूक्रेन में अंधेरा छा गया है. युक्रेन के लाखों लोग बिना बिजली के रहने को मजबूर हैं. बिजली ना होने से पानी की क़िल्लत हो गई है. पानी के लिए लोग याहं पानी की लाइन में लगे हैं. युक्रेन के सद्र जेलेंस्की ने इसके लिए रुस को ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहा था कि रूस ने उनके पावर ग्रिड तबाह कर दिए हैं.

अनाज की कमी पर बात करते हुए हाल ही में ज़ेलंस्की ने कहा कि हमारे खाद्य सुरक्षा शिखर सम्मेलन को 20 से ज्यादा देशों की हिमायत मिली है. 'ग्रेन फ्रॉम यूक्रेन' के लिए अबतक हमने तक़रीबन 150 मिलियन अमेरिकी डॉलर की रक़म जुटा ली है. काम जारी है. हम 60 जहाज भेजने की तैयारी कर रहे हैं. हम फिर से तस्दीक़ करते हैं कि भूख को फिर से एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. इस बीच रूसी हमलों के बीच बिजली के बोहरान ने यूक्रेन की फ़िक्र बढ़ा दी है. भारी बर्फबारी में यहां सिर्फ चार घंटे मिलेगी बिजली की सप्लाई. ग़ौरतलब है कि रूसी हमलों के बाद यु्रेन के क़रीब 70 फीसद इलाक़े में बिजली गुल हो गई थी. पहले से ही मुसीबत झेल रहे यूक्रेनी पावर नेटवर्क की इन हमलों में सर्दियां शुरू होने के बीच हालत और खराब हो गई है. इन हमलों के सबब पड़ोसी मालदोवा में भी बिजली का बोहरान पैदा हो गया है.

इस बीच बेल्जियम के वज़ीरे आज़म अलेक्जेंडर डी क्रू ने भी कीव में जेलेन्स्की से मुलाकात की. इस दौरान दोनों देशों के आला लीडरान के बीच यूक्रेन में ऊर्जा के बुनियादी ढांचे को लेकर बातचीत हुई. साथ ही बेल्जियम से यूक्रेन के लिए फ़ौजी और इंसानी मदद को लेकर चर्चा हुई. बेल्जियम के प्रधानमंत्री अलेक्जेंडर डी क्रू ने यूक्रेन के लिए हिमायत का भरोसा दिया है. अलेक्जेंडर डी क्रू ने एक ट्वीट में कहा कि यूक्रेन में हाल ही में हई भारी बमबारी के बाद बेल्जियम यूक्रेन के लोगों के साथ पहले से ज्यादा मज़बूती से खड़ा है. उम्मीद की जा रही है कि रुस और युक्रेन के दरमियान जंग रोकने का कोई रास्ता निकल आए. लेकिन लगता है कि युक्रेन के लोगों में इसे लेकर मायूसी छा चुकी है. और यही वजह है कि युक्रेन के शहरी 1932-33 में जोसफ़ स्टालिन की तानाशाही के दौर के बारे में सोचकर ख़ौफ़ज़दा हो रहे हैं. और इसीलिए आज 90 साल बाद यूक्रेन के लोगों को अपने देश में वो तारीख़ ख़ुद को फिर दोहराती हुई नज़र आ रही है. 

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