हुस्न सब को ख़ुदा नहीं देता, हर किसी की नज़र नहीं होती

Siraj Mahi
Jul 28, 2024

हम घूम चुके बस्ती बन में, इक आस की फाँस लिए मन में

रात आ कर गुज़र भी जाती है, इक हमारी सहर नहीं होती

हम भूल सके हैं न तुझे भूल सकेंगे, तू याद रहेगा हमें हाँ याद रहेगा

इक साल गया इक साल नया है आने को, पर वक़्त का अब भी होश नहीं दीवाने को

वहशत-ए-दिल के ख़रीदार भी नापैद हुए, कौन अब इश्क़ के बाज़ार में खोलेगा दुकाँ

अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले, दश्त पड़ता है मियाँ इश्क़ में घर से पहले

कूचे को तेरे छोड़ कर जोगी ही बन जाएँ मगर, जंगल तिरे पर्बत तिरे बस्ती तिरी सहरा तिरा

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा, कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा

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