कौन हैं जस्टिस नज़ीर अहमद, जिसे लोग बता रहे हैं इंसाफ का दुश्मन; ये हैं उनके बड़े फैसले
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कौन हैं जस्टिस नज़ीर अहमद, जिसे लोग बता रहे हैं इंसाफ का दुश्मन; ये हैं उनके बड़े फैसले

EX Justice Nazir Ahmed Controversy: सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस अब्दुल नज़ीर अहमद को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किए जाने पर लोग सरकार और नजीर अहमद दोनों पर सवाल उठा रहे हैं. नजीर अहमद अयोध्या और विमुद्रीकरण सहित कई ऐसे फैसले से जुड़े रहे हैं जिनका अंतिम फैसला सरकार के हक में किया गया है.

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर अहमद

नई दिल्लीः राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने इतवार को देश के 13 राज्यों में नए राज्यपाल नियुक्त किए हैं. इनमें से कुछ का जहां ट्रांसफर किया गया है, वहीं कुछ राज्यों में नए लोगो को राज्यपाल बनाकर भेजा गया है. इन  में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर अहमद (EX Justice Nazir Ahmed) भी शामिल हैं, जन्हें सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त होने के महज एक महीने बाद ही आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया है. वह पिछले 4 जनवरी को अपने पद से रिटायर हुए थे. राज्यपाल के तौर पर उनकी नियुक्ति को लेकर लोग सवाल खड़े कर रहे हैं. खासकर मुस्लिम समुदाय और सत्ता विरोधी लोग इस नियुक्ति को लेकर सरकार और जस्टिस नजीर अहमद (EX Justice Nazir Ahmed) दोनों की खिंचाई कर रहे हैं. यहां तक कि नजीर अहमद (EX Justice Nazir Ahmed) को लोग बिका हुआ जज बता रहे हैं. कुछ लोग इसे बाबरी का इनाम तो कुछ कौम से गद्दारी का इनाम बता रहे हैं.  

इसकी खास वजह ये है कि न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर अहमद (EX Justice Nazir Ahmed) सुप्रीम कोर्ट के जज रहते हुए कुछ ऐसे फैसलों में शामिल रहे हैं, जो सरकार के पक्ष में थे. इसमें सबसे बड़ा और एक विवादित केस अयोध्या के राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद विवाद का केस रहा है. अयोध्या मामले में फैसला सुनाने और राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने वाली पीठ में वे अकेले अल्पसंख्यक जज के तौर पर शामिल थे. इससे पहले चीफ जस्टिस रंजन गोगोई भी लोगों के निशाने पर आ चुके हैं, जब आयोध्या मामले में हिंदू पक्ष के फेवर में फैसला सुनाने के बाद रिटायर करते ही सरकार ने उन्हें राज्यसभा में मनोनित कर दिया था. 

कौन हैं जस्टिस नज़ीर ?
5 जनवरी, 1958 को कर्नाटक दक्षिण के कन्नड़ जिले के बेलुवई में जन्मे जस्टिस नज़ीर ने एसडीएम लॉ कॉलेज, मंगलुरु से एलएलबी की डिग्री हासिल करने के बाद 18 फरवरी, 1983 को एक वकील के रूप मे अपनी प्रैक्टिस शुरू की थी. उन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट में वकालत किया और 12 मई, 2003 को इसके अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त हुए. वह 24 सितंबर, 2004 को स्थाई न्यायाधीश बने और 17 फरवरी, 2017 को सर्वोच्च न्यायालय में पदोन्नत होकर जज बनाए गए. 

जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर के कुछ बड़े फैसले 
गौरतलब है कि आयोध्या का राम जन्मभूमि मंदिर- बाबरी मस्जिद दो समुदायों के बीच लंबे अरसे से चला आ रहा विवाद था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर, 2019 को फैसला सुनाया था और यह फैसला हिंदू पक्ष के समर्थन में आया था. जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच में से एक थे जिन्होंने अंतिम फैसला सुनाया था. इसमें राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त करते हुए केंद्र को एक मस्जिद के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ का भूखंड आवंटित करने का निर्देश दिया गया था.

नोटबंदी पर सरकार को दी थी क्लीनचिट 
जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर ने उस संविधान पीठ का भी नेतृत्व किया जिसने 2016 की नोटबंदी प्रक्रिया को बरकरार रखा था. जस्टिस नज़ीर की अगुवाई वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने इस साल दो अलग-अलग फ़ैसले दिए, जिनमें से एक ने 4ः1 के बहुमत से केंद्र सरकार के 2016 के 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोटों को अमान्य करने के फैसले की वैधता को मान्य किया था. कोर्ट ने कहा था कि सरकार का यह निर्णय न तो दोषपूर्ण थी और न ही जल्दबाजी में लिया गया फैसला था. 

मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और नेताओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर फैसला 
जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर ने अपने एक फैसले में यह भी घोषणा की थी कि मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और नेताओं के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाने की कोई जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा था कि नौकरियों और उच्च सार्वजनिक पदाधिकारियों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है. 

'ट्रिपल तालक’ को बैन करने पर दिया था फैसला 
न्यायमूर्ति नज़ीर अहमद कई अन्य ऐतिहासिक फैसलों का भी हिस्सा रहे हैं, जिनमें तत्काल 'ट्रिपल तालक’ और 'निजता के अधिकार’ को मौलिक अधिकार घोषित करने वाले फैसले शामिल हैं. उन्होंने ट्रिपल तालक को अवैध कारार देकर इसपर रोक लगा दी थी. 

भारतीय न्यायपालिका की स्थिति पर जताया था संतोष 
इससे पहले, न्यायमूर्ति नज़ीर ने कहा कि भारतीय न्यायपालिका के मौजूदा हालात आज उतनी गंभीर नहीं है जितनी पहले हुआ करती थी, हालांकि गलत सूचना के कारण गलत धारणा व्यक्त की जाती है. उन्होंने सरकार में मराठों के लिए आरक्षण तक के मुद्दों पर भी निर्णय दिए थे. 

न्यायमूर्ति नज़ीर अहमद का जमकर हो रहा विरोध 
न्यायमूर्ति नज़ीर अहमद की नियुक्त के बाद से उनपर और सरकार पर लोग हमलावर हो रहे हैं. सोशल पलेटफॉर्म पर लोग सरकार और नजीर अहमद की जमकर आलोचना कर रहे हैं. इस नियुक्ति को देश, संविधान और कानून के राज के खिलाफ बता रहे हैं. कुछ लोगों ने इसे इंसाफ की हत्या तक करार दिया है. नजीर का देश में मनुस्मृति कानून लागू करने वाला जज बताया है. लोगों ने आरोप लगाया है कि न्यायमूर्ति नज़ीर अहमद आरएसएस के हिमायती हैं और उनके लिए ही सुप्रीम कोर्ट में काम कर रहे थे. 

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