Poetry: "बिछड़ने का हुनर सब को नहीं आता, किसी को छोड़ना हो तो..."

Siraj Mahi
Oct 07, 2024

हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल, उदासियों की कोई शहरियत नहीं होती

मैं बोलता गया हूँ वो सुनता रहा ख़ामोश, ऐसे भी मेरी हार हुई है कभी कभी

तुम मेरी तरफ़ देखना छोड़ो तो बताऊँ, हर शख़्स तुम्हारी ही तरफ़ देख रहा है

आसमां इतनी बुलंदी पे जो इतराता है, भूल जाता है ज़मीं से ही नज़र आता है

वो झूट बोल रहा था बड़े सलीक़े से, मैं ए'तिबार न करता तो और क्या करता

ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं, तेरा होना भी नहीं और तिरा कहलाना भी

उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में, इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए

वैसे तो इक आँसू ही बहा कर मुझे ले जाए, ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता

मुसलसल हादसों से बस मुझे इतनी शिकायत है, कि ये आँसू बहाने की भी तो मोहलत नहीं देते

VIEW ALL

Read Next Story