Urdu Poetry in Hindi: ये और बात कि तू दो क़दम पे भूल गया, हमें तो हश्र तलक...

Siraj Mahi
Dec 28, 2024

ताज़ा हवा ख़रीदने आते हैं गाँव में, 'शाहिद' शहर के लोग भी कैसे अजीब हैं

ये और बात कि तू दो क़दम पे भूल गया, हमें तो हश्र तलक तेरा इंतिज़ार रहा

छिड़का गया है ज़हर फ़ज़ाओं में इस तरह, माओं ने अपनी कोख से बूढे जनम दिए

ख़ुद अपने आप से रहता है आदमी नाराज़, उदासियों के भी अपने मिज़ाज होते हैं

रेल की पटरी फ़सुर्दा शाम तेरा सूटकेस, फिर से आँखों में तिरे जाने का मंज़र आ गया

दूसरों की बात आई तो पयम्बर था वो शख़्स, अपनी बारी पर मोहब्बत से ही मुर्तद हो गया

पढ़ता है बड़े शौक़ से वो मेरी किताबें, जिस बात से डरता हूँ वही बात न पढ़ ले

मोहब्बत रूप में ढलती तो वो इक देवता होता, मैं उस को पूजने लगता अगर वो बा-वफ़ा होता

वो मुझ से प्यार कब करता है बस मिलता मिलाता है, किराए के मकाँ में कब कोई पौदा लगाता है

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