'उस ने दीवारों को अपनी और ऊंचा कर दिया' आदिल मन्सूरी के शेर

Siraj Mahi
Apr 17, 2024


ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में... तिरी याद आँखें दुखाने लगी


कोई ख़ुद-कुशी की तरफ़ चल दिया... उदासी की मेहनत ठिकाने लगी


चुप-चाप बैठे रहते हैं कुछ बोलते नहीं... बच्चे बिगड़ गए हैं बहुत देख-भाल से


क्यूँ चलते चलते रुक गए वीरान रास्तों... तन्हा हूँ आज मैं ज़रा घर तक तो साथ दो


मुझे पसंद नहीं ऐसे कारोबार में हूँ... ये जब्र है कि मैं ख़ुद अपने इख़्तियार में हूँ


तस्वीर में जो क़ैद था वो शख़्स रात को... ख़ुद ही फ़्रेम तोड़ के पहलू में आ गया


मेरे टूटे हौसले के पर निकलते देख कर... उस ने दीवारों को अपनी और ऊँचा कर दिया


किस तरह जमा कीजिए अब अपने आप को... काग़ज़ बिखर रहे हैं पुरानी किताब के


दरिया की वुसअतों से उसे नापते नहीं... तन्हाई कितनी गहरी है इक जाम भर के देख

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