बिना NET-Ph.D. के यूनिवर्सिटी में ऐसे बन सकते हैं प्रोफेसर; जानें, नया नियम
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बिना NET-Ph.D. के यूनिवर्सिटी में ऐसे बन सकते हैं प्रोफेसर; जानें, नया नियम

Professors of Practice: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रोफेसर्स आफ प्रैक्टिस यानी विशेषज्ञों को संकाय सदस्य के तौर पर नियुक्त करने के लिए अधिसूचना जारी कर दी है.  

अलामती तस्वीर

नई दिल्लीः विश्वविद्यालय और उच्च शिक्षण संस्थान अब प्रतिष्ठित विशेषज्ञों को ‘प्रोफेसर्स आफ प्रैक्टिस (Professors of Practice) इन यूनिवर्सिटीज एंड कॉलेजेस’ श्रेणी के तहत फैकल्टी मेंबर के तौर पर नियुक्त कर सकेंगे. इसके लिए औपचारिक शैक्षणिक योग्यता और प्रकाशन की बाध्यता अनिवार्य नहीं होंगी. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC)  के नए दिशा-निर्देशों के मुताबिक, इंजीनियरिंग, विज्ञान, मीडिया, साहित्य, उद्यमिता, सामाजिक विज्ञान, ललित कला, सिविल सेवा और सशस्त्र बलों जैसे क्षेत्रों के विशेषज्ञ इस श्रेणी के तहत नियुक्ति के लिए पात्र होंगे.

कम से कम 15 साल की सेवा का अनुभव जरूरी 
दिशानिर्देशों के मुताबिक, जिन लोगों की अपने विशिष्ट पेशे या भूमिका में कम से कम 15 साल की सेवा या अनुभव के साथ विशेषज्ञता होगी, अधिमानतः वरिष्ठ स्तर पर, वे ‘प्रोफेसर्स आफ प्रैक्टिस’ के तौर पर नियुक्ति पाने के योग्य होंगे. इस पद के लिए औपचारिक शैक्षणिक योग्यता जरूरी नहीं होगी अगर उनके पास वांछित पेशेवर योग्यता होगी. यह योजना उन लोगों के लिए खुली नहीं होगी जो शिक्षण पद पर हैं, चाहे सेवारत या सेवानिवृत्त हों. 

तीन श्रेणियों में की जाएगी नियुक्ति 
प्रोफेसर्स आफ प्रैक्टिस की नियुक्ति तीन श्रेणियों में की जाएगी. उद्योगों द्वारा वित्त पोषित, एचईआई द्वारा अपने संसाधनों द्वारा वित्त पोषित और तीसरे, मानद आधार पर.

पीओपी की संख्या स्वीकृत पदों के 10 फीसदी से ज्यादा नहीं 
नए दिशानिर्देशों के मुताबिक, किसी भी वक्त में उच्च शिक्षण संस्थान (एचईआई) में पीओपी की संख्या स्वीकृत पदों के 10 फीसदी से ज्यादा नहीं होगी. नियुक्ति किसी विश्वविद्यालय या कॉलेज के स्वीकृत पदों को छोड़कर होगी. यह स्वीकृत पदों की संख्या और नियमित संकाय सदस्यों की भर्ती को प्रभावित नहीं करेगी. 

चार साल से ज्यादा का नहीं होगा कार्यकाल 
प्रोफेसर्स आफ प्रैक्टिस की नियुक्ति एक निश्चित अवधि के लिए होगी. किसी संस्थान में सेवा की अधिकतम अवधि तीन साल से ज्यादा नहीं होनी होगी. इसे असाधारण मामलों में एक साल तक बढ़ाया जा सकता है. 

भारत में भी कई संस्थानों में चल रही है ये व्यवस्था 
पीओपी दुनिया भर में चलन में है. पीओपी, मुख्य रूप से गैर-कार्यकाल वाले संकाय सदस्य होते हैं. ये मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी), हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, एसओएएस यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन, कॉर्नेल यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी आफ हेलसिंकी जैसे कई विश्वविद्यालयों में पहले से प्रचलित है. भारत में भी, पीओएस को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली, मद्रास और गुवाहाटी में नियुक्त किया जाता रहा है.

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