कौन है अहमदिया मुसलमान जिसे दुनिया के बाकी मुसलमान नहीं मानते हैं अपने मजहब का हिस्सा
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कौन है अहमदिया मुसलमान जिसे दुनिया के बाकी मुसलमान नहीं मानते हैं अपने मजहब का हिस्सा

आंध्र प्रदेश के वक्फ बोर्ड द्वारा अहमदिया मुसलमानों को मुसलमान न मानने का एक प्रस्ताव पास करने के बाद भारत में अहमदिया मुसलमान चर्चा में आ गए हैं. आईये जानते हैं कि आखिर बहुसंख्यक मुसलमान अहमदिया मुसलमानों को अपने धर्म का हिस्सा क्यों तस्लीम नहीं करते हैं ? 

अलामती तस्वीर

हाल ही में आंध्र प्रदेश के वक्फ बोर्ड ने एक प्रस्ताव पास कर अहमदिया समुदाय को मुस्लिम मानने से इनकार कर दिया था, और उसके लिए 'काफिर’ शब्द का इस्तेमाल किया था. इस्लाम में 'काफिर’ उसे कहा जाता है, जो एक ईश्वर यानी अल्लाह के वजूद से इंकार करता हो. 

आंध्र प्रदेश के वक्फ बोर्ड द्वारा अहमदिया मुसलमानों को 'काफिर' कहने और उन्हें मुसलमान न मानने पर अहमदिया बिरादरी ने अल्पसंख्यक मंत्रालय में शिकायत की थी.. इससे पहले अहमदिया मुसलमान इस मामले को लेकर हाईकोर्ट का भी रुख कर चुका है. इस घटना के बाद से ही अहमदिया समुदाय भारत में चर्चा का विषय बन गया है. 
हालांकि, अहमदिया मुसलमानों द्वारा आंध्र प्रदेश वक्फ बोर्ड के प्रस्ताव को अल्पसंख्यक  मंत्रालय में चुनौती देने के बाद केंद्र सरकार ने इसपर कड़ी आपत्ति जताते हुए राज्य सरकार से मामले में दखल देने को कहा है. केंद्र सरकार की इस अपील के बाद अब इस मामले को आंध्र प्रदेश के अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय देखेगा.

यूं तो हिंदुस्तान और पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों के बीच टकराव आम है, लेकिन देश में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब अहमदिया समुदाय अपनी बातें समाज के सामने खुलकर रख रहा है और बहुसंख्यक मुसलमानों के इदारे के फैसले को खुलेआम चुनौती दे रहा है. जानकार, इसे राजनीतिक चश्में से भी देख रहे हैं. राजनीतिक विशलेषक डॉ. इम्तियाज अहमद कहते हैं, "ठीक आम चुनाव के पहले देश में अहमदिया मुसलमानों का मसला यूं ही चर्चा का केंद्र नहीं बन रहा है. यह भाजपा की एक उस रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जिसमें उसने खुले तौर पर कहा है कि वह मुस्लिम वोट बैंक को तोड़ने और बिखेरने के लिए मुस्लमानों में अशराफ-पसमांदा, शिया और सुन्नी और अहमदिया और आम मुसलमानों के बीच की खाई को और चौड़ी करेगा.’’ 

कौन है अहमदिया समुदाय ?
अहमदिया समुदाय की स्थापना मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद ने उन्नसवीं सदी के अंत में मार्च 1889 में पंजाब के लुधियाना में की थी. जहाँ उन्होंने इस्लाम धर्म के कुछ बातों में संशोधन करते हुए खुद को पैगम्बर घोषित किया था. जिन लोगों ने मिर्ज़ा ग़ुलाम अहमद को अपना पैगम्बर माना उन्हीं लोगों को अहमदिया कहा जाता हैं. वहीं, बाकी मुसलमानों का ये मानना है कि मोहम्मद साहब इस्लाम के अखिरी पैगंबर हैं और उनके बाद दुनिया में कोई दूसरा शख्स पैगंबर होने का दावा नहीं कर सकता है. ये इस्लाम के मौलिक सिद्धांतों के विरुद्ध होगा. 

दुनिया भर में अहमदिया समुदाय की जनसँख्या 
विश्व के अलग-अलग संस्थानो ने दुनियाभर में अहमदिया समुदाय की संख्या 10 से 20 मिलियन तक माना है, जो कुल मुसलमानों की संख्या का एक प्रतिशत है. दुनिया भर में इसकी सबसे ज्यादा जनसँख्या पाकिस्तान में है. आकड़ां के अनुसार पाकिस्तान में इनकी आबादी 40 से 60 लाख तक है. इसके अलावा नाइजीरिया, तंजानिया और कुछ अन्य अफ्रिकी देशां में भी इनकी आबादी पाई जाती है.  

मुसलमान इन्हे अपना हिस्सा क्यों नहीं मानते ?
मुसलमानों के द्वारा हमेशा से अहमदिया समुदाय को अस्वीकार करने का मुख्य कारण एक कलमे पर न रहना है. मुस्लिम समुदाय के विद्वानों का मानना है कि वहीं व्यक्ति मुस्लमान हो सकता है जिसने पैगंबर मोहम्मद साहब को अपना आखरी पैगंबर माना है. मुस्लिम विद्वानों के माने तो ईसाई धर्म के संस्थापक ईशा मसीह ( पैगंबर ईशा ) भी हमारे पैगम्बरों में से एक हैं, जिनका जिक्र कुरान में भी है. फिर भी मुस्लिम समुदाय पैगंबर ईसा के अनुयायियों को मुस्लमान नहीं मानता. फिर उस व्यक्ति (मिर्जा गुलाम अहमद) के अनुयायियों को मुस्लमान कैसे मान ले जिसका जिक्र न ही किसी धार्मिक ग्रंथ में है, और न ही पैगंबर मोहम्मद साहब ने अपनी बातों में अपने अनुयायियों से कहा है. 

:- गुलाम रज़ा खान  
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, और जी न्यूज से जुड़े हैं.

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