Urdu Poetry in Hindi: "मैं भी कुछ ख़ुश नहीं वफ़ा कर के..."

Siraj Mahi
Nov 17, 2024

हम समझते हैं आज़माने को, उज़्र कुछ चाहिए सताने को

तुम हमारे किसी तरह न हुए, वर्ना दुनिया में क्या नहीं होता

आप की कौन सी बढ़ी इज़्ज़त, मैं अगर बज़्म में ज़लील हुआ

वो आए हैं पशेमाँ लाश पर अब, तुझे ऐ ज़िंदगी लाऊँ कहाँ से

न करो अब निबाह की बातें, तुम को ऐ मेहरबान देख लिया

मैं भी कुछ ख़ुश नहीं वफ़ा कर के, तुम ने अच्छा किया निबाह न की

रह के मस्जिद में क्या ही घबराया, रात काटी ख़ुदा ख़ुदा कर के

कुछ क़फ़स में इन दिनों लगता है जी, आशियाँ अपना हुआ बर्बाद क्या

शब जो मस्जिद में जा फँसे 'मोमिन', रात काटी ख़ुदा ख़ुदा कर के

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