Urdu Poetry in Hindi: आज भी उस के मिरे बीच है दुनिया हाइल...

Siraj Mahi
Dec 26, 2024

है एक ही लम्हा जो कहीं वस्ल कहीं हिज्र तकलीफ़ किसी के लिए आराम किसी का

एक ख़ुश्बू थी जो मल्बूस पे ताबिंदा थी एक मौसम था मिरे सर पे जो तूफ़ानी था

जी लगा रक्खा है यूँ ताबीर के औहाम से ज़िंदगी क्या है मियाँ बस एक घर ख़्वाबों का है

एक बस्ती थी हुई वक़्त के अंदोह में गुम चाहने वाले बहुत अपने पुराने थे उधर

रोज़ इक मर्ग का आलम भी गुज़रता है यहाँ रोज़ जीने के भी सामान निकल आते हैं

आज भी उस के मिरे बीच है दुनिया हाइल आज भी उस के मिरे बीच की मुश्किल है वही

मैं अपना कार-ए-वफ़ा आज़माऊँगा फिर भी कहाँ मैं तेरे सितम याद करने वाला हूँ

इसी क़दर है हयात ओ अजल के बीच का फ़र्क़ ये एक धूप का दरिया वो इक किनारा-ए-शाम

एक बस्ती थी हुई वक़्त के अंदोह में गुम चाहने वाले बहुत अपने पुराने थे उधर

VIEW ALL

Read Next Story